आचार्य भिक्षु के 222वें चरमोत्सव पर विविध कार्यक्रम

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आचार्य भिक्षु के 222वें चरमोत्सव पर विविध कार्यक्रम

मुनि प्रशांत कुमारजी के सान्निध्य में 222वां भिक्षु चरमोत्सव मनाया गया। जनसभा को संबोधित करते हुए मुनि प्रशांत कुमारजी ने कहा- आचार्य भिक्षु महान सत्य शोधक आचार्य थे। शुद्ध साधुत्व का पालन करना और जनता को भी धर्म का शुद्ध स्वरूप बतलाना उनका ध्येय था। अपने समय में धर्म के बारे में चल रही भ्रांतियों और मिथ्या मान्यताओं का उन्होंने खुलकर प्रतिकार किया, जिसे तत्कालीन धार्मिक लोग सहन नहीं कर सके। आचार्य भिक्षु ने बताया- जहां हिंसा है वहां धर्म नहीं हो सकता। भगवान महावीर स्वामी की वाणी के आधार पर ही धर्म का शुद्ध स्वरूप बताया। तेरापंथ संघ का प्रवर्तन कर उन्होंने अनुशासन को सर्वाधिक महत्व दिया और मर्यादा, व्यवस्था, संगठन का निर्माण किया, आचरण और अनुशासन की नींव से तेरापंथ को खड़ा किया।
मुनि कुमुद कुमारजी ने कहा- आचार्य श्री भिक्षु ने सत्य के लिए बहुत तप तपा। उन्हें सत्य के लिए मरना भी मंजूर था। उन्होंने शुद्ध साधना का पथ अपनाया लेकिन विरोध से कभी डरे नहीं। उनका चिंतना था कि धार्मिकता व्यक्ति के व्यवहार में भी होनी चाहिए। सत्य को यथार्थ रूप में स्वीकार करने वाला ही धार्मिक जीवन जी सकता है। तेरापंथी सभा, तेयुप मंत्री पंकज सेठिया, अणुव्रत समिति उपाध्यक्ष नवरतन गधैया, महासभा उपाध्यक्ष विजय कुमार चोपड़ा ने गीत एवं वक्तव्य के द्वारा भावांजलि अर्पित की। संघगान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। आभार ज्ञापन सभा के वरिष्ठ सहमंत्री राकेश जैन किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि कुमुद कुमार जी ने किया। सायंकाल में धम्म जागरणा का भी आयोजन किया गया।