जयाचार्य में उद्यम, बल, बुद्धि, विद्या और पराक्रम एक साथ थे समाविष्ट

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जयाचार्य में उद्यम, बल, बुद्धि, विद्या और पराक्रम एक साथ थे समाविष्ट

पश्चिम, अहमदाबाद। ‘तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमद् जयाचार्य का गुणानुवाद करना हिमालय पर बर्फ़ बेचने के समान है। वे ऐसे प्रज्ञा पुरूष थे जिनमें उद्यम, बल, बुद्धि, विद्या और पराक्रम एक साथ समाविष्ट थे।’ उक्त उद्गार साध्वी मधुस्मिता जी ने व्यक्त किये। साध्वीश्री ने आगे बताया कि तेरापंथ के आद्य प्रणेता आचार्य भिक्षु ने भगवान महावीर के सिद्धांतों पर चलते हुए धर्मसंघ की सुदृढ़ नींव रखी। श्रीमद् जयाचार्य ने आचार्य भिक्षु द्वारा निर्मित संघ सदन को सुव्यवस्थित करने और सही रूप से संघ को सफलतापूर्वक संचालित करने में अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित कर दिया। वे अत्यन्त दूरदर्शी, अनुशासन प्रिय, स्थिर योगी, मूर्द्धन्य साहित्यकार और विरल विनम्रता के लिए सदियों तक स्मरणीय रहेंगे।
उन्होंने मात्र दस वर्ष की आयु में साहित्य सृजन प्रारंभ कर दिया था और कालान्तर में जैन धर्म के अतिविशिष्ट आगम भगवती के साठ हज़ार पद्यों का 500 अलग-अलग राग रागिनियों में राजस्थानी भाषा में पद्यानुवाद किया जो अपने आप में बहुत बड़ा कीर्तिमान है। साध्वी सहजयशा जी ने आश्चर्यकारी और प्रेरक घटनाओं के माध्यम से श्रीमद्जयाचार्य के जीवन पर विशद प्रकाश डाला। कार्यक्रम के प्रारंभ में महिला मंडल की बहनों द्वारा मंगल संगान प्रस्तुत किया गया। सभाध्यक्ष सुरेश दक ने जयाचार्य की विभिन्न विशेषताओं का उल्लेख करते हुए उपस्थित जनसमुदाय को सम्बोधित किया। वरिष्ठ श्राविका पुष्पा सेठिया ने संक्षेप में अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम संचालन राजेन्द्र बोथरा ने किया ।