मोक्ष प्राप्ति के लिए आवश्यक है सर्व ज्ञान प्रकाशन : आचार्यश्री महाश्रमण
नागरिक अभिनन्दन कार्यक्रम में पूज्य प्रवर ने दी आनंद और शांति का ताला खोलने की प्रेरणा
जिनशासन प्रभावक युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवान महावीर यूनिवर्सिटी के महावीर समवसरण में पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में दो प्रकार के जीव होते हैं- सिद्ध और संसारी। सिद्ध स्वरूप जीव जन्म-मरण की परंपरा से मुक्त होते हैं, वे परमात्म पद को प्राप्त हो जाते हैं। वे अशरीरी, अ-मन, अवाक्, निरंजन, निराकार, निर्दुःख होते हैं।
दुःख क्यों और कैसे होता है? शरीर में दुःख होता है, शरीर में कोई बीमारी लग सकती है या कहीं कोई दर्द हो सकता है। सिद्ध तो शरीर मुक्त हैं तो शरीर सम्बन्धी कोई दुःख उन्हें हो ही नहीं सकता। किसी व्यक्ति का सम्मान न हो, मानसिक तनाव हो, अपमान हो जाए, अवसाद की स्थिति बन जाए, इनसे वह दुःखी बन जाता है। सिद्ध आत्माओं के मन होता ही नहीं है, तो उन्हें मानसिक कष्ट भी नहीं है। तीसरा कष्ट भावात्मक दुःख - गुस्सा, अहंकार, माया, लोभ, राग-द्वेष आदि के रूप में हो सकता है। सिद्धों में न गुस्सा है, न राग है, न द्वेष है, न अहंकार है, उनसे बड़ा तो कोई वीतराग होता ही नहीं है। सिद्धों के न शारीरिक दुःख हैं, न मानसिक दुःख हैं और न भावात्मक दुःख हैं। वे पूर्णतया दुःख मुक्त होते हैं, सहजानन्द होते हैं।
सुख भी दो प्रकार का हो जाता है। एक बाहर के निमित्तों से होने वाला सुख और दूसरा भीतर से उत्पन्न होने वाला सुख। बाहर का सुख परिस्थिति सापेक्ष है। जैसे पानी दो प्रकार का होता है- कुंड का पानी और कुएं का पानी। कुंड में बाहर से पानी डाला जाता है, वह कभी समाप्त भी हो सकता है। कुएं में पानी भीतर के स्रोत से आता है। प्रशंसा, मनोज्ञ खाद्य पदार्थ, अच्छा दृश्य या रूप इनसे मिलने वाला सारा सुख बाहर से मिलने वाला सुख है, जो शाश्वत नहीं है। एक भीतर का सुख है, वह परिस्थिति सापेक्ष नहीं होता, वह तो वीतरागता से आने वाला सहज सुख है। उस सुख को दूसरा कोई छीन नहीं सकता। सिद्ध भगवान का सुख शाश्वत सुख है, एकांत सौख्य है। उनके सुख को कोई चुरा नहीं सकता है।
सिद्धों वाला सुख कैसे प्राप्त हो? शास्त्र में कहा गया कि सर्व ज्ञान प्रकाशन हो जाए, अज्ञान-मोह का विवर्जन हो जाए, राग-द्वेष का संक्षय हो जाए तो आत्मा एकान्त सौख्य वाले मोक्ष को प्राप्त हो जाती है। मोक्ष में जाने के लिए सर्व ज्ञान प्रकाशन (केवल ज्ञान) की प्राप्ति जरूरी है और केवल ज्ञान के लिए शर्त है कि राग-द्वेष का क्षय करना पड़ेगा। बिना वीतरागता को प्राप्त किए सर्व ज्ञान प्रकाशन नहीं हो सकता और वीतरागता के लिए अज्ञान मोह, मिथ्यात्व को नष्ट करना होगा। इस प्रकार तीन चरण हो जाते हैं - अज्ञान मोह - मिथ्यात्व का विवर्जन, राग-द्वेष का पूर्णतया क्षय, उसके बाद सर्व ज्ञान का प्रकाशन। ये तीन स्थितियां प्राप्त हो जाती हैं तो फिर आत्मा को मोक्ष की स्थिति प्राप्त हो जाती है।
