धर्म है उत्कृष्ट मंगल

स्वाध्याय

धर्म है उत्कृष्ट मंगल

आचार्य सोमप्रभसूरि ने सिन्दूरप्रकर में कहा है-
तस्याग्निर्जलमर्णवः स्थलमरिर्मित्रं सुराः किङ्कराः
कान्तारं नगरं गिरिगृहमहिर्माल्यं मृगारिर्मृगः।
पातालं विलमस्त्रमुत्पलदलं व्यालः शृगालो विषं
पीयूषं विषमं समं च वचनं सत्याञ्चितं वक्ति यः।।
सत्यांचित भाषा बोलने वाले व्यक्ति के लिए अग्नि जल बन जाती है। समुद्र स्थल बन जाता है। शत्रु मित्र बन जाते हैं। देवता उसके सेवक बन जाते हैं। जंगल उसके लिए नगर बन जाता है। पहाड़ उसके लिए घर बन जाता है। सर्प माला बन जाता है। सिंह मृग बन जाता है। अस्त्र पत्र (पत्ता) बन जाता है। उसके लिए विषम स्थिति सम बन जाती है। यह सारी शक्ति सत्य संकल्पित मानस की होती है।
सत्यभाषा निरवद्य है या सावध? यह भी विवेचनीय है।
सूत्रकृतांग में कहा गया है ''सच्चेसु या अणवज्जं वयंत्ति'' सत्य भाषाओं में निरवद्य सत्य भाषा को श्रेष्ठ माना गया है। जिस सत्य भाषा से किसी की हिंसा होती हो, किसी को पीड़ा पहुंचती हो, वह सत्य भी वांछनीय नहीं है। एक साघु जंगल में बैठा था। उसने देखा कि एक बकरा दौड़ता-दौड़ता आया और वह पूर्व दिशा की ओर चला गया। पीछे से एक हट्टा-कट्टा आदमी आया और उसने साधु से पूछा कि महाराज! आपने बकरे को देखा होगा? वह किधर गया है? पृच्छक व्यक्ति की भावभंगिमा से मुनि को यह ही अनुमान हो गया कि यह बकरे का वध करने का इच्छुक है। अब यदि मुनि उसे बता देता है कि बकरा पूर्व दिशा की ओर गया है तो भाषा सत्य है किन्तु वह सावद्य सत्य भाषा है। यह भाषा मुनि के लिए सदोष और अतिचारकारक होती है। इसलिए मुनि विधानतः वहां यह नहीं कह सकता कि बकरा पूर्व दिशा की ओर गया है। वहां मुनि के लिए इस विषय में मौन काम्य होता है अथवा पृच्छक को अहिंसा का उपदेश देना काम्य होता है।
सत्य के लिए ऋजुता का विकास आवश्यक है। उसके बिना सत्य का टिकना कठिन होता है। कभी-कभी व्यक्ति वंचनापूर्ण भाषा भी बोलना चाहता है और सत्य को भी कायम रखना चाहता है। यह प्रयास शाब्दिक दृष्टि से भले उसे असत्य से बचा ले किन्तु वह करीब-करीब भाव असत्य ही हो जाता है।
लड़की का पिता एक लड़के के पिता के पास गया और उसके लड़के के साथ अपनी लड़की के विवाह का प्रस्ताव रखा। दूसरे सेठ ने सम्मुखीन सेठ की लड़की के बारे में जानकारी चाही तो लड़की के पिता ने कहा मेरी पुत्री पढ़ी-लिखी तो है ही और दिन भर एक पैर पर काम करती रहती है। वह इस लहजे में बोला कि उसकी लड़को की अति परिश्रमशीलता व्यक्त हो रही थी। पूर्व सेठ ने जब लड़के के बारे में जानकारी चाही तो लड़के के पिता ने कहा - मेरा लड़का अच्छा पढ़ा-लिखा तो है ही, बड़ा सुशील है, शांत है और सबको एक दृष्टि से देखता है। पिता ने ऐसे लहजे में बात रखी कि लड़के की सुशीलता और सबके प्रति समदृष्टि का भाव अभिव्यक्त हो रहा था। दोनों पिता अपनी भावी पुत्रवधू और दामाद की योग्यता एवं स्थिति से प्रफुल्लित हो रहे थे। जल्दबाजी में सम्बन्ध निश्चित कर दिया गया और निकटतम मुहूर्त्त देखकर शादी भी कर दी गई। यह रहस्य तो बाद में उद्घाटित हुआ कि जिस लड़की के लिए कहा गया था- 'वह दिन भर एक पैर पर काम करती है', वह लंगड़ी है और जिस लइके के लिए कहा गया था, 'सबको एक दृष्टि से देखता है', वह एकाक्षी (काणा) है।
दोनों पिताओं की भाषा शब्दों में असत्य थी, ऐसा तो नहीं कहा जा सकता किन्तु बात का लहजा और तरीका इस तरह का था जो एक दूसरे को भ्रान्त करने वाला था। इस तरह की भाषा असत्य न होते हुए भी असत्य की कोटि में आ जाती है। आगमों में कहा गया है कि यह छलनापूर्ण और असत्यपूर्ण व्यवहार अगले जन्म में तिर्यंच गति (पशु आदि की गति) दिलाने वाला बन सकता है। असत्य की विभिन्न कोटियां होती हैं। विस्मृति/भूल से बोलने में स्खलित होने से जो असत्य भाषण होता है, वह बहुत सामान्य कोटि का असत्य है। लोभ आदि कारणों से दूसरों को ठगने के लिए जो असत्य भाषण किया जाता है वह विशेष पाप कर्म-बन्ध का हैतु बन जाता है। अति वाचालता भी असत्य भाषण का निमित्त बनती है, इसलिए सत्यव्रती व्यक्ति के लिए कम बोलना और विचारपूर्वक बोलना अपेक्षित रहता है। केवल राजी करने के लिए प्रिय भाषा बोल देना जो कि तथ्याधारित न हो, वह असत्य कोटि की भाषा है।