तेरापंथ के अध्ययन हेतु जानें इतिहास, दर्शन और मर्यादा-व्यवस्था : आचार्यश्री महाश्रमण
ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने स्वीकारी गुरु मुख से प्रदत्त मंत्र दीक्षा
आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा-गुरु पूर्णिमा और तेरापंथ स्थापना दिवस। आज ही के दिन 264 वर्ष पूर्व केलवा में वि. सं. 1817 सायं लगभग 07 बजकर 25 मिनट पर आचार्यश्री भिक्षु ने नव भाव दीक्षा ग्रहण कर तेरापंथ धर्मसंघ की स्थापना की थी। अन्य सम्प्रदायों में गुरु पूर्णिमा का भी विशेष महत्व है। आज चतुर्मास प्रारम्भ का दिन भी है। आचार्यश्री भिक्षु की गादी पर सुशोभित, तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम् अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन मंगल प्रेरणा प्रदान कराते हुए फरमाया कि जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ का 265वां स्थापना दिवस व चातुर्मास का प्रथम दिन, आषाढ़ी पूर्णिमा ऐतिहासिक दृष्टि से इतना महत्वपूर्ण है, जितना भारत देश के लिए 15 अगस्त का दिन होता है। आज का दिन स्वतंत्र पंथ के प्रारम्भ का दिन है। 26 जनवरी गणतंत्र दिवस है तो हमारे लिए माघ शुक्ला सप्तमी प्रतिष्ठा प्राप्त दिवस है। हमारे धर्मसंघ को 264 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। तेरापंथ - मेरापंथ बन जाए। तेरापंथ के नामकरण में जहां तेरह की संख्या का योगदान है, वहीं तेरह नियमों का भी महत्व है। जोधपुर के दीवान ने जब देखा कि कुछ श्रावक धर्म स्थान में सामायिक नहीं कर दुकान में धर्माराधना कर रहे हैं। दीवान जी और श्रावकों की बातचीत को सुनकर सेवग जाति के कवि ने एक दोहा रच दिया -
साध-साध रो गिलो करे, ते आप आपरो मंत।
सुणजो रे शहर रा लोगां, ऐ तो तेरापंथी तंत।।
नामकरण का मूल उद्गम तो सेवग जाति का वचन है। इस रूप में हम सेवग जाति का आभार मानें की हम नाम उनसे मिला। भिक्षु स्वामी के पास यह बात पहुंची। उन्होंने उदारता से 'तेरापंथ' नाम को स्वीकार कर लिया। सूत्र आपका, अर्थ हमारा। 13 साधु, 13 श्रावक इसलिए तेरापंथ, पांच महाव्रत, पांच समिति, तीन गुप्तियां -इन तेरह नियमों के आधार पर तेरापंथ, और आचार्य भिक्षु ने कहा- हे प्रभो! यह तेरांपथ। भगवान पंथ तो आपका है, हम उस पर चलने वाले पथिक हैं। इस बात में एक भक्ति उभरती है। इस नाम में भी मानो भगवान महावीर को श्रेय दिया गया है कि तुम्हारे पावन पथ पर जीवन अर्पण है। नाम का उद्गम पहले हो गया, स्थापना बाद में हुई। आचार्य भिक्षु ने आज के दिन अपने संतों नव्य-भव्य दीक्षा स्वीकार की। पहले ग्रहण की गई दीक्षा को अमान्य कर केलवा में नए सिरे से सामायिक चारित्र ग्रहण कर नई दीक्षा ग्रहण की थी। इससे पहले चैत्र शुक्ला नवमी को अभिनिष्क्रमण हुआ था। दोनों दिन ज्योतिष के आधार पर अच्छे हैं। अनुमान है कि भिक्षु स्वामी ने चिन्तन पूर्वक इन दिनों का चयन किया था।
