साधन की अपेक्षा साध्य का मूल्य है अधिक : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

साधन की अपेक्षा साध्य का मूल्य है अधिक : आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ पांडेसरा से विहार कर भेस्तान पधारे। पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए शान्तिदूत ने फरमाया कि मनुष्य जन्म मिलना एक महत्वपूर्ण बात मानी जा सकती है। 84 लाख जीव योनियां बताई गई हैं, उनमें यह मनुष्य जन्म मिलना विशेष बात हो सकती है। मनुष्य जन्म मिलना एक उपलब्धि है। अब विचारणीय बात यह होती है कि इस मनुष्य जन्म का कैसे धार्मिक रूप से जीवन यापन किया जाये। इसके लिए आदमी ईमानदारी के मार्ग पर चलने का प्रयास करे। ईमानदारी और बेईमानी दो मार्ग है। ईमानदारी के मार्ग पर चलने से परेशानी, संघर्ष व कठिनाई आ सकती है परन्तु मंजिल बहुत बढ़िया है।
मार्ग का अपना मूल्य है तो मंजिल का तो बहुत मूल्य है। एक साधन है, दूसरा साध्य है। साधन की अपेक्षा साध्य का अधिक मूल्य है। अध्यात्म के क्षेत्र में मोक्ष को साध्य बनाया जा सकता है। उस साध्य को सिद्ध करने के लिए पवित्र साधन चाहिए। अशुद्ध साधन से मोक्ष रूपी शुद्ध साध्य की प्राप्ति कैसे हो सकेगी? मोक्ष का शुद्ध साधन है- सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चारित्र और सम्यक् तप। ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप यह मार्ग जिनेश्वरों ने बताया है। ईमानदारी भी एक शुद्ध तत्व है। ईमानदारी परेशान हो सकती है परन्तु परास्त नहीं हो सकती। बेईमानी एक बार तात्कालिक रूप में फल देने वाली भी हो जाए पर वह अपवित्र साधन है उसका खराब परिणाम आने की संभावना है। झूठ, कपट चोरी करना यह बेईमानी है। सच्चाई, सरलता, चोरी नहीं करने का संकल्प ईमानदारी है।
दो शब्द हैं- चित्त और वृत्त। चरित्र की संयम पूर्वक रक्षा करें। लक्ष्मी, जीवन और जवानी चंचल है, एक धर्म ही निश्चल है। ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है। साधुओं के उपदेश से प्रेरणा मिल सकती है, उपकार हो सकता है।
एक घड़ी, आधी घड़ी, आधी से पुनि आध।
तुलसी संगत साध की, हरै कोटि अपराध।।
जो साधु परोपकार के लिए है, ऐसे साधु की सन्निधि कल्याण कारी होती है।
सुत, दारा, अरू लक्ष्मी पापी के भी होय।
संत समागम हरी कथा, तुलसी दुर्लभ दोय।।
संतो की संगत से व्यक्ति अपनी बुराइयों को छोड़ सकते हैं। साधु तो अपरिग्रही होते हैं, उन्हें न नोट चाहिए, न वोट चाहिए, न प्लोट चाहिए, वे तो गृहस्थों की खोट दूर करने वाले होते हैं। व्यक्ति का जीवन अच्छा बनाने वाले संत होते हैं। यहां पर भी खूब धार्मिक जागरणा चलती रहे। पूज्यवर ने 10 नवम्बर को दीक्षित मुनि चन्द्रप्रभकुमारजी को बड़ी दीक्षा प्रदान करवाई। पूज्यवर के स्वागत में अशोक गोखरू, सिमोनी मेहता, विश्वा पितलिया, उधना सभा अध्यक्ष निर्मल चपलोत, नीलम मेहता आदि ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। मुख्य मुनिश्री महावीर कुमारजी के जीवन प्रसंगों पर ज्ञानशाला की सुन्दर प्रस्तुति हुई। तेरापंथ महिला मंडल एवं कन्या मंडल ने गीत की प्रस्तुति दी। इन्दौर का श्रावक समाज कृतज्ञता ज्ञापन करने हेतु श्री चरणों में पहुंचा। इन्दौर सभा अध्यक्ष निर्मल नाहटा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। निलेश रांका ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि कुमारश्रमणजी एवं मुनि कीर्तिकुमार जी ने किया।