आचार्यश्री महाप्रज्ञ के 105वें जन्म दिवस पर विविध आयोजन

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आचार्यश्री महाप्रज्ञ के 105वें जन्म दिवस पर विविध आयोजन

मुनि प्रशांतकुमार जी के सान्निध्य में आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के 105वें जन्म दिवस का आयोजन हुआ। मुनिश्री ने कहा - आचार्यश्री महाप्रज्ञजी एक महान अध्यात्म योगी संत थे। उनकी अन्त:प्रज्ञा जागृत थी। वर्षों तक अपने शरीर पर साधना के विभिन्न प्रयोग करने के अनुभवों के पश्चात् प्रेक्षाध्यान नामक ध्यान-योग पद्धति का उन्होंने आविष्कार किया। अध्यात्म योग की गहराई में पहुंचकर जो अनमोल रत्न उन्होंने प्राप्त किए उन्हें ध्यान के विविध प्रयोगों के रूप में जनता के सामने प्रस्तुत किए। आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के साहित्य का एक विशाल पाठक संसार है। जो देश के हर भू-भाग में फैला हुआ है। उनका साहित्य पढ़ने वाले चाहे साहित्यकार हो, राजनीतिज्ञ हो, वैज्ञानिक हो या अन्य हर कोई भी हर किसी को ऐसा महसूस होता है यह पुस्तक जैसे मेरे लिए ही लिखी गई है। हर किसी को अपनी समस्या का समाधान आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के साहित्य में मिल जाता है। मुनि कुमुदकुमारजी ने कहा- खुले आकाश में जन्म लेने वाले बालक नत्थू ने खुले आकाश जैसी ही विराटता को प्राप्त किया। विनय और गुरु के प्रति समर्पण के वो मूर्तिमान स्वरूप थे। ज्ञान की गहराई, व्यक्तित्व की ऊंचाई, प्रतिष्ठा एवं संघ के सर्वोच्च पद आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किए जाने के बाद भी अहंकार उन्हें छू भी नहीं पाया। सिग्नेचर एस्टेट की श्राविकाओं के मंगलाचरण से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। सभा अध्यक्ष बाबूलाल सुराणा, तेरापंथ युवक परिषद्, महिला मंडल मंत्री ममता दुगड़, अणुव्रत समिति उपाध्यक्ष नवरतन गधैया, बहादुर सिंह सुराणा ने वक्तव्य एवं गीत के द्वारा भावांजलि अर्पित की।