आचार्य भिक्षु के 222वें चरमोत्सव पर विविध कार्यक्रम
साध्वी अणिमाश्री जी के सान्निध्य में भिक्षु चरमोत्सव का भक्तिमय कार्यक्रम खिलौनी देवी धर्मशाला में आयोजित हुआ। साध्वीश्री ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा- सत्य संधित्सु आचार्य भिक्षु संयम, तप और त्याग के जीवंत प्रतीक थे। उनके जीवन में संघर्षों के विकत भूचाल आए पर वह लौहपुरुष विकट परिस्थितियों से घबराए नहीं, रूके नहीं, झुके नहीं, साहस का दीप जलाकर हमेशा आगे बढ़ते रहे। कष्टों की भीषण आग में तपकर उनका जीवन कुंदन बनकर निखरा। आचार्य भिक्षु की सहनशीलता हमारे भीतर भी अवतरित हो। सहनशील बनकर हम अपने जीवन की हर कठिनाई का पार पा सकते हैं।
साध्वी कर्णिकाश्री जी ने मंच संचालन करते हुए कहा कि आचार्य भिक्षु सिद्ध प्ररूष थे। उन्होंने सिद्धि योग में जन्म लिया एवं सिद्धि योग में ही महाप्रयाण कर दिया। डॉ. साध्वी सुधाप्रभाजी ने कहा अनिदानता, दृष्टिसंपन्नता एवं योगवाहिता गुण से संपन्न आचार्य भिक्षु इस चातुर्गतिक संसार का अतिशीघ्र अंत करेगें, ऐसा हमारे साहित्य में आता है। साध्वी मैत्रीप्रभाजी ने कहा आचार्य भिक्षु का सपना था - शुद्ध साध्वाचार का पालन, उनकी मंजिल थी - वीतरागता। मंजिल को पाने के लिए प्रखर पुरुषार्थ किया और अंतिम श्वास तक पुरुषार्थ करते रहे। साध्वी समत्वयशाजी ने सुमधुर गीत का संगान किया। सभा के मंत्री विरेन्द्र जैन ने मंगल संगान किया। रात्रि में धम्म जागरणा का सुंदर कार्यक्रम आयोजित हुआ। सुमधुर संगायक विमल बेंगानी आदि ने अपने मधुर स्वरों से कार्यक्रम में समां बांधा।