चिंतनशील और अपरिग्रही साधु होता है मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर : आचार्य श्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

चिंतनशील और अपरिग्रही साधु होता है मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर : आचार्य श्री महाश्रमण

महावीर पथ के महापथिक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतमयी वाणी में 'आयारो' आगम का विवेचन करते हुए कहा कि साधु वह है जिसके पास अपरिग्रह का धन है। परिग्रह का धन भौतिक धन है, जबकि अपरिग्रह का धन आध्यात्मिक होता है। साधु के पास कई प्रकार का धन हो सकता है, जिनमें से एक महत्वपूर्ण धन है—अपरिग्रह और अकिंचनता। परिग्रह का धन, जो गृहस्थों के पास होता है, वह तुच्छ होता है। अपरिग्रह का धन महान होता है। जो अकिंचन है, वह तीन लोकों का धनी है। जो साधु लोक-संयोग—माता-पिता, आदि से ऊपर उठ जाता है, वह नायक कहलाता है। नायक यानी नेता, जिसमें विशेष गुण होना चाहिए। जिनमें उत्तम अर्हता होती है, वे ही अच्छा नेतृत्व कर सकते हैं।
नेता में सहनशीलता और धैर्य होना चाहिए। नेता को आलोचना का सामना करना पड़ सकता है पर निंदा का जवाब शब्दों से नहीं, अच्छे कार्यों से देना चाहिए। गालियां सुनकर भी धैर्य नहीं खोना चाहिए। नेता को आत्म-सुधार पर ध्यान देना चाहिए। परिश्रम सफलता की कुंजी है और जो परिश्रमशील होता है, उसके पास लक्ष्मी (समृद्धि) आती है। जितना बड़ा नेता होता है, उसमें उतनी ही ऊंची अर्हताएँ होनी चाहिए। नेता बनना सेवा का कार्य है। नेता को अपने साथियों की बातें शांति से सुननी चाहिए और अपने कार्य का विभाजन करना चाहिए। उसे चिंतनशील और अपरिग्रही होना चाहिए। ऐसा साधु स्वयं मोक्ष की ओर अग्रसर होता है और दूसरों को भी मोक्ष मार्ग की ओर प्रेरित करता है।
अणुव्रत पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध उद्योगपति रतन टाटा के देहावसान पर पूज्यवर ने उनके प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना व्यक्त करते हुए कहा कि यह संसार का नियम है कि हर व्यक्ति जन्म लेता है, जीवन जीता है, और एक दिन इस दुनिया से विदा हो जाता है। चाहे वह उद्योगपति हो या साधारण व्यक्ति, यह नियम सभी पर लागू होता है। उनकी आत्मा आध्यात्मिक उन्नति करे और कभी मोक्ष प्राप्त करे—यह हमारी मंगलकामना है। तेरापंथ महिला मंडल, सूरत द्वारा समृद्ध राष्ट्र परियोजना के अंतर्गत संरक्षण में लिए गए दो स्थानीय विद्यालयों के विद्यार्थी पूज्यवर की सन्निधि में पहुंचे। पूज्यवर ने आशीर्वचन देते हुए छात्रों को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की तीन प्रतिज्ञाओं को समझाकर उन्हें स्वीकार करवाया। तेरापंथ महिला मण्डल-सूरत की अध्यक्षा चंदा भोगर ने अपनी अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।