उवसग्गहर स्तोत्र का सामूहिक जप अनुष्ठान

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उवसग्गहर स्तोत्र का सामूहिक जप अनुष्ठान

महातपस्वी युग प्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी मंजूयशा जी ठाणा-4 के सान्निध्य में संकट निवारक, विघ्न विनाशक, शांति प्रदायक ‘उवसग्गहर स्तोत्र’ का सामूहिक जप अनुष्ठान तेरापंथ भवन नाथद्वारा में हुआ। इसमें स्वास्तिक आकार में पति-पत्नी के जोड़े और कुर्सी पर बैठने वाले दंपति तथा अन्य भाई-बहन, कुल 82 जोड़े संभागी बने। इस अनुष्ठान में साध्वी वृंद और संभागी जोड़ों ने एक लय, एक स्वर के साथ बीज मंत्र का 108 बार एवं उवसग्गहर स्तोत्र का 27 बार तन्मयता व एकाग्रता के साथ जप किया। साध्वीश्री ने अनुष्ठान से पूर्व इसका विशेष महत्व बताते हुए इसकी उपयोगिता, विधि, लाभ आदि को विस्तार से बताते हुए कहा कि उपसर्गहर स्तोत्र की रचना श्रुत केवली प्रभावी आचार्य भद्रबाहु स्वामी ने जैन शासन पर आए संकट के समय की। इस स्तोत्र में जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की स्तुति में रचा गया। इसमें अद्भुत शक्ति बीज निहित है। इसको तन्मयता पूर्वक, श्रद्धा व भक्ति पूर्वक करने से आंतरिक ऊर्जा द्वारा साधक अपना अभीष्ट कार्य पूर्ण सफलता पूर्वक सिद्ध कर लेता है। साध्वीश्री ने अनेक प्रेरणादाई घटनाओं द्वारा इस स्तोत्र की उपयोगिता को समझाने का प्रयास किया। तेरापंथ सभा के उपाध्यक्ष प्रियांक तलेसरा ने अनुष्ठान में संभागी सभी भाई-बहनों एवं पूरे जैन समाज के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया।