सहज, सरल, शांत, कांत स्फूर्तिमान थे मुनिश्री हर्षलालजी
'शासनश्री' मुनिश्री हर्षलालजी स्वामी के देवलोकगमन से जैन धर्म तेरापंथ शासन में एक लोकप्रिय, सहज, सरल, शांत, कांत स्फूर्तिमान मुनिश्री की कमी हो गयी।
प्रशंसनीय था आपका आत्मबल और मनोबल,
अनुकरणीय था आपका संकल्पबल और अध्यात्मबल,
आदरणीय थी आपकी संघनिष्ठा और गुरुनिष्ठा,
अनुमोदनीय थी आपकी संयमयात्रा और सत्यं शिवं यात्रा।।
भिक्षु शासन की ख्यात में आपका नाम विख्यात हो गया।
कमाल था आपका सेवाभाव और साधनाभाव,
बेमिसाल था आपका आत्मरमण और स्वाध्याय बल,
महनीय था आपका आगम बल और ध्यान योग,
कमनीय था आपका भक्ति योग और भाव योग।।
आदरास्पद मुनिप्रवर के जोश और जुनून की जितनी तारीफ करें उतनी ही कम है। आपने गुरुदृष्टि की सदैव आराधना की। गुरु-वचन और गुरु-चरण उनके लिए सर्वस्व थे। जहां-जहां गुरुदेव का आदेश होता, आपके चरण उधर ही गतिमान हो जाते। गुरुदृष्टि के लिए उनका तन-मन सर्वस्व समर्पित था। वे एक निर्जरार्थी संत प्रवर थे। अपना कार्य यथासंभव आप ही करवाते थे। कई बार गोचरी भी पधारते, सिलाई-रंगाई भी करवाते। श्रावक-श्राविकाओं को ध्यान, तप, त्याग की प्रेरणा दिराते। उनके लिए जितना लिखें, उतना कम है। भीलवाड़ा में अच्छा चौमासा हुआ, सिरियारी में आप गुरुदर्शन के लिए पधारे। वे लाछुड़ा के लाडले थे। शासन के वरिष्ठ कर्मठ, आत्मनिष्ठ, तपोनिष्ठ संत थे। कुछ माह पूर्व आपका चिकित्सा लाभ के लिए अहमदाबाद पदार्पण हुआ। आपकी कृपादृष्टि हम सब पर बहुत थी। आप कई बार दर्शन देने के लिए पधार जाते। मुनिश्री का जीवन दर्शन अनेक विशेषताओं से भरा था। मुनिश्री लिपिकला में दक्ष थे। आपने सूक्ष्म अक्षरों में भगवत गीता का सरस, सुंदर, लेखन करके अद्भुत इतिहास बना दिया। मुनिश्री यशवंतकुमारजी जैसे प्रबुद्ध संत को आपकी सेवा का लम्बे समय तक सहयोग मिला। जो श्वास और चित्तसमाधि देने वाला था। मुनिश्री मोक्षकुमारजी को भी आपकी सेवा का अवसर मिला।
खु़शजमालों की याद आती है, बेमिसालों की याद आती है।
जाने वाले नहीं आते पर, जाने वालों की याद आती है।।