आचार्य श्री तुलसी का उपहार- बच्चों के लिए वरदान :  आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आचार्य श्री तुलसी का उपहार- बच्चों के लिए वरदान : आचार्यश्री महाश्रमण

युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य में सिल्क सिटी सूरत का संयम विहार ज्ञानशाला दिवस के अवसर पर दक्षिण गुजरात से हजारों ज्ञानार्थियों की अद्भुत प्रस्तुति से गुंजायमान हो उठा। जिस प्रकार 15 अगस्त और 26 जनवरी को भारत की शौर्य और संस्कृति की गाथा भारतीय सेना एवं चयनित जनता प्रस्तुत करती है, ठीक उसी प्रकार, भिन्न-भिन्न परिधानों में परेड के रूप में 12 देवलोक के नाम से 12 बटालियन के रूप में तेरापंथ धर्म संघ की अमृत गाथा, संघीय संस्थाओं एवं उनके आयामों को नन्हे-नन्हे ज्ञानशाला के ज्ञानार्थी प्रस्तुत कर रहे थे।
आध्यात्मिक संस्कारों के प्रदाता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी ने ज्ञानार्थियों को फरमाया कि हमें अच्छा जीवन जीना चाहिए उसके लिए अच्छे संस्कार भी जरूरी है। विद्यालय, पारिवारिक जन आदि के द्वारा अच्छे संस्कार दिए जा सकते हैं। दादा-दादी, नाना-नानी एवं अन्य परिजन बच्चों पर संस्कारों की वर्षा करते रहें। जिस प्रकार बारिश से खेत की फसल अच्छी होती है, उसी प्रकार चारों ओर से बच्चों पर संस्कारों की बारिश हो तो बच्चे संस्कारी बन सकते हैं। साधु-साध्वियां और समणियां भी अच्छे संस्कार देने में सहायक बन सकते हैं।
ज्ञानशाला तेरापंथ धर्म संघ का एक महत्वपूर्ण उपक्रम है। इसका बीजारोपण गणाधिपति पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी ने किया था। संस्था शिरोमणि जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा की एक प्रवृत्ति है- ज्ञानशाला, जो स्थानीय तेरापंथी सभाओं और अन्य संस्थाओं से जुड़ी हुई है। ज्ञानशाला के उपक्रम का विकास हुआ है। इसका तंत्र-प्रबंधन अच्छा है। छोटे बच्चे भी धार्मिक प्रवृत्ति से इसके माध्यम से जुड़ते हैं। अनेक विषयों पर ज्ञानार्थियों की प्रस्तुति भी समय-समय पर होती रहती है। ज्ञानशाला से जुड़े रहने के कारण बच्चे कुसंस्कारों से बचे रह सकते हैं। अभिभावक भी अपने बच्चों को ज्ञानशाला में भेजते हैं। ज्ञानशाला सेवा देने वाले प्रशिक्षक आदि सेवा देते हैं। धार्मिक सेवा एक अच्छी बात है।
ज्ञानशाला के कारण और भी नये उपक्रम धर्मसंघ में शुरू हुए हैं। संकल्प भी बच्चों द्वारा बोले जाते हैं। संकल्प संस्कार निर्माण करने वाले होते हैं। बच्चे समाज और देश का भविष्य होते हैं। मंत्र दीक्षा में भी बच्चों को संकल्प दिलाये जाते हैं। ज्ञानशाला के बच्चे संस्थाओं के अध्यक्ष बनें अथवा न बनें, कोई पद पाएं अथवा न पाएं, किन्तु तेरापंथ समाज के अच्छे श्रावक-श्राविका, अथवा साधु-साध्वी, समण-समणियां अवश्य बनें। हमारे अनेक ज्ञानशाला से जुड़े लोग धर्मसंघ में चारित्रात्माओं के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। सूरत जैसे शहर की ज्ञानशाला और ज्ञानशाला के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक भी सूरत में हैं तो फिर कहना ही क्या। ज्ञानशाला के बच्चों का अच्छा रूप सामने आया है। व्यवस्था तंत्र, प्रशिक्षण तंत्र और अभिभावकों का योगदान होने से ज्ञानशाला का रूप सामने आता है। ज्ञानार्थियों व ज्ञानशालाओं की संख्या बढ़ती रहे, अच्छा विकास हो और यह बच्चों के लिए वरदान साबित हो।
मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में आगम अनुसंधाता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम पर मंगल देशना प्रदान करते हुए कहा कि हमारी दुनिया में अहिंसा भी जीवित है और हिंसा भी विद्यमान है। अहिंसा कभी भी पूर्णतया समाप्त नहीं होती और यह भी मुश्किल है कि हिंसा पूरी तरह से समाप्त हो जाए। कहीं हिंसा ज्यादा दिखाई दे सकती है, तो कहीं अहिंसा का साम्राज्य प्रतीत हो सकता है। यदि हिंसा है तो अहिंसा का दीप जलाने का प्रयास किया जाना चाहिए। कोई व्यक्ति अपने विचारों के कारण कोई भय के कारण तो कोई आत्मरक्षा के संदर्भ में हिंसा में प्रवृत्त हो सकता है। बच्चों में भी हिंसा के संस्कार उत्पन्न हो सकते हैं, लेकिन अच्छे संस्कार भी उभर सकते हैं। बाल पीढ़ी में हिंसा के संस्कार क्षीण हों और अच्छे संस्कार उजागर हों। शिक्षा जगत के लिए जीवन विज्ञान का कार्यक्रम चलता है, जिससे विद्यार्थियों में बचपन से ही अच्छे संस्कार दिए जा सकते हैं। विद्यालयों में संस्कार निर्माण का कोर्स चलाया जाना चाहिए। अभिभावक भी अच्छे संस्कार देने का आधार बन सकते हैं।
साध्वीवर्या संबुद्धयशाजी ने ज्ञानार्थियों को रोचक कहानी के माध्यम से समझाया कि ज्ञानशाला के माध्यम से संस्कारों की जड़ों को मजबूत किया जा सकता है। ये संस्कार लेकर ही बच्चे आगे जाकर परिवार, समाज व देश हित में कार्य करते हैं। ज्ञानशाला के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि उदितकुमारजी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ज्ञानशाला दिवस आचार्यश्री की विशेष कृपा का परिणाम है। असाढ़ा में कल्याण परिषद की मीटिंग में भाद्रपद माह का पहला रविवार ज्ञानशाला दिवस के रूप में मनाना तय हुआ था। आंचलिक संयोजक प्रवीण मेड़तवाल, ज्ञानशाला के राष्ट्रीय संयोजक सोहनराज चौपड़ा और प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष संजय सुराणा ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। ज्ञानशाला दिवस के कार्यक्रम की संयोजना में ज्ञानशाला के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि उदितकुमार जी, मुनि रम्यकुमार जी का विशेष मार्गदर्शन और प्रेरणा रही। कार्यक्रम में दक्षिण गुजरात की सिटिलाइट, उधना, लिंबायत, पर्वत पाटिया, पांडेसरा, अड़ाजन, अमरोली, वराछा, बारडोली, बडौदा, चलथान, चिखली, डूँगरी, कामरेज, किम, नवसारी, पलसाना, सचिन, सायन, त्रिकमनगर, वलसाड, वापी आदि ज्ञानशालाओं के लगभग 1008 ज्ञानार्थी तथा 300 के क़रीब प्रशिक्षिकाओं की सहभागिता रही।