समाधि बाहर नहीं हमारे भीतर है

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समाधि बाहर नहीं हमारे भीतर है

तेरापंथ महिला मंडल उदयपुर द्वारा आयोजित चित्त समाधि कार्यशाला में डॉ. साध्वी परमयशा जी ने कहा कि चित्त समाधि खुशहाल रिश्तों का आधार है, रिश्तों का सुरक्षा कवच है। जिस परिवार में तानों उलाहनों का संगीत सितार बजाता है वे सुख समृद्धि के दर्शन नहीं कर सकते। सफलता का सूर्योदय आडंबर, प्रदर्शन चीख, चिल्लाहट, टनटनाहट में नहीं प्रत्युत सद्गुण सुमनों में छुपा है। असमाधिस्थ चित्त कई बीमारियों को आमंत्रण देता है। आपने आगे कहा कि समाधिस्थ चित्त की साधना के उपाय हैं- आशावादी रहें, हंसते-मुस्कुराते रहें, स्वाध्याय-सामायिक का आनंद लें, संगीत की स्वर लहरियों से टेंशन को बाय कहना सीखें, चिंता नहीं चिंतन करें।
साध्वी विनम्रयशा जी ने कहा कि चित्त समाधि में चित्त का अर्थ है चिंतन की प्रशस्त दिशा। समाधि का अर्थ है सहनशीलता का विकास करें। साध्वी मुक्ताप्रभा जी ने कार्यशाला में अपने भाव रखते हुए कहा कि पांच सकार को साकार करने से चित्त समाधि रह सकती है जैसे सेवा, संस्कार, सहिष्णुता, समन्वय और संगठन। इससे पूर्व तेरापंथ महिला मंडल अध्यक्ष सीमा बाबेल ने सभी का स्वागत किया। संगीता पोरवाल ने चित्त समाधि पर योग, प्रेक्षा ध्यान, प्राणायाम के प्रयोग करके सभी को निरंतर करने की प्रेरणा दी। कार्यक्रम का संचालन खुशबू कंठालिया ने किया। आभार तेरापंथ महिला मंडल मंत्री ज्योतिजी कच्छारा ने किया।