श्रमण महावीर

स्वाध्याय

श्रमण महावीर

भगवान् महावीर शूलपाणि यक्ष के मन्दिर में उपस्थित है।' समूचे अस्थिकग्राम में यह चर्चा हो रही है कि एक भिक्षु अपने गांव में आया है और वह शूलपाणि यक्ष के मन्दिर में ठहरा है। लोग परस्पर कहने लगे, यह अच्छा नहीं हुआ। बेचारा मारा जाएगा। क्या पुजारी ने उसे मनाही नहीं की? क्या किसी आदमी ने उसे बताया नहीं कि उस स्थान में रात को रहने का अर्थ मौत को बुलावा है। अब क्या हो, रात ढल चुकी है। 'इस समय वहां कौन जाए?' पुजारी और उसके साथियों ने लोगों को बताया कि हमने सारी स्थिति उसे समझा दी थी। वह कोई बहुत ही आग्रही भिक्षु है। हमारे समझाने पर भी उसने वहीं रहने का आग्रह किया। इसका हम क्या करें? यह बात उत्पल तक पहुंची। उसने सोचा, 'कोई साधारण व्यक्ति भयंकर स्थान में रात को ठहर नहीं सकता। स्थिति को जान लेने पर भी वहां ठहरा है तो अवश्य ही कोई महासरव व्यक्ति है।' विचार की गहराई में डुबकी लगाते-लगाते उसके मन में एक विकल्प उत्पन्न हुआ, 'मैंने सुना है कि भगवान् महावीर इसी वर्ष दीक्षित हुए हैं। वे बहुत ही पराक्रमी हैं। कहीं वे ही तो नहीं आए हैं?' काफी रात जाने तक लोग बातें करते रहे। वे सोए तब भी उनके दिल में करुणा जागृत थी। प्रातः काल लोग जल्दी उठे। उषा होते-होते वे मन्दिर में आ पहुंचे। कुछ लोग भगवान् को देखने का कुतूहल लिये आए और कुछ लोग अन्त्येष्टि-संस्कार सम्पन्न करने के लिए। वे सब मन्दिर के दरवाजे में घुसे। वे यह देख आश्चर्य में डूब गए कि भिक्षु अभी जीवित है। उन्हें अपनी आखों पर भरोसा नहीं हुआ। वे कुछ और आगे बड़े, फिर ध्यान से देखा। उन्हें अपनी धारणा से प्रतिकूल ही देखने को मिला कि भिक्षु अभी अच्छी तरह से जीवित है। वे हर्ष-विभोर हो आकाश में उछले। सबने उच्च स्वर से तीन बार कहा 'शान्तं पापं, शान्तं पापं, शान्तं पापं । भिक्षु ! तुम्हारी कृपा से हमारे गांव का उपद्रव मिट गया। भय समाप्त हो गया, अब यहां कोई भय नहीं रहा।'
उत्पल आगे आया। उसने भगवान् के शरीर को देखा, फिर रात की घटना को देखा। वह निमित्त-बल से सारी स्थिति जान गया। वह बोला, 'भन्ते! आज रात को आपने कुछ नींद ली हैं?'
'हां उत्पल।'
'उसमें आपने कुछ स्वप्न देखे हैं?'
'तुम सही हो।'
'भन्ते! आप बहुत बड़े ज्ञानी हैं। उनका फलादेश जानते ही हैं। फिर भी मैं
अपनी उत्कंठा की पूर्ति के लिए कुछ कहना चाहता हूं।'
उत्पल कुछ ध्यानस्थ हुआ। वह अपने मन को निमित्त-विद्या में एकाग्र कर बोला,'भन्ते!'
१. ताल पिशाच को पराजित करने का स्वप्न मोह के क्षीण होने का सूचक है।
२. श्वेत पंख वाले पुंस्कोकिल का स्वप्न शुक्लध्यान के विकास का सूचक है।
३. विचित्र पंखवाले पुंस्कोकिल का स्वप्न अनेकांत दर्शन के प्रतिपादन का है।
४. भन्ते! चौथे स्वप्न का फल मैं नहीं समझ पा रहा हूं।
५. श्वेत गौवर्ग का स्वप्न संघ की समृद्धि का सूचक है।
६. कुसुमित पद्म सरोवर का स्वप्न दिव्यशक्ति की उपस्थिति का सूचक है।
७. समुद्र तैरने का स्वप्न संसार-सिन्धु के पार पाने का सूचक है।
८. सूर्य का स्वप्न कैवल्य की प्राप्ति होने का सूचक है।
9. पर्वत को आंतों से वेष्टित करने का स्वप्न आपके द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों के व्यापक होने का सूचक है।
१०. मेरु पर्वत पर उपस्थिति का स्वप्न धर्म का उच्चतम प्रस्थापना करने सूचक है।
भगवान् ने कहा, 'उत्पल ! तुम्हारा निमित्तज्ञान बहुत विकसित है। तुमने जो स्वप्नार्थ बताए हैं, वे सही हैं। मेरा चौथा (रत्न की दो मालाओं का) स्वप्न साधु-धर्म और गृहस्थ-धर्म इस द्विविध धर्म की स्थापना सूचक है।'