व्रत से व्यक्ति उज्ज्वलता को प्राप्त होता है
अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के निर्देशन में युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि जिनेशकुमार जी ठाणा 3 के सान्निध्य में बारह व्रत दीक्षा कार्यशाला का आयोजन प्रेक्षा विहार में तेरापंथ युवक परिषद् दक्षिण हावड़ा द्वारा किया गया। इस अवसर पर उद्बोधन देते हुए मुनि जिनेशकुमार जी ने कहा भारतीय संस्कृति व्रत प्रधान संस्कृति है। व्रत भारतीय संस्कृति की आत्मा है। व्रत जीवन का सुरक्षा कवच है। व्रत जीवन की बुनियाद है। स्वयं से स्वयं को जोड़ने की एक दिव्य प्रेरणा है। संयम में प्रवृन्त होने के लिए व्रत की उपयोगिता उपादेय है। भगवान महावीर ने दो प्रकार का धर्म बताया - अणगार धर्म व आगार धर्म। भगवान ने श्रावक के लिए 12 व्रतों का विधान किया है। उसे आगार धर्म कहा है। एक गृहस्थ भी बारह व्रतों के माध्यम से धर्म की आराधना कर सकता है, वह सुगति का अधिकारी बन सकता है। श्रावक को व्रत के आधार पर तीर्थ में लिया गया है।
मुनिश्री ने आगे कहा- व्रत का अर्थ है- इच्छा का नियंत्रण। व्यक्ति यदि साधु नहीं बन सकता है तो कम से कम श्रावक के बारह व्रत स्वीकार करने चाहिए। व्रत धारण करने से व्यक्ति हल्का हो जाता है, मन में समाधि रहती है, सुख और शांति का संचार होता है। उपभोक्तावादी संस्कृति में व्रतों में अनुष्ठान रखना अपने आप में श्रेष्ठ है। व्रत से व्यक्ति उज्ज्वलता को प्राप्त होता है। कार्यक्रम का शुभारंभ मुनि कुणालकुमार जी के मंगल संगान से हुआ। स्वागत भाषण उपाध्यक्ष पारस बरड़िया ने व आभार सहमंत्री सुनील नाहटा ने किया। संचालन मुनि कुणालकुमार जी ने किया।