आचार्य भिक्षु के 222वें चरमोत्सव पर विविध कार्यक्रम

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आचार्य भिक्षु के 222वें चरमोत्सव पर विविध कार्यक्रम

डॉ. साध्वी परमयशाजी के सान्निध्य में 222वें भिक्षु चरमोत्सव कार्यक्रम का समायोजन हुआ। साध्वीश्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि आचार्य भिक्षु समयज्ञ, तत्वज्ञ, जैन आगमों के विशेषज्ञ थे। नॉलेज के लिए वे कॉलेज में नहीं गए पर 38 हजार साहित्य का सृजन करके कीर्तिमान बना दिया। 'आत्मां रा कारज सारस्यां - मर पूरा देस्यां' इस आश्वास विश्वास के साथ वे आतापना लेते। 5 वर्ष तक आहार-पानी, स्थान पूरा नहीं मिला फिर भी भिक्षु स्वामी पॉजिटिव और कॉन्फिडेंट रहे। भिक्षु स्वामी ने जीवन के संध्याकाल में उच्चकोटि की आराधना की। उन्होंने संथारा ग्रहण किया, सबसे खमत-खामणा किया। अतीन्द्रिय ज्ञान प्राप्त किया। संतों को शिक्षाएं प्रदान की- परस्पर हेत रखना, किसी में अवगुण मत देखना। साध्वी मुक्ताप्रभाजी ने भावपूर्ण वक्तव्य से स्वामी जी के प्रति विनयांजलि अर्पित की। साध्वी कुमुदप्रभा जी ने स्वामी जी की औत्पत्तिकी बुद्धि, साध्य, स्वाभिमान के बारे में बताते हुए उनके प्रति भावों की श्रद्धांजलि अर्पित की। तेरापंथ महिला मंडल अध्यक्षा सीमा बाबेल, निर्मल जैन, मनोज लोढा, विनोद कच्छारा, सुमन डागलिया, कन्हैयालाल चौरड़िया, कांता खीमावत, तेयुप अध्यक्ष भूपेश खमेसरा आदि ने आराध्य के प्रति भावों की प्रस्तुति दी। तेरापंथ महिला मंडल ने गीत का संगान किया।