जीवन विज्ञान विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास में अहम भूमिका निभाता है
शिक्षा अज्ञान रूपी अंधकार को हटाने का सर्वोत्तम साधन है। शिक्षा के लिए विद्यार्थी को अध्ययन के साथ अभ्यास की भी आवश्यकता रहती है। दोनों का संतुलन ही सर्वांगीण विकास का निमित्त बनता है। यह विचार साध्वी कुंथुश्रीजी ने अणुव्रत समिति श्रीडूंगरगढ़ द्वारा आयोजित जीवन विज्ञान दिवस के अंतर्गत प्रदान किए। साध्वीश्री ने अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतिम दिवस अवसर पर समुपस्थित जनमेदिनी को कहा कि वर्तमान शिक्षा पद्धति विद्यार्थी को बौद्धिक रूप से तो सक्षम बना रही है परन्तु बिना चारित्रिक और नैतिक विकास के शिक्षा का स्वरूप अधूरा रह जाता है। ऐसे में आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा जीवन के मूल्यों की पद्धति जीवन विज्ञान को शिक्षा के क्षेत्र में विकसित किया गया। इसका मूल उद्देश्य विद्यार्थियों का शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और भावनात्मक विकास करके सर्वांगीण विकास की भूमिका सिद्ध करना है।
कार्यक्रम के प्रभारी पवन कुमार सेठिया ने अपने संयोजकीय वक्तव्य में संतुलित व्यक्तित्त्व निर्माण के लिए प्राणधारा का संतुलन, जैविक संतुलन, आस्था का संतुलन और परिष्कार तत्त्व की वर्तमान उपादेयता पर प्रकाश डाला। संस्था के मंत्री एडवोकेट रणवीर सिंह खीची ने बताया कि कार्यक्रम में संस्कार इन्नोवेटिव, महाराणा प्रताप पब्लिक स्कूल, ब्राइट फ्यूचर, बाल निकेतन, विवेक विद्या विहार विद्यालय के शिक्षक सहित 250 से अधिक विद्यार्थियों ने सहभागिता दर्ज की। सुमित बरड़िया ने स्वागत गीत के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की। साध्वी सुमंगलाश्रीजी और प्रभारी विक्रम मालू ने जीवन विज्ञान की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। उपासक मालचंद भंसाली ने व्यक्तित्त्व विकास का प्रायोगिक प्रशिक्षण विद्यार्थियों को दिया। संस्था के उपाध्यक्ष सत्यनारायण स्वामी ने आभार ज्ञापन किया। कार्यक्रम में प्रचार मंत्री अशोक झाबक सहित अनेकों गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।