चातुर्मास के अनुपम  अवसर का लाभ उठाएं

संपादकीय

चातुर्मास के अनुपम अवसर का लाभ उठाएं

चातुर्मास कर्म निर्जरा का एक विशेष समय होता है। पंच महाव्रत धारी साधु-साध्वियां तो अपनी हर करणी में निर्जरा करते ही हैं। चार महीने के अंतराल में उन्हें और विशेष साधना का अवसर प्राप्त हो जाता है। खैर, उनका तो समग्र जीवन ही निर्जरा के लिए लगा हुआ है। जो गृहस्थ देश विरति भी हैं, उनके लिए यह समय विशेष ज्ञानाराधना, श्रुताराधना और तपाराधना का समय है।
कुछ व्यक्ति स्वयं प्रेरित होते हैं और कर्म निर्जरा में रत हो जाते हैं और कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिन्हें एक सहारे की, प्रेरणा की आवश्यकता होती है और इस प्रेरणा में योगभूत बनते हैं देश-विदेश में पांव-पांव चलकर श्रावक श्राविकाओं की सार संभाल करने वाले, त्याग प्रत्याख्यान की प्रेरणा देने वाले, नियमित प्रवचन करने वाले, अनुयायियों को श्रावकोचित आचार का बोध पाठ पढ़ाने वाले, समिति-गुप्ति की आराधना में रत श्रमण एवं श्रमणियां।
तेरापंथ धर्म संघ एक सुव्यवस्थित धर्म संघ है। यहां जन्म लेने के पश्चात जैन संस्कार विधि से नवजात शिशु का नामकरण होता है, कुछ बड़ा होने पर ज्ञानशाला के संस्कार प्राप्त होते है, किशोरावस्था में किशोर मंडल या कन्या मंडल का सहारा मिलता है, युवा अवस्था में युवक परिषद, महिला मंडल और प्रोफेशनल फोरम का साथ मिलता है, आगे बढ़ें तो अणुव्रत समिति, तेरापंथ सभा आदि अनेक संस्थाएं हैं जो श्रावक-श्राविकाओं को इस धर्म संघ से जोड़े रखती हैं। इस जुड़ाव से संस्कारों का बीजारोपण और पल्लवन तो होता है अपितु यही संस्कार संघ को शुभ भविष्य भी अर्पित करते हैं। हालांकि संघीय संस्थाएं हर समय हर क्षेत्र में एक्टिव रहती ही हैं पर चातुर्मास और उसमें भी चारित्रात्माओं का सान्निध्य उन्हें मोक्ष मार्ग के और निकट ले जाने वाला होता है।
जिन क्षेत्रों को चातुर्मास में साधु-साध्वियों का सान्निध्य मिलता हो, वे उस अनुपम अवसर को गंवाएं नहीं, धर्माराधना का अतिरिक्त प्रयास करें। श्रावक के बारह व्रतों को पुष्ट करने का प्रयास करें, साधु-साध्वियों की साधना में सहभागी बनने का प्रयास करें। जो क्षेत्र साधु साध्वियों की सन्निधि से वंचित रह जाते हैं वे आचार्य प्रवर को मुमुक्षु बहनों, उपासक श्रेणी के सदस्यों आदि को भिजवाने एवं भविष्य में चातुर्मास के लिए निवेदन कर सकते हैं। साधु-साध्वी जब आपके क्षेत्र में आ जाएं तो उन्हें गोचरी, दवाई, शय्यात्तर, प्रवचन, प्रवास आदि के लिए निवेदन करें। यह निवेदन भी अपने पूरे परिवार के साथ, विशेषकर आपकी भावी पीढ़ी को साथ लेकर करें, जिससे उन्हें भी भावना भाने का प्रशिक्षण प्राप्त हो। कई बार श्रावक-श्राविका इन सबका निवेदन करते हैं पर उनके पास प्रासुक जल पक्का पानी उपलब्ध नहीं रहता। हमारा यह प्रयास भी हो कि हमारे घरों में पक्के पानी का ही उपयोग किया जाए, जिससे हम भी हिंसा से बच सकें और साधु को प्रासुक जल का दान भी दे सकें। प्रवचन, दर्शन के लिए भी अपने पूरे परिवार को साथ लेकर जाएं। इससे बड़ों को समाधि और छोटों को संस्कार प्राप्त हो सकते हैं।
युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी बहुधा फरमाते हैं कि हमें यह अति दुर्लभ मनुष्य जन्म मिला है, इसका सदुपयोग सर्व दुःख मुक्ति के लिए करें। हम अपने आस-पास देखें और यह चिंतन करें कि हम किसी वनस्पति या तिर्यंच की योनि में नहीं, मनुष्य की योनि में हैं। इसका कारण हमारे पूर्व कृत सद्कर्म ही हो सकते हैं अन्यथा हम भी किसी अन्य गति में हो सकते थे। जब हमने पिछले जन्मों की पुण्य संपदा से यह मनुष्य भव पाया है तो आगे के लिए भी हम कुछ तैयारी रखें। जितना हो सके भावों को शुद्ध रखें, पापों से बचने का प्रयास करें। जहां प्रयोजन ना हो, वहां व्यर्थ हिंसा से बचें। इस चातुर्मास में धर्माराधना और तपराधाना में विशेष समय लगाएं। नवकारसी, जमीकंद परिहार, रात्रि भोजन त्याग, प्रवचन श्रवण, सामायिक आदि छोटे-छोटे नियमों को अपने जीवन का अंग बनाएं एवं चातुर्मास को स्वयं के लिए ऐतिहासिक बनाएं।