अनुकूल-प्रतिकूल परीषहों में समता रखना है श्रेयस्कर : आचार्यश्री महाश्रमण
पर्वाधिराज पर्युषण का पांचवा दिवस- व्रत चेतना दिवस। अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी ने भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा प्रसंग के अंतर्गत फरमाया की सम्यक्त्व प्राप्ति के तीसरे भव में मरीचि को तृष्णा का परीषह हो गया। चारित्रात्मा परीषहों के संग्राम में विजयी बनें। बाईस परीषह आगम में उल्लेखित हैं। परीषह अनुकूल-प्रतिकूल हो सकते हैं, उनमें समता रखें, यह साधु के लिए श्रेयस्कर होता है। चक्रवर्ती भरत ने एक बार भगवान ऋषभ से पूछा कि क्या कोई दूसरा भी आपकी तरह तीर्थंकर बनने वाला है? भगवान ने फरमाया कि इस परिषद के बाहर तुम्हारा पुत्र मरीचि तीर्थंकर बनेगा, उसके बीच के भवों में वासुदेव भी बनेगा, चक्रवर्ती भी बनेगा। तीन महत्वपूर्ण पदों की खुशियां सुन भरत भी खुश हुए। चक्रवर्ती भरत मरीचि से मिले और भगवान द्वारा बताई गई बातें बताई। मरीचि को भी सुनकर हर्ष हुआ और अंहकार आ गया कि मेरा कुल कितना उच्च है। मेरे दादाजी प्रथम तीर्थंकर बने, मेरे पिता प्रथम चकवर्ती बने, मैं प्रथम वासुदेव बनूंगा, आगे चक्रवती भी बनूंगा और फिर तीर्थंकर भी बनूंगा।
तथ्य को प्रस्तुत करना बुरा नहीं है परंतु उसके साथ अहंकार का होना बुरा है। घमंड पाप कर्म, नीच गोत्र का बंध कराने वाला होता है, आदमी को घमंड नहीं करना चाहिए। अभी तो आदमी पिछली पुण्याई भोग रहा हैै, आगे के लिए क्या कर रहे हो? आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी कहा करते थे कि मैं आगे के लिए ध्यान दे रहा हूँ। हमारा जीवन साधना के लिए समर्पित हो। आत्म-कल्याण के बारेे में चिन्तन करना चाहिये।
व्रत चेतना दिवस के संदर्भ में पूज्य प्रवर ने फरमाया कि व्रत से संवर हो जाता है। श्रावक के देश-विरति हो जाती है। बारह व्रतों को स्वीकार कर पालन करना ऊंची बात है। त्याग में करण, योग का भी महत्व है। साधु केे तो महाव्रतों का तीन करण, तीन योग से त्याग होता है। सुगंमल साधना भी त्याग की काफी अच्छी साधना है। सघन साधना शिविर में भी साधना की बात है। प्रेक्षाध्यान भी एक साधना है। 30 सिंतबर 2024 से प्रेक्षाध्यान कल्याण महोत्सव भी शुरू होने वाला है। अणुव्रत भी नैतिक चेतना का उपक्रम है। सर्वविरति में भी अप्रमाद की चेतना रहे। श्रावक छोटे-छोटे त्याग भी कर सकते हैं, रोज चौदह नियम चितारें। तपस्याएं भी चल रही हैं जो व्रत को पुष्ट करने वाली है। जितनी हमारी त्याग संयम की चेतना बढ़ेगी उतना श्रेयस्कर होगा। साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी ने व्रत चेतना की प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि ठाणं सूत्र में दो प्रकार के धर्मों की व्याख्या मिलती है- श्रुत धर्म और चारित्र धर्म। चारित्र धर्म को पुनः दो भागों में विभक्त किया गया है- अगार धर्म और अणगार धर्म। साधु और श्रावक दोनों ने व्रत के मार्ग को स्वीकार किया है, दोनों वीतरागता के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहते हैं। पर दोनों की गति में, त्याग में तारतम्य होता है। आनन्द आदि श्रावकों ने भगवान से बारह व्रतों को समझा और अपने जीवन में उतारा। आचार्य श्री तुलसी ने व्रत-दीक्षा में बारह व्रतों को सरलता से समझाया है। हम त्याग के रहस्य को समझने का प्रयास करें, त्याग के द्वारा हमारी आत्मिक शक्ति का विकास होता है। मुख्यमुनि श्री महावीरकुमारजी ने संयम धर्म के संदर्भ में सुमधुर गीत का संगान किया। साध्वीवर्या श्री संबुद्धयशाजी ने संयम धर्म पर चर्चा करते हुए कहा कि साधक न किसी से दूर रहे, न किसी के निकट रहे, वह आत्मस्थ रहे।
योगों का निग्रह करना संयम है। संयम की आराधना करने के लिए हमें आत्मा को मलिन बनाने वाले तत्वोें से अलग रहना होगा। स्वभाव से विभाव में ले जाने वाले तत्वों से विरक्ति लेनी होगी। चार प्रकार के संयम बताये गये हैं- मन का संयम, वचन का संयम, काया का संयम, उपकरण संयम। हम आत्मा की उन्नति के लिए अपने जीवन में संयम का विकास करें। मुनि अभिजीतकुमार जी ने भगवान मल्लिनाथ के विषय में अपनी अभिव्यक्ति दी। व्रत चेतना दिवस पर साध्वी मैत्रीयशाजी व साध्वी ख्यातयशाजी ने गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।