मैत्री, प्रमोद, करुणा व मध्यस्थ भावना का हो अनुचिंतन : आचार्यश्री महाश्रमण
सूरत का ऐतिहासिक चतुर्मास सकुशल सम्पन्न कर भैक्षव शासन के महासूर्य तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ विशाल जनमेदिनी की उपस्थिति में संयम विहार से मंगल विहार कर सूरत के पांडेसरा क्षेत्र में पधारे। पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए महामनीषी ने फरमाया कि मिगसर कृष्णा एकम को विहार करना है तो कोई मुहुर्त देखने की आवश्यकता नहीं है। आज का दिन जैन साधु-साध्वियों के लिए वरदान स्वरूप है। चतुर्मास का अपना महत्व है और शेषकाल का अपना महत्व है।
जीवन में धर्म का होना बड़ी बात है। यह मानव जीवन प्राप्त होना बड़ी दुर्लभ बात है। यह वर्तमान में हमें उपलब्ध है। इस जीवन में जितना धर्म का अर्जन हो सके कर लेना चाहिए। प्राणियों के प्रति मैत्री भाव रखें। सबको अपनी आत्मा के समान समझें। यह चिंतन रहे कि 'मुझे सुख प्रिय है तो दूसरों को भी सुख प्रिय है।' किसी को दुःख न देवें। सबके साथ सद्भावनामय व्यवहार रहे।
जो गुणीजन हैं, उनके प्रति प्रमोद भावना रहे। गुणों की पूजा की गई है। दूसरों को दुःखी देखकर हम खुशियां न मनाएं और दूसरे सुखी है उन्हें देखकर हम दुःखी न बने। जो संक्लिष्ट हैं उनके प्रति करूणा की भावना रहे। विपरीत वृत्ति वाले व्यक्ति के प्रति भी मध्यस्थ भाव रहे। ये चार भावनाएं (मैत्री, प्रमोद, करुणा व मध्यस्थ भावना)-अनुप्रेक्षाएं हैं। ये बारह भावनाओं से अलग भावनाएं हैं, जो हमारे व्यवहार से जुड़ी है। इन भावनाओं का अनुचिन्तन होता रहे।
चार माह तक भगवान महावीर यूनिवर्सिटी में ही रहने का काम पड़ा। सीमित क्षेत्र में रहने का बन्धन आज टूट गया और मानो उससे मुक्ति मिल गई। कहीं बन्धन का महत्व है तो कहीं मुक्ति का भी महत्व है। मिगसर कृष्णा एकम मुक्ति दिवस होता है और आज पहला प्रवास पांडेसरा के तेरापंथ भवन में करने का मौका मिला है। सबमें धार्मिक भावना बनी रहे। सब में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की भावना बनी रहे। पूज्यवर की अभिवन्दना में मुकेश बाबेल ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। ज्ञानशाला की सुंदर प्रस्तुति हुई। वर्धमान स्थानवासी संघ से जगदीश डांगी ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि कुमारश्रमणजी ने किया।