भोजन का विचारों और स्वास्थ्य पर पड़ता है गहरा प्रभाव : आचार्यश्री महाश्रमण
नवान्हिक आध्यात्मिक अनुष्ठान से शक्ति संचार कर ज्योति पुंज आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि शरीर को बनाए रखने के लिए हवा, पानी और भोजन की आवश्यकता होती है। ये जीवन की प्राथमिक आवश्यकताएँ हैं। इनमें से भी पहला स्थान हवा का, दूसरा स्थान पानी का और तीसरा स्थान भोजन का है। आहार के बिना तो आदमी कई महीनों तक जीवित रह सकता है, लेकिन हवा के बिना जीवन कठिन हो जाता है। ये तीनों जीवन की प्रथम कोटि की आवश्यकताएँ हैं। दूसरी कोटि की आवश्यकताएँ कपड़ा और मकान हैं। तीसरी कोटि की आवश्यकताएँ शिक्षा और चिकित्सा हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यक्ति चिंतित हो सकता है, लेकिन इनमें भी समता बनाए रखनी चाहिए।
जो वीर होते हैं, वे समता में रहते हुए बासी भोजन से भी जीवन चला लेते हैं। यह एक विशेष तपस्या की बात हो सकती है। मनुष्य को सात्विक भोजन करना चाहिए। कई बार व्यक्ति ऐसी चीजें खा लेता है, जो शरीर के लिए हानिकारक हो सकती हैं। पानी जीवन है, पर शराब जैसी चीजें पीना क्या आवश्यक है? नशीले पदार्थों का सेवन भी व्यक्ति कर लेता है, लेकिन यह सोचना चाहिए कि यह हितकर है या अहितकर? हमारा भोजन शाकाहारी होना चाहिए। जैन परंपरा में सामिष भोजन का निषेध है। केवल शाकाहार से जीवन चल सकता है, लेकिन केवल मांसाहार से नहीं। भोजन का हमारे विचारों और स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जैन साधुओं में ऐसी दवाओं का भी निषेध है, जिनमें मांसाहार होता है। जीवन में नशामुक्ति भी होनी चाहिए। अणुव्रत में नशामुक्ति की बात कही गई है।
अर्जुन मेघवाल भी अणुव्रत से जुड़े हुए हैं और जैन विश्व भारती इंस्टीट्यूट के चांसलर भी हैं। अर्जुन मेघवाल प्राकृत भाषा के महत्व को भी समझते हैं, जो जैन शास्त्रों की विशेष भाषा है। भारत सरकार ने भी प्राकृत भाषा को क्लासिकल भाषा के रूप में स्वीकार किया है। प्राकृत और संस्कृत ग्रंथों में गूढ़ बातें हैं, जो विज्ञान के लिए भी उपयोगी हैं। देवता भी मनुष्यों से संवाद कर सकते हैं, जबकि मोबाइल तो अब आया है। टेलीपैथी की बात करें तो हमारे मन:पर्यवज्ञानी व्यक्ति दूसरों के मन की बातें जान लेते हैं। जीव मरकर कहाँ जाता है, यह बातें हमारे आगमों में उल्लिखित हैं। इन प्राचीन ग्रंथों में दर्शन और ज्ञान की बातें निहित हैं, जिन्हें सरकार ने स्वीकार किया है। यह एक अच्छी बात है। भारत में अनेक ग्रंथ, पंथ और संत हैं, जिनसे जनता को लाभ मिलना चाहिए। राजनीति भी सेवा का एक माध्यम है। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का पंचम दिवस 'नशामुक्ति दिवस' के रूप में मनाया गया। पूज्यवर ने नशामुक्ति की प्रतिज्ञा करवाई। एनसीसी के अनेक कैडेट्स पूज्यवर की सन्निधि में पहुँचे। राजेश सुराणा, एनसीसी मेजर अरूंधति शाह, मुनि अभिजीत कुमारजी, अणुव्रत समिति सूरत के अध्यक्ष विमल लोढ़ा ने अपनी भावनाएँ व्यक्त की।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने कहा कि वर्तमान में नशे की समस्या बढ़ रही है। नशा छोड़ने के लिए दिनचर्या को व्यवस्थित करना और उसका संकल्प लेना आवश्यक है। अणुव्रत का छोटा नियम "मैं नशा नहीं करूंगा" जीवन को बेहतर बना सकता है। मुख्य अतिथि भारत सरकार के कानून एवं न्याय तथा संसदीय कार्य राज्यमंत्री तथा जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय के कुलाधिपति अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि अणुविभा के लोग अणुव्रत एक्सप्रेस ट्रेन के डिब्बों में नशामुक्ति और अणुव्रत के संदेश लिखवाने के लिए प्रयास करें। उन्होंने प्राकृत भाषा को क्लासिकल भाषा का दर्जा दिलाने का भी जिक्र किया। एनसीसी में अनुशासन का महत्व है। आचार्यश्री तुलसी ने भी कहा था कि आत्मानुशासन ही अणुव्रत की भाषा है।
अणुविभा सोसाइटी के अध्यक्ष अविनाश नाहर ने भी अपनी भावना व्यक्त की। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया। आचार्य प्रवर की मंगल सन्निधि में चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-सूरत की ओर से चतुर्मास के लिए स्थान प्रदान करने वाले वालों को सम्मानित करने का उपक्रम रहा। इस कार्यक्रम का संचालन चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के महामंत्री नानालाल राठौड़ ने किया।