त्रिदिवसीय तत्वज्ञान कार्यशाला का आयोजन

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त्रिदिवसीय तत्वज्ञान कार्यशाला का आयोजन

डॉ. साध्वी परमयशाजी ने त्रिदिवसीय तत्वज्ञान कार्यशाला में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि शिखर पर पहुंचने के लिए आत्माविश्वास चाहिए, उत्साह, उमंग, ऊर्जा का अहसास चाहिए। साध्वीश्री ने कहा कि शुभ-अशुभ प्रवृत्ति के द्वारा आकृष्ट पुदगल स्कन्ध आत्मा के साथ एकीभूत हो जाते हैं, वे कर्म कहलाते हैं। कर्मों का एक छत्र साम्राज्य है, जिसे शूरवीर ही जीत सकते हैं।
आत्मा की ज्ञान चेतना को आवृत्त करने वाला ज्ञानावरणीय कर्म है। ज्ञान या ज्ञानी की आशातना करना, निंदा करना, ज्ञान प्राप्ति में अंतराय देना, ज्ञान या ज्ञानी से द्वेष रखना, ये ज्ञानावरणीय कर्म बंध के कारण हैं। शकडाल की बेटियों की विलक्षण बुद्धि थी। न्यूटन प्रयासों से आसमान की ऊँचाई छूने वाला बन गया। हर इंसान न्यूटन की तरह बन सकता है। मेमोरी पॉवर वीक क्यों? इसका हेतु है ज्ञान चेतना पर आवरण। हमारे ब्रेन के दो डिपार्टमेंट हैं राइट हेमिस्फियर जो अध्यात्म विद्या का सेंटर है। लेफ्ट हेमिस्फियर जो विज्ञान भूगोल-खगोल गणित आदि का नियामक है। जब हम समवृति श्वास प्रेक्षा करते हैं तो ब्रेन के दोनों विभाग सक्रिय रहते हैं। यादाश्त को बढ़ाने के लिए ज्ञान मुद्रा का प्रयोग करें। मेरे ज्ञान का विकास हो रहा है, बार-बार ऐसी अनुप्रेक्षा करें। संकल्प इच्छा शक्ति के द्वारा ज्ञान चेतना का जागरण करें।
आपने आगे कहा कि आत्मा की दर्शन चेतना को आवृत्त करता है- दर्शनावरणीय कर्म। सुख-दुख की अनुभूति में हेतुभूत है- वेदनीय कर्म। चेतना को विकृत करने वाला है- मोहनीय कर्म। आयुष्य कर्म उम्र का निर्धारण करता है। शरीर संस्थान में नाम कर्म हेतु भूत बनता है। उच्च-नीच, शुभ-अशुभ का निमित्त है गोत्र कर्म। आत्मशक्ति की उपलब्धि में बाधादायक है-अंतराय कर्म। डॉ. साध्वी परमयशाजी, साध्वी विनम्रयशाजी, साध्वी मुक्ताप्रभाजी और साध्वी कुमुदप्रभाजी ने ‘कोऽहं से सोऽहं की यात्रा तत्वज्ञान सिखाए’ गीत का संगान किया। साध्वी मुक्ताप्रभाजी ने चार गति के बारे में बताते हुए कहा कि हम दो गति पर सदा-सदा के लिए ताला लगा दें और एक दिन ऐसा आए कि हम सब शब्दातीत, मनानीत, भावातीत बन जाएँ।
त्रिदिवसीय तत्वज्ञान कार्यशाला के अंतिम दिन ‘तत्वज्ञान से भवसागर तरो’ प्रतियोगिता का समायोजन हुआ। प्रतियोगिता में 7 ग्रुप के माध्यम से श्रावक-श्राविकाओं ने प्रतियोगिता में भाग लिया।।