संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण

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संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण

साध्वी अणिमाश्रीजी के सान्निध्य में खिलौनी देवी धर्मशाला में पीतमपुरा सभा के तत्वावधान में पर्युषण महापर्व का नवाह्निक कार्यक्रम विशाल उपस्थिति में उत्साह एवं उमंग के साथ मनाया गया।
खाद्य संयम दिवस के अवसर पर साध्वी अणिमाश्री जी ने अपने उद्‌बोधन में कहा- पर्युषण महापर्व आत्मावलोकन का महापर्व है। आत्म-चेतना को झंकृत कर ऊर्ध्वगामी बनाने का स्वर्णिम समय है। संयम के प्रकारों में एक प्रकार है- खाद्य-संयम। हजार रोगों की एक दवा है खाद्य संयम। साध्वी कर्णिका श्री जी ने कहा- पर्युषण के ये आठ दिन आठ कर्मों को क्षय कर सिद्ध ,बुद्ध, मुक्त बनने की प्रेरणा देते हैं। डॉ. साध्वी सुधाप्रभा जी ने कहा- आत्मशुद्धि का उत्प्रेरक महापर्व है- पर्युषण। पीतमपुरा की बहनों ने मंगल संगान किया।
स्वाध्याय दिवस पर सभा को सम्बोधित करते हुए साध्वीश्री ने कहा- मन की शांति, चित्त की शुद्धि एवं निर्विकल्प समाधि का सशक्त आलम्बन स्वाध्याय है। जैसे अरणि में स्थित आग घर्षण के बिना प्रकट नहीं होती वैसे ही आत्मस्थ ज्ञान-दीप स्वाध्याय के बिना प्रज्ज्वलित नहीं होता। जैन शास्त्रों में स्वाध्याय को अंतरंग तप और दुःख मुक्ति का श्रेष्ठतम उपाय माना है।मंगल संगान त्रिनगर सभा के भाई-बहनों ने किया।
सामायिक-दिवस पर साध्वी अणिमाश्री जी ने कहा- भगवान महावीर का जीवन समता की साधना का उत्कृष्ट उदाहरण है। सामायिक की साधना का फलित है- समता। अध्यात्म की साधना का प्रथम सोपान है- सामायिक। प्रतिदिन सामायिक की साधना से जुड़‌कर समता की जीवन में प्राण प्रतिष्ठा करें। साध्वी कर्णिकाश्री जी ने कहा जिसकी चेतना आत्मा में रमण करती है, वह आत्माराम है, जो सिर्फ पदार्थ जगत में ही उलझा रहता है, वह पदार्थाराम है। पर्युषण का यह समय पदार्थाराम से ऊपर उठकर आत्माराम बनने का समय है। मंगल संगान शालीमार बाग सभा ने प्रस्तुत किया।
वाणी संयम-दिवस - साध्वी अणिमाश्री जी ने भगवान महावीर के भवों का रोचक चित्रण करते हुए वाणी-संयम की महत्ता को व्याख्यायित किया। उन्होंने कहा- हम अपने जीवन को बांस नहीं बांसुरी बनाएं। जीवन को आनन्द का उत्सव बनाने का महत्वपूर्ण उपाय है- वाणी संयम। हम इष्ट, मिष्ट एवं शिष्ट भाषा का उपयोग करें। डॉ. साध्वी सुधाप्रभा जी ने कहा जो व्यक्ति ज्यादा बोलता है, उसका मस्तिष्क निष्क्रिय होने लगता है एवं जो मौन करता है या कम बोलता है उसका मस्तिष्क सक्रिय रहता है। जब भी जिन्दगी में महत्वपूर्ण डिसीजन लेना हो तो कम से कम मौन अवश्य करें, आपका डिसीजन आपके अनुकूल ही होगा। कार्यक्रम में मंगल संगान उत्तर-मध्य सभा के भाई-बहनों ने किया।
अणुव्रत चेतना दिवस पर साध्वी अणिमाश्री ने कहा- भगवान महावीर ने दो प्रकार के धर्म की प्ररूपणा की- महाव्रत धर्म एवं अणुव्रत धर्म। अणुव्रत के संयम तत्त्व को ग्रहण कर आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन का सूत्रपात किया। अणुव्रत चरित्र निर्माण के दायित्व का संवाहक एक नैतिक आन्दोलन है। डॉ. साध्वी सुधाप्रभाजी ने कहा- अणुव्रत नैतिक अभियान है, नैतिक ज्योति है, नैतिक प्रेरणा है। साध्वी श्री ने अणुवत के एक-एक नियम की विस्तार