वित्त के साथ वृत्त की भी करें सुरक्षा : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

वित्त के साथ वृत्त की भी करें सुरक्षा : आचार्यश्री महाश्रमण

अध्यात्म के श्लाकापुरूष आचार्य श्री महाश्रमण जी ने आयारो आगम की अमृत वर्षा कराते हुए फरमाया कि जिससे होता है, उससें नहीं भी होता है। आदमी पदार्थों के प्रति आसक्त बनता है, इसलिए कि मुझे इसके भोग से सुख मिलेगा। इसलिए पदार्थों को संग्रहित करता है। जिन पदार्थों के भोग से मनुष्य सुख पाना चाहता है वह सुख न भी मिले। कर्मों का योग होता है जिससे भोग नहीं किया जा सकता। इस प्रकार जरूरी नहीं कि अमुक पदार्थ हमारे काम आयेगा। अनेक कारण हैं जिनसे सुख मिल सकता है, नहीं भी मिले। पैसा हमेशा रहेगा, शायद न भी रहें। मोह को जान कर भी अनासक्ति का भाव नहीं लाया जा सकता है। अनेक स्थितियां संसार में होती है कि ये पदार्थ दुःख के कारण बन सकते हैं, मानसिक अशान्ति हो सकती है।
अध्यात्म का संदेश है कि ज्यादा संग्रह मत करो। अनैतिक तरीकों से अर्थार्जन मत करो। इससे पाप का बन्ध होता है। वह अर्थ संताप का कारण बन सकता है। अशुद्ध पैसे से बचने का प्रयास करें। नैतिकता-अनैतिकता के विषय में जागरूकता रहेे। चरित्र की सुरक्षा करें, चरित्रहीन होने से कितने जन्मों तक कठिनाई भोगनी पड़ सकती है। वित्त केे साथ वृत्त की भी सुरक्षा करनी चाहिये। जीविका कमाने में भी धर्म रखने का प्रयास करे। गृहस्थ का सम्बन्ध घर से जुड़ा है, पर धनार्जन
में भी नैतिकता रहे। ईमानदारी रखना एक निधि है। पैसा होने पर भी संयम-सादगी रखना बड़ी बात है। ज्ञान, शिक्षा पर हम ध्यान दें, सद्गुण रूपी आभुषण जीवन में रहें। चेहरा सुंदर है, उसका महत्व कम है, पर स्वस्थता शरीर में होना महत्वपूर्ण है। शरीर की सक्षमता और स्वस्थता का महत्व है। बुद्धिमता, जानकारी का महत्व है। पदार्थों की जितनी आवश्यकता है, उतना उपयोग तो आवश्यक है, पर पदार्थों के प्रति असक्ति ना हो। स्वाद विजय पर ध्यान दें। अन्यथा सुख देने वाली, सुख की अपेक्षा दुःख देने वाली हो सकती है। भगवान महावीर ने कितनी साधना की थी। कुछ उनका अनुसरण करने का प्रयास करें। हम आसक्ति का छोड़ अनासक्ति की साधना करें।
पूज्य प्रवर की सन्निधि में होने जा रही तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम की त्रि-दिवसीय नेशनल कांफ्रेंस के संदर्भ में टीपीएफ के आध्यत्मिक पर्यवेक्षक मुनि रजनीशकुमार जी ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। राष्ट्रीय अध्यक्ष पंकज ओस्तवाल ने अपने दो वर्षीय कार्यकाल में किए गए कार्यों की जानकारी दी। टीपीएफ के चीफ ट्रस्टी चन्देश बाफणा ने आर्थिक प्रगति की जानकारी दी। परम पूज्यवर ने आशीर्वचन फरमाया कि एकता अपने आप में एक शक्ति होती है। टीपीएफ एक ऐसा संगठन है, जो बहुत महत्वपूर्ण है। टीपीएफ का बीज आज वट वृक्ष की तरह सामने आ रहा है।
समाज के योग्य धारकों की इस संगठन मेें पहचान हुई है। टीपीएफ विकासशील संगठन लग रहा है जो तेरापंथ धर्म संघ से जुड़ा हुआ है। धार्मिक प्रवृत्तियां भी चल रही हैं। समाज के बिखरे हुए मोती माला के रूप में आएं हैं, और भी बिखरे मोती हो सकते है, उन्हें भी जोड़ने का प्रयास हो।