आचार्य भिक्षु के 222वें चरमोत्सव पर विविध कार्यक्रम

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आचार्य भिक्षु के 222वें चरमोत्सव पर विविध कार्यक्रम

'शासन गौरव' बुहुश्रुत साध्वी कनकश्रीजी के सान्निध्य में आचार्यश्री भिक्षु का 222वां चरमोत्सव मनाया गया। तेरापंथी सभा जयपुर के आयोजकत्व में तेरापंथी भवन में आयेजित कार्यक्रम की शुरूआत सूरत से समागत बेला बैद के मधुर संगान से हुई। 'शासन गौरव' साध्वीश्री ने धमर्सभा को संबोधित करते हुए कहा - आचार्यश्री भिक्षु भगवान महावीर की वाणी के सक्षम उद्गाता थे। उनकी सांस में आगम वाणी ध्वनित होती थी। वे धर्म क्रांति के पुरोधा थे। उनमें सत्य को सत्य व असत्य को असत्य कहने का प्रचंड साहस था। स्वामीजी के संघर्षों की कहानी व जीवन यात्रा के अंतिम क्षणों के रोमांचक प्रसंगों को बताते हुए साध्वीश्री ने कहा उन्होंने संघर्षों व विरोधों को पराक्रम व आत्मविश्वास की पुष्टि का हेतु माना।
साध्वीश्री ने आगे कहा - आचार्य श्री भिक्षु के परम्पर पटृधर आचार्यश्री महाश्रमणजी के शब्द-शब्द व श्वास-श्वास में स्वामीजी की लोह लेखनी से अंकित मर्यादाएं व शिक्षाएं ध्वनित होती हैं। इसलिए आज भी धर्मसंघ उतना ही प्राणवान है। साध्वी मधुलताजी आदि साध्वियों ने शब्द चित्र व गीतिका के द्वारा स्वामीजी को श्रद्धा समार्पित की। साध्वी संस्कृतिप्रभाजी ने कविता द्वारा आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। तेरापंथी सभा जयपुर के अध्यक्ष शांतिलाल गेलडा ने अपने विचार प्रस्तुत किए। युवा गायक सुनील लुणिया ने भिक्षु भक्ति गीत को मधुर स्वर दिया। कोलकता व बीकानेर से समागत रेखा गेलडा, प्रवीण बोथरा व सुशीला सेठिया ने भावपूर्ण गीत का संगान किया। कार्यक्रम का सफल संयोजन साध्वी मधुलेखाजी ने किया। भिक्षु चरमोत्सव के अवसर पर सैंकडों श्रावक-श्राविकाओं ने उपवास रखा, पूरे दिन भवन में गुरू मंत्र का अखण्ड जप चला। अनेक परिवारों ने ओम भिक्षु मंत्र का सवा लाख जाप किया। रात्रि में साध्वीश्री के सान्निध्य में 'जय भिक्षु संगीत मण्डली' द्वारा धम्मजागरण का कार्यक्रम हुआ। साध्वीवृंद व संगायकों द्वारा श्रद्धा भक्ति से ओतप्रोत गीतों से वातावरण भिक्षुमय बन गया।