से व्याख्या करते हुए परिषद को अणुव्रती बनने का आह्वान किया। साध्वी सुधाप्रभा जी के आह्वान पर पूरी परिषद ने एक साथ खड़े होकर साध्वीश्री से संकल्प स्वीकार किए। मंगल संगान कीर्तिनगर की बहनों ने किया। साध्वीश्री ने जप-दिवस पर मंत्र विज्ञान की महत्ता का प्रतिपादन करते हुए कहा- अध्यात्म साधना का पवित्र उद्देश्य है- चित्त की शुद्धि। चित्त की शुद्धि और सिद्धि के महत्वपूर्ण साधनों में एक साधन है-मंत्र-शक्ति। मंत्र वह होता है, जो मन को शान्त करे। प्रायः प्रत्येक मंत्र की आदि में ऊँ तथा अन्त में नमः का प्रयोग होता है। ऊँ को मंत्र का सेतु माना गया है। नमः को मंत्र-पल्लव की संज्ञा दी गई है। ऊँ ह्रीं को मंत्रशास्त्र का सुमेरु माना गया है।
डॉ. साध्वी सुधाप्रभा जी ने कहा- हमारी जीवन रुपी रेल में कब से मान, माया, लोभ रूपी लुटेरे बैठे हुए हैं, जो जिन्दगी की ट्रेन को पटरी से नीचे उतारने की कोशिश कर रहे हैं। पर्युषण का यह समय ट्रेन को मंजिल तक ले जाने का समय है। मानसरोवर गार्डन सभा ने मंगल संगान किया।
ध्यान दिवस पर साध्वीश्री ने भगवान महावीर के अंतिम भवों का सरस चित्रण करते हुए कहा- भगवान महावीर की साधना हमारी साधना का आधार स्तंभ है। महावीर ने घंटों- घंटों खड़े रहकर ध्यान की साधना कर अपनी आत्मा को साधा। ध्यान से शरीर के अवयवों, स्नायुओं और रक्तकणों में भारी परिवर्तन आता है। ध्यान एक प्रकार का आहार है, जो अन्तर को पुष्ट करता है। एक साथ सतरह तपस्वियों ने साध्वीश्री से बड़ी तपस्या का प्रत्याख्यान किया। साध्वीवृंद ने तपस्वियों की तप अनुमोदना में विभिन्न रागिनियों में गुम्फित गीत का संगान किया। मंगलसंगान उत्तर-पश्चिम दिल्ली की महिला मंडल ने किया।
सम्वत्सरी महापर्व के पवित्र अवसर पर साध्वी अणिमाश्री जी ने अपने उद्‌बोधन में सम्वत्सरी की महत्ता बताते हुए कहा- सम्वत्सरी महापर्व कषायों की आग को अध्यात्म, मैत्री व क्षमा के शीतल जल से शांत करने का समय है। आत्मजगत में नई क्राप्ति उत्पन्न करने एवं इन्द्रिय भोगों पर त्याग का अंकुश लगाने का महापर्व है। साध्वीश्री ने चंदनबाला के रोचक इतिवृत्त की मार्मिक प्रस्तुति दी।
साध्वी अणिमाश्री जी ने तेरापंथ के आचार्यों के जीवनवृत्त को सरस शैली में प्रतिपादित किया। साध्वी कर्णिकाश्री जी ने तीर्थंकर चरित्र का सांगोपांग विवेचन किया। डॉ.साध्वी सुधाप्रभाजी ने जैन धर्म के प्रभावक आचार्यों के चरित्र का चित्रण प्रभावक शैली में किया। साध्वी समत्वयशाजी ने आगम-वाणी का विस्तृत विवेचन किया। साध्वी मैत्रीप्रभाजी ने भगवान महावीर के साधना काल का रोचक चित्रण किया। प्रायः प्रतिदिन साध्वी समत्वयशाजी ने आगमवाणी का रसपान कराते हुए दिवस अनुरूप प्रेरक गीत का संगान किया तथा मंच संचालन साध्वी मैत्रीप्रभा जी ने किया।
खमतखामना के पावन पर्व पर साध्वीश्री ने सच्ची व प्रेरक घटना के माध्यम से जीवन में लगी राग-द्वेष की गांठों को खोलने की प्रेरणा दी। साध्वीश्री ने गुरुदेवश्री, साध्वीप्रमुखाश्रीजी, मुख्यमुनिप्रवर, साध्वीवर्याजी एवं सभी चारित्रात्माओं से तथा दिल्ली में विराजित सभी साधु-साध्वी वृन्द से खमतखामणा किया। अपनी सहवर्तिनी साध्वियों एवं सम्पूर्ण श्रावक समाज एवं उपस्थित सभी सभा-संस्थाओं के पदाधिकारियों का नामोल्लेख करते हुए उनके कार्यों को याद करते हुए खमतखामना किया।