भाई-बहन के स्नेह का पर्व रक्षाबन्धन

भाई-बहन के स्नेह का पर्व रक्षाबन्धन

भारतीय संस्कृति पर्व प्रधान है। रक्षाबंधन लोक संस्कृति से जुड़ा हुआ पर्व है। जो भारत के सभी प्रान्तों, शहरों व गांवो में मनाया जाता है। यह पर्व निश्चल प्रेम व सौहार्द का सूचक है। यह मन में विराट भावना को जगाता है।
इस दिन बहन भाई को राखी बांधकर स्नेह के साथ उज्जवल भविष्य एवं दीर्घायु की मंगल कामना करती है। भाई हर स्थिति में बहन को सुरक्षा का आश्वासन देता है। यह कच्चा धागा है लेकिन इसमें त्याग और बलिदान की भावना छिपी हुई है। भाई बहिन के पवित्र रिश्तों को उजागर करने वाला यह पर्व श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाता है।
रक्षा बन्धन पर्व की शुरूआत के विषय में वेद, पुराणों में अनेक घटनायें मिलती है। यह भी माना जाता था कि यह पर्व सिर्फ भाई बहन तक ही सीमित नही था। सुरक्षा संकल्प के साथ ऋषि-मुनि राजाओं के सूत्र बांधते थे। पत्नियां पति के, व्यापारी बही खाते पर राखी बांधती तथा ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्यों के हाथ पर राखी बांध कर धर्म की रक्षा का वचन लेते।
प्रत्येक पर्व व त्यौहार के पीछे कोई घटना अवश्य होती है। रक्षाबन्धन भी इससे अछूता नही हैं। कहा जाता है कि एक बार देवता और असुरों के बीच युद्ध चल रहा था। यह युद्ध बारह वर्षों तक चलता रहा। इसमें देवता हारने लगे तो असुरों को जीत के आसार दिखाई देने लगे। इन्द्र भी निराश होकर सोचने लगे कि अब वह क्या करें, समाधान के लिए अपने गुरु बृहस्पति से विचार विमर्श किया। बृहस्पति ने इन्द्र की वेदना सुनकर उसे रक्षा विधान करने को कहा। इन्द्राणी ने श्रावण पूर्णिमा को बीजों से शास्त्रीय विधि से एक रक्षा कवच तैयार करवाया तथा उसे इन्द्र की दाहिनी कलई पर बांधकर युद्ध में लड़ने के लिए भेज दिया इसके प्रभाव से दानव भाग खड़े हुए और इन्द्र की विजय हुई। माना जाता है कि राखी बांधने का सूत्रपात यही से शुरू हुआ। एक बार श्री कृष्ण के हाथ में चोट लग गई जिससे खून की धार बहने लगी। द्रौपदी से यह देखा नहीं गया उसने तुरन्त अपनी साड़ी का पल्ला फाड़कर हाथ में बांध दिया जिससे खून बंद हो गया। समयान्तर बाद जब दुर्योधन ने द्रोपदी का चीरहरण किया तब श्री कृष्ण इस बंधन का उपकार चुकाया। यह प्रसंग भी रक्षाबन्धन की महत्ता प्रतिपादित करता है।
मध्यकालीन इतिहास की घटना है। मुगलकालीन शासन में गुजरात शासक बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। चित्तौड़ की महारानी कर्णावती ने सुरक्षा के लिए दिल्ली के मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेजकर भाई बनाया। हुमायूं ने राखी तहेदिल से स्वीकार कर चित्तौड़ को बहादुरशाह के आक्रमण से बचाया और राखी का मोल चुकाया। तब से यह प्रथा प्रचलित है।
रक्षाबंधन की पवित्र परम्परा को हम औपचारिकता के साथ न जोडे। स्वार्थ, अहं और प्रदर्शन की रस्म अदा न करें। शील, चारित्र और सदाचार के रक्षा कवच का
निर्माण करने वाले राखी के उपहार को स्वीकारें जिससे जिन्दगी का हर पल प्रेम, सौहार्द और मैत्री के स्वस्तिक रचता रहें।