देह, दिमाग, दिल की शुद्धि से जीवन बनता है पवित्र

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देह, दिमाग, दिल की शुद्धि से जीवन बनता है पवित्र

हमारे जीवन में तीन प्रकार की शुद्धि होनी चाहिए- देह, दिमाग और दिल। इनकी शुद्धि से जीवन में आनन्द का वास होता है, पवित्रता बढ़ती है। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का वास होता हैं- उपरोक्त विचार महावीर जैन भवन, ट्रिप्लीकेन, चेन्नई में धर्म परिषद को सम्बोधित करते हुए मुनि हिमांशुकुमारजी ने कहें। मुनिश्री ने कहा कि जैनागमों में निर्जरा के बारह प्रकार बताए गए हैं, इनकी साधना से तन, मन और भावों की शुद्धि होती है। देह की शुद्धि के लिए तप का सहारा लिया जाना चाहिए।
तप से अनेकानेक लाइलाज बीमारियां भी दूर हो सकती हैं। वर्तमान में डॉक्टर भी कहते हैं कि जलन, ऐसिडिटी, कब्ज इत्यादि होने पर रात्रि भोजन छोड़ना चाहिए। चातुर्मास के समय में तपस्या की विशेष साधना करनी चाहिए। अतः तप से देह की शुद्धि हो सकती है। मुनिश्री ने आगे कहा कि दिमाग को नकारात्मकता रूपी कचरे से बचाना चाहिए। उसके लिए सत् साहित्य पढ़ना और वीतराग पथ के पथिक साधु-संतों का प्रवचन श्रवण करना चाहिए। तीसरे बिन्दु दिल की शुद्धि के लिए सत्संग करने, श्रद्धा भाव से संत महात्माओं की सेवा उपासना करने का आह्वान किया।
मुनि हेमंतकुमारजी ने कहा कि डिमाण्ड होने पर जैसे प्राप्त वस्तु प्रिय लगती है, सुखद अनुभूति कराती है, उसी तरह ज्ञान पिपासु के लिए जिन वाणी सुखद अहसास कराती है। हमारा शरीर नौका, आत्मा नाविक और यह संसार समुद्र के समान है। संसार रुपी समुद्र से पार पाने, मोक्षगामी बनने के लिए जिस प्रकार प्लेन, रेल यात्रा उनसे बिना आसक्ति से सम्पन्न करते है, उसी तरह हमें हमारे शरीर पर भी आसक्त नहीं रहना चाहिए।