श्रमण धर्म से संभव है इहलोकहित, परलोकहित एवं सुगति की प्राप्ति: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

श्रमण धर्म से संभव है इहलोकहित, परलोकहित एवं सुगति की प्राप्ति: आचार्यश्री महाश्रमण

अध्यात्म के महासागर आचार्यश्री महाश्रमणजी ने जिनवाणी का रसास्वाद कराते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में शिक्षा का, ज्ञान का महत्वपूर्ण स्थान है। शिक्षा अनेक विषयों की हो सकती है। अध्यात्म विद्या भी एक ज्ञान होता है, लौकिक विषयों का भी शिक्षण चलता है। विद्यालयों में विद्यार्थी शिक्षा का अध्ययन करते हैं, विद्यावान बनने की दिशा में वे प्रयास करते हैं। ज्ञान अपने आप में एक पवित्र तत्त्व है। तात्विक दृष्टि से ज्ञान के दो प्रकार हैं- क्षायोपशमिक ज्ञान और क्षायिक ज्ञान। सर्वज्ञता और केवलज्ञान होना क्षायिक ज्ञान होता है। क्षायोपशमिक ज्ञान असंपूर्ण ज्ञान होता है। पांच ज्ञान में प्रथम चार ज्ञान क्षायोपशमिक भाव वाले ज्ञान होते हैं, केवलज्ञान क्षायिक भाव वाला होता है। दोनों ही ज्ञान ज्ञानावरणीय कर्म के विलय से होते हैं, एक में थोड़ा विलय है, एक में पूरा विलय है।
ज्ञानावरणीय कर्म हमारे ज्ञान के गुण पर आवरण डालने वाला होता है। चूंकि ज्ञान क्षायिक या क्षायोपशमिक भाव है, इसलिए ज्ञान अपने आप में पवित्र होता है। ज्ञान कभी औपशमिक भाव नहीं होता, ज्ञान औदयिक भाव भी नहीं होता, ज्ञान तो क्षायिक या क्षायोपशमिक भाव वाला ही होगा, पारिणामिक भाव तो साथ में होता ही है। विद्या ग्रहण करने में ज्ञानावरणीय कर्म का विलय तो अपेक्षित है ही पर निमित्त रूप में कोई ज्ञान देने वाला गुरु हो और ज्ञान लेने वाला हो तो ज्ञान प्राप्त हो सकता है। ज्ञान लेने वाले में पात्रता और ज्ञान देने वाले में सक्षमता होनी चाहिए, साथ में सहायक सामग्री और आश्रय भी चाहिए। ज्ञान का कोई ओर-छोर नहीं है, ज्ञान तो अनन्त है। इतने बड़े ज्ञान को कैसे प्राप्त करें? समय थोड़ा है, पूरा जीवन भी लगा दें तो भी ज्ञान पूरा प्राप्त नहीं किया जा सकता। काल सीमित है, उसमें भी विघ्न-बाधायें आ सकती है। समाधान दिया गया कि जैसे हंस दूध और पानी में से केवल दूध को ग्रहण कर लेता है वैसे जो सारभूत हो उन बातों को ग्रहण कर लेना चाहिए।
शास्त्र में कहा गया कि अध्यात्म विद्या और श्रमण धर्म का ज्ञान प्राप्त करने के लिए बहुश्रुत की उपासना करो। श्रमण धर्म से इहलोक और परलोक में भी हित होता है, सुगति की प्राप्ति होती है। ज्ञान की प्राप्ति में प्रश्न करना भी एक सहायक तत्त्व होता है। स्वाध्याय का एक भेद है- पृच्छना। समाधान देने वाला हो तो प्रश्न करना सार्थक है। प्राचीन ज्ञान हमें आगम आदि ग्रन्थों से प्राप्त हो सकता है। वर्तमान में तो ज्ञान प्राप्ति के अनेक साधन उपलब्ध हैं पर आधुनिक तकनीक का अवांछनीय दुरुपयोग न हो। ज्ञानशाला के माध्यम से भी छोटे-छोटे बच्चों को अध्यात्म का ज्ञान दिया जाता है। उनका जीवन सुसंस्कारों से सुरक्षित रहे। कितने प्रशिक्षक-प्रशिक्षिकाएं ज्ञानार्थियों को प्रशिक्षण देते हैं।
इहलोकहित, परलोकहित और सुगति की प्राप्ति श्रमण धर्म से हो सकती है, उस श्रमण धर्म को हमें जानना है। इसलिए बहुश्रुत की उपासना कर प्रश्न करें। हम ज्ञान की दिशा में आगे बढ़ें। पूज्य प्रवर के अभिनंदन में बाबूलाल भोगर, अनिल बोथरा, निर्मल चपलोत, गौतम आंचलिया, सोनू बाफना, प्रदीप गंग, विमल लोढ़ा, लक्ष्मीलाल गोखरू, फूलचंद चत्रावत, राजेश सुराणा, कनक बरमेचा, गणपत भंसाली, चंपक भाई, प्रवीण भाई, अर्जुन मेडतवाल, शैलेश झवेरी, राजा बाबू एवं दिव्य भास्कर के एडिटर मृगांक कुमार ने अपने विचार व्यक्त किए। दैनिक भास्कर के चीफ एडिटर मुकेश शर्मा एवं अन्य व्यक्तियों ने दिव्य भास्कर की प्रति गुरुदेव को समर्पित की। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के सलाहकार अजय भुतोडिया ने भी अपने विचार व्यक्त किए। प्रवास व्यवस्था समिति, उधना महिला मंडल, कन्या मंडल, पर्वतपाटिया कन्या मंडल, अणुव्रत समिति के सदस्यों ने पृथक-पृथक गीत की प्रस्तुति दी।