ज्ञान का कोई अंत नहीं है
उग्रविहारी तपोमुर्ति मुनि कमलकुमार जी के सान्निध्य में पच्चीस बोल की कार्यशाला का आयोजन किया गया। उपासक पिंकेश जैन ने पच्चीस बोल के विषय में विविध प्रकार के दृष्टांतों के माध्यम से बताने का प्रयास किया। मुनिश्री ने अपने वक्तव्य में कहा कि जैन धर्म के तत्व संक्षेप और विस्तार दोनों प्रकार से समझे जा सकते हैं। सार रूप में यह संसार जीव और अजीव दो मार्गों में विभक्त किया जा सकता है और कोई विस्तार से समझना चाहता है तो इसके पांच सौ तिरसठ भेद भी किये जा सकते हैं। इस प्रकार जिसके पास जितना समय हो, जितनी क्षमता हो, उसी प्रकार उसे समझाया जा सकता है। मुनिश्री ने कहा कि सांसों का अंत आ सकता है पर ज्ञान का कोई अंत नहीं है, इसीलिए ज्ञान को अनंत कहा जाता है। जितना ज्ञान मिले उसे हम ग्रहण करने का प्रयास करें। सभा के अध्यक्ष दलपत इंटोदिया ने आभार ज्ञापन किया। मुनि नमिकुमार जी ने 49 दिन की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। कार्यक्रम में सभा महिला मंडल, युवक परिषद, किशोर मंगल, कन्या मंडल ने भी सामायिक सहित भाग लिया।