आचार्य भिक्षु के 222वें चरमोत्सव पर विविध कार्यक्रम

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आचार्य भिक्षु के 222वें चरमोत्सव पर विविध कार्यक्रम

श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा गंगाशहर के तत्वावधान में साध्वी चरितार्थप्रभा जी एवं साध्वी प्रांजलप्रभाजी के सान्निध्य में 222 वां भिक्षु चरमोत्सव का आयोजन शांति निकेतन सेवा केंद्र के प्रांगण में किया गया। इस अवसर पर साध्वी चरितार्थ प्रभा जी ने कहा कि आचार्य भिक्षु को नई स्थिति में सर्वप्रथम बहुत विरोध का सामना करना पड़ा। आचार्य भिक्षु ने जो विचार प्रस्तुत किए वे नए थे, इसलिए उनका भयंकर विरोध होने लगा। आचार्य भिक्षु ने इस स्थिति को देखते हुए अपने जीवन की दिशा में आत्म कल्याण को प्राथमिकता देते हुए एकांतर तप और वन में आतापना लेना शुरू कर दिया एवं सारा समय ध्यान-साधना में लगा दिया। यह क्रम वर्षों तक चला फिर एक दिन मुनि थिरपालजी और मुनि फतेहचंदजी ने आचार्य भिक्षु से प्रार्थना की “ गुरुदेव तपस्या का वरदान हमें दे और आप जनता को प्रतिबोध दे”। यह तेरापंथ के विकास का प्रथम स्वर था। आचार्य भिक्षु ने उनकी प्रार्थना को सुना और फिर एक बार जनता को प्रतिबोध देना शुरू किया। यह प्रयत्न बहुत सफल हुआ और लोगों ने आचार्य भिक्षु को सुना-समझा और उनके अनुयायी बनने लगे। आचार्य भिक्षु महान तपस्वी थे, उनकी तपस्या का वलय इतना शक्तिशाली था कि उसके परमाणु हजारों वर्षों तक अपना प्रभाव सुरक्षित रख पाएंगे। आचार्य भी भिक्षु द्वारा जो सत्य अभिव्यक्त हुआ, वह इतना चिरंतन था कि उसे वर्तमान की धारा का स्रोत कहा जा सकता है। आज के ही दिन 222 वर्ष पूर्व आचार्य भिक्षु की आत्मा अनंत में विलीन हो गई। साध्वी प्रांजलप्रभा जी ने कहा कि आचार्य भिक्षु ने आगमों का गहन अध्ययन किया। उन्होंने भगवान महावीर की वाणी को सहज सरल शब्दों में जनता के सामने रखा। उन्होंने यथास्थिति से ऊपर उठकर सत्य की गणेषणा की, जीवन में सत्य की अवधारणा के लिए उन्होंने अपने सुख और सुविधाओं का बलिदान कर दिया। उन्होंने धर्म संघ की चिरंजीविता के लिए अनेक मर्यादाओं का निर्माण किया। इस अवसर पर साध्वी रुचिप्रभा जी ने गीतिका प्रस्तुत की। तेरापंथी सभा से जैन लूणकरण छाजेड़, तेरापंथ युवक परिषद से ललित राखेचा एवं तेरापंथ महिला मंडल की मंत्री मीनाक्षी आंचलिया ने अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का कुशल संचालन सुप्रिया राखेचा किया।