आचार्य महाप्रज्ञजी ने एक बार अपने भाषण में फ़रमाया था कि तेरापंथ की स्थापना जिस समय में हुई थी, उस कुंडली के हिसाब से 2000 वर्षों तक तेरापंथ का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकेगा। नई क्रान्ति का विरोध भी होता है। अपनी-अपनी दृष्टि है, किसी की दृष्टि में कोई सही हो सकता है, कोई गलत हो सकता है। स्तर का विरोध है, तो उसे पढ़ो और विरोध करने वालों को समझाने का प्रयास करो। विरोध करने वाले अच्छे व्यक्ति भी हो सकते हैं। विरोध-विरोध में अन्तर होता है, हर विरोध खराब नहीं होता, समझ में फर्क हो सकता है। निन्दक की बात समझकर सही लगे तो उसका परिष्कार करो। नई बात स्वीकार करेंगे तो नई बात उभर सकती है, शोध-अनुसंधान यही होता है। अनाग्रह के साथ खोज होगी तो नई चीज सामने आएगी। विरोध के दो कारण हैं, एक तो बात समझ में नहीं आई और दूसरा बिना समझे जैसे-तैसे विरोध करना। स्तरीय विरोध करने वाले को समझाया जा सकता है। उच्च दृष्टि का विरोध महत्वपूर्ण हो सकता है। तुष्छ दृष्टि का विरोध गलत हो सकता है।
आचार्य भिक्षु ने अभिनिष्क्रमण भी दोपहर में किया था, मेरा अनुमान है कि उसका भी मुहूर्त्त भी देखा होगा। तेरापंथ को समझने के लिए तेरापंथ के इतिहास को समझना भी अपेक्षित है। 'शासन गौरव' मुनिश्री बुद्धमलजी ने एक ही पोथे में नौ आचार्यों का इतिहास गुरुदेव तुलसी के समय लिख दिया था। तेरापंथ के इतिहास को पढ़ने से तेरापंथ का अच्छा अध्ययन किया जा सकता है। मुनि श्री नवरत्नमलजी स्वामी द्वारा रचित 'शासन समुद' में भी काफी इतिहास की जानकारी मिल सकती है और भी कई ग्रंथों से तेरापंथ के आचार्यों को जानने का एवं तेरापंथ दर्शन को समझने का प्रयास किया जा सकता है। जयाचार्य के ग्रन्थ 'भ्रम विध्वंसनं' से भी तेरापंथ के सिद्धांतों को समझने का प्रयास कर सकते हैं। तेरापंथ का व्यापक अध्ययन करने के लिए तीन दृष्टियों से अध्ययन करना अपेक्षित है - तेरापंथ का इतिहास, तेरापंथ का दर्शन और तेरापंथ की मर्यादा व्यवस्था। आचार्य भिक्षु से सम्बद्ध हमारा यह तेरापंथ धर्मसंघ है। आचार्य भिक्षु ने दर्शन और सिद्धांत दिया, श्रीमद् जयाचार्य उनके सिद्धान्तों के भाष्यकर रहे हैं। अध्ययन करने से ज्ञान चेतना झंकृत और विकसित हो सकती है। अगले वर्ष आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी से आचार्य भिक्षु त्रि-शताब्दी वर्ष शुरू हो रहा है। जिसका विरोध है, वह मानसिक संतुलन और विनम्रता व समता, शांति, मनोबल, हिम्मत रखे। विरोध भी कभी पथ प्रदर्शन कर सकता है। भूल लगे तो उसे स्वीकार कर उसका परिष्कार करने का प्रयास करें। स्तरीय विरोध का स्तरीय जवाब दिया जा सकता है। विरोध भी हमारे विकास में सहायक बन सकता है। विरोध का जवाब दो तरीके से दिया जा सकता है- एक तो उसका जवाब दो और दूसरा अच्छे से कार्य करते रहो। अपनी आलोचना का जवाब अपने अच्छे कार्यों से दो। हमारे उत्तरवर्ती परम पूज्य आचार्य हुए हैं, उन्होंने भी इस धर्मसंघ की सेवा की है। आचार्य तुलसी को हमने देखा है कितने लंबे काल तक उन्होंने धर्मसंघ का संचालन कर कितनी बड़ी सेवा की है। उन्होंने धर्मसंघ में नये-नये उन्मेष, परिवर्तन भी किए। समण श्रेणी तथा पारमार्थिक शिक्षण संस्था भी उनकी देन है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी गुरुदेव श्री तुलसी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़े थे।
