265वें तेरापंथ स्थापना दिवस पर विविध आयोजन
भिक्षु समाधि स्थल संस्थान सिरियारी के हेम अतिथि भवन प्रांगण में 'शासनश्री' मुनि मणिलालजी के सान्निध्य में 265वां तेरापंथ स्थापना दिवस का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में नमस्कार महामंत्र के पश्चात् सामूहिक ऊँ भिक्षु जप का अनुष्ठान किया गया। मुनि चैतन्य कुमार ‘अमन’ ने इस अवसर पर कहा समाज और राष्ट्र में अनेक प्रकार की क्रान्ति होती रहती है। हरित क्रान्ति, जल क्रान्ति, अन्न क्रान्ति आदि, किन्तु धर्मक्षेत्र में आचार के प्रति होने वाली यह विशेष क्रान्ति है। आचार्य मिक्षु की धर्म क्रान्ति का फलित है- तेरापंथ। तेरापंथ एक आचार एक विचार और एक आचार्य केन्द्रित है। तेरापंथ आज्ञा, अनुशासन, मर्यादा और व्यवस्था इन चार पावों पर खड़ा है। तेरापंथ का महल जिसमें सात सकार यानि शिक्षा, शोध, साधना, सेवा, सहयोग, सहानुभूति और सहिष्णुता निरन्तर चलती है। मुनिश्री ने आगे कहा- आज गुरुपूर्णिमा है। भारतीय परम्परा में भगवान से भी अधिक गुरू को महत्त्व दिया गया है, क्योंकि गुरु ही होते हैं जो शिष्य को भवसागर से पार उतार देते हैं। मुनि धर्मेशकुमारजी ने कहा- आचार्य भिक्षु दूरदृष्टा आचार्य थे। उन्होंने आज के दिन तेरापंथ की स्थापना की। उन्होंने धर्मसंघ में मर्यादा का सूत्रपात किया।
एक आचार्य के नेतृत्व में चलने वाला यह तेरापंथ जो मात्र सात साधुओं से प्रारंभ हुआ, जिसमें आज सात सौ से अधिक साधु साध्वियां तथा लाखों श्रावक-श्राविकाएं अपनी धर्मसाधना कर रहे हैं। इस अवसर पर भिक्षु संस्थान के व्यवस्थापक महावीर सिंह, तेजरतन चौरड़िया, जया सामसुखा ने गीत एवं विचार प्रस्तुत किए।