ज्ञान और संयम से कार्मण शरीर को ध्वस्त करने का करें प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

ज्ञान और संयम से कार्मण शरीर को ध्वस्त करने का करें प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

शक्ति और शांति से संपन्न आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आध्यात्मिक अनुष्ठान की अमृत वर्षा के पश्चात आगम वाणी की अमृत वर्षा करते हुए फरमाया कि आयारो आगम में कहा गया है—हमारे जीवन में आत्मा और शरीर दो प्रमुख तत्व हैं। आत्मा चैतन्यमय है, जबकि शरीर पुद्गल, यानी अजीव है। चेतन और अचेतन का संयोग ही जीवन है। जब आत्मा और शरीर अलग हो जाते हैं, तो मृत्यु होती है। शरीर वहीं पड़ा रहता है, और आत्मा कहीं और चली जाती है। मोक्ष क्या है? आत्मा का हमेशा के लिए शरीर से मुक्त हो जाना और फिर कभी शरीर धारण न करना। इस रूप में आत्मा जब शरीर से अलग हो जाती है, तो उसे मोक्ष कहा जाता है। आत्मा का अस्थायी वियोग मृत्यु है, जबकि आत्मा और शरीर का अंतिम वियोग मोक्ष कहलाता है।
आयारो में कहा गया है—कर्म शरीर को प्रकम्पित करो। जैन दर्शन में पाँच प्रकार के शरीर बतलाए गए हैं :- औदारिक शरीर, जो स्थूल शरीर है, देवों और नैरयकों में वैक्रिय शरीर होता है। इसके अलावा, तेजस और कार्मण शरीर भी होते हैं। तेजस शरीर विद्युत जैसा सूक्ष्म होता है, जबकि उससे भी सूक्ष्म कार्मण शरीर होता है, जिसे कर्म शरीर भी कहा जा सकता है। मुनि इस कार्मण शरीर को ध्वस्त करने का प्रयास करते हैं। कार्मण शरीर कारण शरीर है, जो जन्म और सुख-दुःख का कारण है। ज्ञान और संयम के माध्यम से मुनि इस कार्मण शरीर को खत्म कर सकते हैं।
ज्ञान और क्रिया के माध्यम से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। तपस्या भी कार्मण शरीर को प्रकम्पित करने का एक उपाय है। यद्यपि हम कर्म शरीर को देख नहीं सकते, लेकिन स्थूल शरीर से की गई साधना का प्रभाव कार्मण शरीर पर पड़ता है। तप का उद्देश्य कर्मों का नाश करना है। केवल तपस्या से नहीं, बल्कि संवर से मोक्ष प्राप्ति संभव है। संवर के बढ़ने से गुणस्थानों में आरोहण होता है। पूज्य सन्निधि में अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का चौथा दिवस 'पर्यावरण शुद्धि दिवस' के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर उपस्थित डॉ. दयांजलि ठक्कर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मेरा सौभाग्य है कि मुझे आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन का सौभाग्य मिल रहा है। हम सभी को पर्यावरण को प्रदूषित नहीं, उसके उसके शुद्धिकरण का प्रयास करना चाहिए। पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. सर्वेश गौतम ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए।

पूज्यवर ने फरमाया कि हमारे जीवन में अहिंसा और संयम यदि प्रमुखता से रहें, तो कई समस्याओं का समाधान अपने आप हो सकता है। अहिंसा और संयम हमारे व्यवहार का हिस्सा बनने चाहिए। जैन दर्शन में वनस्पति और मनुष्य की तुलना की गई है—एक पेड़ को काटना मानो एक बच्चे को काटने जैसा हो सकता है। वनस्पति भी सजीव है। हमें बिजली, पानी और वनस्पति का संयम रखना चाहिए। पर्यावरण के लिए हानिकारक चीजों से बचने का प्रयास करना चाहिए। तेरापंथ कन्या मंडल, सूरत ने 'चौबीसी' गीत प्रस्तुत किया। तेरापंथी सभा-चेन्नई केे अध्यक्ष अशोक खतंग ने अपने विचार व्यक्त किए। चेन्नई की ज्ञानशालाओं के ज्ञानार्थियों व प्रशिक्षिकाओं ने से गीत की प्रस्तुति दी। यशवंतपुर बैंगलोर ज्ञानशाला के ज्ञानार्थी हर्षिल बरड़िया ने गीत की प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।