हमारा धर्मसंघ विकास करता रहे, हम धर्मसंघ की सेवा और धर्मसंघ के माध्यम से औरों की भी आध्यात्मिक सेवा करने का प्रयास करें। 21 वर्षों बाद पुनः सूरत में चतुर्मास हो रहा है। भगवान महावीर यूनिवर्सिटी के प्रांगण में चतुर्मास हो रहा है। पूज्य गुरुदेव ने चातुर्मास के बाद के यात्रा पथ की जानकारी भी प्रदान करवाई।
मुख्यमुनि महावीरकुमारजी ने अपने विचारों की प्रस्तुति देते हुए कहा कि आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन आचार्यश्री भिक्षु ने भव्य-नव्य दीक्षा ग्रहण की थी। आज ही के दिन जैन धर्म के नूतन संस्करण का प्रादुर्भाव हुआ था। आचार्य भिक्षु को हम जैन धर्म के पुनरुद्धारक आचार्य के रूप में देखते हैं। आज के दिन हमें एक पंथ मिला था और गुरु पूर्णिमा पर गुरु मिले थे। 264 वर्षों की यात्रा में इस धर्मसंघ को महिमाशाली, गरिमाशाली पुण्यशाली आचार्यों का कुशल नेतृत्व प्राप्त हुआ है, हो रहा है और मंगलकामना करते हैं कि सुदीर्घ काल तक हमें महान नेतृत्व प्राप्त होता रहे। 'तेरापंथ-मेरापंथ' बन जाए इस विषय का विवेचन करते हुए मुख्यमुनिश्री ने आचार्यश्री महाप्रज्ञजी द्वारा रचित गीत ‘स्वामी पंथ दिखाओ जी’ का संगान किया। तेरापंथ के ऐतिहासिक प्रसंगों का उल्लेख करते हुए मुनि श्री भारमलजी जैसा समर्पण, मुनि श्री हेमराजजी जैसी सहनशीलता, मुनिश्री खेतसीजी जैसा विनय और मुनि श्री वेणीरामजी जैसे संतुलन से प्रेरणा प्राप्त कर तेरापंथ को मेरापंथ बनाने की राह दिखाई। साध्वीवर्या संबुद्धयशाजी ने कहा कि आज के दिन हमें एक महान पंथ और एक महान संत मिला था। आचार्य भिक्षु हमारे भाग्य विधाता हैं, हमारे आराध्य हैं। उनमें तीन विलक्षणताएं देखी जा सकती हैं। उनकी पहली विलक्षणता थी - वे क्रांतिकारी से अधिक शांतदर्शी थे। उनके जीवन में कई प्रकार के विरोध आए, उन्होंने विरोधी को समभाव से झेला। विरोधों से भी उनकी क्षमा, शांति, प्रसन्नता और सकारात्मकता खंडित नहीं हुई। स्थान, वस्त्र, आहार सम्बन्धी अनेक समस्याएं उनके जीवन में आई। वाणी के तीखे प्रहारों को भी अनेक बार झेला। उनकी दूसरी विलक्षणता थी - वे एक शासक थे उससे अधिक वे एक महान साधक थे। लगभग 44 वर्षों तक उन्होंने संघ को त्याग-तप और आतापना से सींचा। उनकी तीसरी विलक्षणता थी - वे आचार आधारक से अधिक सुधारक थे। संघ में शुद्ध चरित्र पले इसलिए वे हमेशा जागरूक रहते थे। मर्यादाओं का निर्माण कर आचार्य भिक्षु ने तेरापंथ को तेजस्वी बनाया। आज हमें आचार्य श्री महाश्रमण जी की अनुशासना हमें प्राप्त है। हम आचार निष्ठा, मर्यादा निष्ठा, आज्ञा निष्ठा और संघ निष्ठा को आत्मसात करने का प्रयास करें। साध्वी ऋद्धिप्रभाजी ने चतुर्मास में चलने वाली विविध विषयों की कक्षाओं के बारे में जानकारियां दी। साध्वीवृन्द व मुनिवृन्द ने स्थापना दिवस के अवसर पर पृथक-पृथक सुमधुर गीतों की प्रस्तुति दी। पूज्यवर के मुखारविन्द से संघ-गान का सुमधुर संगान हुआ।
पूज्यवर द्वारा ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों को मंत्र दीक्षा प्रदान कर प्रेरणा प्रदान करवाई गई। अभातेयुप अध्यक्ष रमेश डागा एवं तेयुप सूरत मंत्री सौरभ पटावरी ने मंत्र दीक्षा के अवसर पर अपनी अभिव्यक्ति दी। ज्ञानशाला की सुन्दर प्रस्तुति हुई। प्रज्ञा चक्षु भावेश भाटिया ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।