जीवन में अनुकूलतानुसार स्वाध्याय करना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण
लोहामाकोटि, 2 जून, 2021
आत्मरमण साधक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने प्रेरणा पाथेय प्रदान
करते हुए फरमाया कि चार बातें शास्त्र
के श्लोक में बताई गई हैं। तीन बातें नकारात्मक रूप में हैं, एक अंतिम बात विधायक-सकारात्मक रूप में है। नकारात्मक रूप मे तीन बातों में से पहली बात बताई गईनींद को बहुमान न दें। उपयोग में लेना एक बात होती है। बहुमान देना अलग बात हो जाती है।
बहुमान हर किसी को नहीं मिलना चाहिए। उपयोग लेना अलग है, पर सबको बहुमान देना आवश्यक भी नहीं और शायद उचित भी नहीं। भोजन आदि गौण चीजें हैं, मुख्य है सेवा देना। जो मुख्य का स्थान है, वहाँ गौण बैठ जाए तो अव्यवस्था हो सकती है। गुरु का अपना स्थान है, शिष्यों का अपना स्थान है। गुरु का स्थान मुख्य है।
नींद कोई मुख्य चीज नहीं है, वह हमारा साध्य नहीं है। वो सहायक है। मूल हमारा अच्छा काम आध्यात्मिक, सेवा, स्वाध्याय आदि मुख्य है। नींद को बहुमान न दें। नींद भी तरीके से लें। अच्छी नींद भी आना एक स्वस्थता और सुख का आयाम है। स्वाभाविक रूप में नींद आ जाए वो अच्छी हो सकती है। नींद लेते समय भी साधना का प्रयोग होता रहे तो नींद साधनामय हो सकती है।
दूसरा नकारात्मक सूत्र है जिसमें निषेध की बात हैसंप्रास-अट्ठहास ज्यादा हास्य न करें। ज्यादा नहीं हँसना चाहिए, हँसने में भी एक सीमा रहनी चाहिए। हँसने में भी स्थिति का ध्यान रखना चाहिए। किसी की गलती देखकर न हँसें। चलने वाला स्खलित हो सकता है, प्रमाद से कोई गिर भी जाए। गिर रहा है, तो उसको कोई संभाल ले। गिर गया तो उसको संभाल लें, हँसी न उड़ाएँ, गलत बात है।
साधु-सज्जन पुरुष गिरे हुए को उठाता है। विद्वान साधु है, बोलने में कहीं गलती हो गई, उसे देखकर हँसे नहीं, उपहास मत करो। मौके पर संकेत कर दो। गलती तो बड़ों से भी हो सकती है पर उपहास न करें।
तीसरी बात हैमैथुन की कथाओं में रमण न करें या फालतू बातों में रस न लें। वाणी का बढ़िया उपयोग करें। ये तीन निषेधात्मक निर्देश आ गए। चौथी सकारात्मक बात है, सदा स्वाध्याय में
रत रहो। नींद ज्यादा लेना, हँसी-मजाक
में समय लगाने या मैथुन की बातों में
रमण करने से स्वाध्याय में बाधा आ
सकती है।
ज्ञान विकास का एक सुंदर माध्यम हैस्वाध्याय। गृहस्थ भी आवश्यक कार्यों के सिवा थोड़ा समय स्वाध्याय में निकाल सके, ऐसा प्रयास करना चाहिए। थोड़ा-थोड़ा पढ़ने से भी हमारा ज्ञान विकसित हो सकता है। सामायिक के लिए समय निकालें तो सामायिक में भी स्वाध्याय हो सकता है। प्रवचन सुनना भी एक तरह का स्वाध्याय है। दोगुना लाभ सामायिक में हो जाता है।
स्वाध्याय कंठस्थ ज्ञान का परिवर्तना के रूप में भी हो सकता है। जो कंठस्थ है, उसका चितारना होता रहे तो ज्ञान पक्का-मजबूत रह सकता है। चितारना
न होने से ज्ञान विस्मृति के गर्त में गिर सकता है।
बालावस्था ज्ञानार्जन का समय है। शैशव में विधाओं का विकास होना चाहिए। गृहस्थ भी ज्ञान को कंठस्थ करने का प्रयास करें। हमें जीवन में जितनी अनुकूलता हो, स्वाध्याय करने का प्रयास करना चाहिए।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में इंद्रचंद पटेल ने अपनी भावना रखी। पूज्यप्रवर का आज का प्रवास इन्हीं के घर में हो
रहा है।