जीवों का दूसरा प्रकार है- संसारी जीव। संसारी जीव सशरीर होते हैं। जब तक मोक्ष न हो जाए वे जन्म-मरण के चक्र में भ्रमण करते रहते हैं। कई जीव ऐसे भी होते हैं, जो कभी भी मोक्ष में नहीं जाएंगे, वे अभव्य जीव होते हैं। भव्य जीव मोक्ष प्राप्ति तक जन्म मरण के चक्र में हैं। हम सभी संसारी जीव हैं। संसारी जीवों को सम्यक् बोध मिल जाए, मोक्ष का मार्ग मिल जाए, दुःख मुक्ति का मार्ग मिल जाए। उस मार्ग पर बढ़ते-बढ़ते एक समय आता है जब वे संसार से मुक्त होकर सिद्धत्व को प्राप्त हो जाते हैं।
गाँव-शहर में गुरुओं, साधुओं का आगमन होता है। चतुर्मास में एक जगह ही प्रवास करना होता है। चातुर्मास में लोगों को धर्म लाभ प्राप्त करने की सुविधा हो जाती है। गुरु उपासना में रहकर लम्बे समय तक धार्मिक साधना करने का, प्रवचन सुनने का अवसर मिल जाता है। प्रवचन सुनने से कई लाभ हो सकते हैं। श्रोता प्रवचन से प्राप्त बोध को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें। पर जो लोग उस बोध को अपने जीवन में नहीं भी उतार पाते हैं वे कम से कम जितनी देर तक बैठ कर सुनते हैं, उपासना करते हैं, उतने समय तक वे सांसारिक कार्यों से, पापों से मुक्त हो जाते हैं। इस प्रकार प्रतिदिन के दो घंटे भी पाप मुक्त व्यतीत हो सकते हैं। कोई उस समय में सामायिक कर लेते हैं तो उसका भी लाभ हो सकता है।
सुनने से कई नई जानकारियां मिल सकती हैं और कई पुरानी जानकारियां पुष्ट हो सकती है। सुनते-सुनते मन की जिज्ञासाओं अथवा प्रश्नों का समाधान हो सकता है। ध्यान से सुनने वाला श्रोता अच्छा वक्ता भी बन सकता है। साधु तो अहिंसा के पुजारी होते हैं। उनकी वाणी सुनने से, दर्शन करने से भी पाप झड़ सकते हैं। संतों का समागम होना और धर्म की कथा होना अपने आप में विशेष उपलब्धि माना जा सकता है। हम तीन बातों का प्रचार कर रहे हैं - सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति। इन तीन बातों से समाज में अपराध की कमी आ सकती है। हम तो साधु लोग हैं, नागरिक अभिनन्दन ठीक है, साधु तो अपनी साधना करे। सूरत के सम्पूर्ण नागरिक समूह में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के भाव पुष्ट रहें। सभी चतुर्मास में अच्छा आध्यात्मिक लाभ लेने का प्रयास करें। यह परिसर संयम विहार है, यहाँ संयम की प्रेरणा के स्वर मुखर होते रहें और संयम की चेतना का विकास होता रहे।
पूज्य गुरुदेव की अमृत देशना से पूर्व साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने मंगल उद्बोधन में कहा कि भारतीय संस्कृति में चिंतामणि रत्न, कल्पवृक्ष और कामधेनू को दुर्लभ माना गया है, इनका अपना महत्व भी है। किन्तु सबसे अधिक दुर्लभ है - सज्जन सत्संग। जिसे सज्जन का सत्संग मिलता है, वह व्यक्ति धन्य हो जाता है। जब व्यक्ति को महान पुरुषों का सान्निध्य मिलता है, तो उसकी दशा और दिशा दोनों बदल सकती है। सूरत वासियों को महापुरुष का सान्निध्य व उनकी वाणी सुनने का अवसर मिल रहा है।
आचार्यवर के प्रवचन से एक नई दृष्टि, नया विचार और नया चिंतन प्राप्त होता है जिससे ज्ञानवर्धन तो होता ही है साथ ही साधना में विकास करने के सूत्र भी प्राप्त होते हैं। परम पूज्य आचार्यवर सूरत में चार महीनों तक अमृत की वर्षा करने वाले हैं, आप अपने ह्रदय के पात्र को खुला रख कर आचार्यप्रवर की वाणी को सुनें और अपने ह्रदय में अमृत का संचय करें।
पूज्यवर के नागरिक अभिनन्दन के कार्यक्रम में आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के सदस्यों ने मंगल गीत का सुमधुर संगान किया।
जनोद्धारक आचार्य प्रवर की यात्रा की झलकियों को डॉक्यूमेंट्री फिल्म द्वारा प्रदर्शित किया गया। अभिनन्दन समिति की ओर से भरत शाह ने अपने विचार व्यक्त किये। मेयर दक्षेश मावाणी, सांसद मुकेश दलाल, पद्मश्री मथुरभाई सवानी आदि ने सूरत शहर की प्रतीकात्मक चाबी पूज्य प्रवर को उपहृत की।
अभिनन्दन कार्यक्रम के सन्दर्भ में पूज्यप्रवर ने फ़रमाया कि इस कार्यक्रम में थोड़ी नवीनता लगी, अभिनन्दन कार्यक्रम में चाबी देने की बात कई बार देखी है, अभिनन्दन पत्र भी कई बार देखा है पर अभिनन्दन पत्र और चाबी दोनों एक साथ यहाँ सूरत में देखा है। अभिनन्दन पत्र भी चाबी के रूप में है। यह चाबी सद्भावना, नैतिकता और नशा मुक्ति की चाबी बन समस्याओं और अपराध के तालों को दूर कर आनंद और शांति का ताला खोलने के काम आए। सूरत में खूब आध्यात्मिक-धार्मिक जागरणा होती रहे। समस्याओं का शांति से समाधान का प्रयास रहे।
बहुश्रुत परिषद् सदस्य मुनि उदितकुमारजी ने अभिनंदन समारोह में अपने वक्तव्य में कहा - अभिनन्दन उसी का होता है जिसमें संतता है, महानता है, गतिशीलता है और जो हर पल - हर क्षण सबको प्रेरणा प्रदान करता है। इस भेंट की गई चाबी के माध्यम से आचार्य प्रवर की प्रेरणा से सूरत शहर की विकृतियां दूर हो तथा यहाँ धर्म के संस्कार विकसित होते रहें। आचार्य प्रवर का व्यक्तित्व महान है, विशाल है। आचार्य प्रवर का सूरत पदार्पण यहाँ की जनता के लिए विशेष प्रेरणा का काम करेगा।
मेयर दक्षेश मावाणी, सांसद मुकेश दलाल, डॉ जीतूभाई शाह, जय छेड़ा, सूरत शहर बीजेपी महामंत्री किशोर बिंदल, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सुरेश मास्टर ने पूज्य प्रवर के प्रति अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। भगवान महावीर यूनिवर्सिटी की ओर से संजय जैन, अनिल जैन ने पूज्य प्रवर का अभिनन्दन किया। नागरिक अभिनन्दन पत्र का वाचन अंकेश भाई शाह ने एवं आभार ज्ञापन संजय सुराणा ने किया। नागरिक अभिनन्दन कार्यक्रम का संचालन नानालाल राठौड़ एवं विश्वेश संघवी ने किया।