अध्यात्म साधना के लिए छोड़ें परिग्रह की चेतना : आचार्य श्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अध्यात्म साधना के लिए छोड़ें परिग्रह की चेतना : आचार्य श्री महाश्रमण

देश की राजधानी दिल्ली का एक वृहद् संघ चातुर्मास की अर्ज लेकर पूज्य चरणों में पहुंचा। आये दिल्ली के संघ पूज्यवर की सन्निधि में पंहुचा है। दिल्ली विधानसभा स्पीकर रामनिवास गोयल ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी एवं दिल्ली में चातुर्मास हेतु अर्ज की। राज्य सभा सदस्य लहरसिंह सिरोहिया, पंजाब केसरी की चेयर पर्सन किरण चौपड़ा, दिल्ली सभा अध्यक्ष सुखराज सेठिया ने भी पूज्यवर से दिल्ली चातुर्मास की प्रार्थना की। महासभा अध्यक्ष मनसुख सेठिया ने अपने विचार व्यक्त किए। विजयसिंह कोठारी ने अपनी कृति पूज्यवर को समर्पित की।
पूज्यवर ने अनन्त कृपा कराते हुए दिल्ली वासियों के लिए फरमाया - दिल्ली का समुदाय उपस्थित है। चतुर्मास की बात रखी गई है। भगवान महावीर, आचार्यश्री भिक्षु, गुरूदेव तुलसी व आचार्यश्री महाप्रज्ञजी को नमन कर, स्मरण कर, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और स्वास्थ्य आदि की अनुकूलता रही तो सन् 2027 का चतुर्मास दिल्ली में करने का भाव है। दिल्ली वासियों ने पूज्यवर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की।
महावीर समवसरण में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम वाणी का रसास्वाद कराते हुए फरमाया कि आदमी के भीतर अनेक संज्ञाएं-वृत्तियां होती हैं। दुर्वृत्तियां भी होती है और सद्वृत्तियां भी होती है। गुस्सा, छलना, माया, लोभ आदि दुर्वृत्तियां है तो दूसरी ओर शांति-सहिष्णुता, निरहंकारता, सरलता, संतोष आदि सद्वृत्तियां होती है।
प्राणी में कभी दुर्वृत्तियां उभार में हो जाती है तो कई बार सद्वृत्तियां प्राधान्य के साथ रह सकती हैं। जब आदमी वीतराग बन जाता है, तब दुर्वृत्तियां पूर्णतया समाप्त हो जाती हैं। कषाय मुक्त चेतना हो जाती है। साधु में भी कभी-कभी कषाय जागृत हो जाता है। आदमी में ममत्व का भाव, परिग्रह की चेतना भी होती है। परिग्रह की चेतना अनेक दुर्वृत्तियों को पैदा कर सकती है। पदार्थ को छोड़ना भी एक तरह से त्याग हो सकता है पर भीतर से जब तक ममत्व का भाव नहीं छूटता है तो वह अपरिग्रह की चेतना नहीं होती।
मूर्च्छा, ममत्व है, वह परिग्रह है। पदार्थ बाह्य परिग्रह हैं तो मूर्च्छा भीतरी परिग्रह है। परिग्रह की चेतना आदमी को अपराध में ले जा सकती है। बाहर के निमित्त भी मिल सकते हैं पर मूल उपादान कारण है, निमित्त कारण सहायक हो सकता है। ममत्व के अनेक स्तर हो सकते हैं। एक ममत्व सात्विक स्तर का हो सकता है, तो कोई ममत्व असात्विक स्तर का हो सकता है। संप्रदाय गौण है, धर्म प्रमुख है। वैसे ही राष्ट्र प्रमुख है, पार्टियां गौण है। अध्यात्म साधना में तो 'मेरा' भाव भी ताज्य है। नमस्कार महामंत्र, भक्तामर स्तोत्र एवं तत्त्वार्थ सूत्र जैन एकता के रूप में मान्य है। भगवान महावीर 2500वीं निर्वाण शताब्दी पर एक सूत्र, एक ध्वज व एक प्रतीक एकता के रूप में सामने आया था।
हमें अध्यात्म की साधना में जाने के लिए परिग्रह की चेतना को छोड़ना होगा। साधु की अपरिग्रह की बुद्धि रहे। गृहस्थ भी पदार्थ की सीमा करे, उपभोग में संयम रखे। मोह-ममत्व दुःख का कारण बन सकता है। अर्थार्जन में भी ईमानदारी रहे। आदमी जैन हो या अजैन, पर गुडमैन बने। कल से प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष भी प्रारम्भ होने वाला है। प्रेक्षाध्यान से आदमी के कषाय प्रतनूं हो सकते है।
बारह व्रत श्रावकों की जीवन शैली से जुड़े तत्व हैं, जीवन में अहिंसा, संयम और त्याग रहे। गृहस्थों की जीवन शैली प्रशस्त हो। छोटे-छोटे त्याग का क्रम जीवन में रहे। घर में रहते हुए भी साधु जैसा जीवन हो जाये। आत्मा परिग्रह से हल्की बने। आदमी धार्मिक-आध्यात्मिक भावों में ज्यादा से ज्यादा रहने का प्रयास करे। ये शास्त्रों की वाणियां जीवन में परिवर्तन लाने वाली सिद्ध हो सकती है। किताब आदमी की मित्र बन सकती है। नवकार महामंत्र का जप भी मित्र बना रहे। भाव शुद्ध रहें। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि मनुष्य स्वप्न देखता है ओर उसे पूरा करने का प्रयास भी करता है। फिर भी उसका सपना अधूरा रह जाता है, उसके कई कारण हो सकते हैं। उत्तम संकल्प करने वाले अपना कार्य पूरा कर सफलता प्राप्त कर लेते हैं। फिर चाहे उन्हें कितने ही अवरोधों का सामना करना पड़े। पूज्य आचार्यवर भी उत्तम संकल्प के धनी हैं।
किशोर मंडल ने चौबीसी के गीत की प्रस्तुति दी। सूरत के विधायक संदीप देसाई ने पूज्यवर के दर्शन कर अपनी भावना अभिव्यक्त की। नेपाल के गान्धीवादी चिन्तक चन्द्रकिशोर झा, अशोक कुमार बैद ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। बारडोली की ललिता गणेशलाला कुमठ ने 41 दिन की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।