ज्ञान के साथ विद्यार्थियों में संयम की चेतना का भी हो विकास : आचार्यश्री महाश्रमण
जैन विद्या के विशिष्ट प्राध्यापक आचार्य श्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में जैन विश्व भारती मान्य विश्व विद्यालय का 15वां दीक्षांत समारोह कार्यक्रम महावीर समवसरण सूरत में आयोजित किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ आचार्य श्री महाश्रमणजी द्वारा नमस्कार महामंत्र के उच्चारण से हुआ। कुलपति बच्छराज दुगड़ ने संस्थान का परिचय दिया। संस्थान के अनुशास्ता परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए फ़रमाया कि ज्ञानार्जन से व्यक्ति एकाग्रचित्त होता है, जिससे चेतना की श्रेष्ठ स्थिति प्राप्त होती है। ज्ञान से व्यक्ति अपनी आत्मा को धर्म और सदाचार में स्थित करता है और स्वयं धर्म में स्थित होकर दूसरों को भी धर्म में स्थापित कर सकता है।
पूज्य प्रवर ने आगे कहा कि जीवन की, समाज की और राष्ट्र की अनेक समस्यों के मूल में अंसयम होता है। विद्यार्थियों में ज्ञान के साथ संयम की चेतना भी आए। संयम अणुव्रत आंदोलन का प्राण तत्व है, इसे अपनाकर व्यक्ति भौतिक पदार्थों के प्रति आकर्षण से बच सकता है। संयम से व्यक्ति, समाज और राष्ट्र सुधार भी संभव है। अंक पाना विद्यार्थी का लक्ष्य हो सकता है। केवल अंक पाना नहीं, अपितु अच्छा परिश्रम कर अंक पाना लक्ष्य रहे। ज्ञान बढ़ाना पहला लक्ष्य हो, अंक पाना दूसरा। आचार्यश्री ने विद्यार्थियों को नशामुक्त रहने की शपथ दिलाई। पूज्य प्रवर ने शिक्षा मंत्री को शिक्षा के क्षेत्र में उन्मेष लाने, कुलाधिपति अर्जुन मेघवाल एवं कुलपति दुगड़ को विश्व विद्यालय के विकास में योगदान देने और पूर्व न्यायाधीश दिनेश महेश्वरी को धार्मिक-आध्यात्मिक उन्नयन करने की प्रेरणा दी।
मुख्य अतिथि शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अपने संबोधन में कहा कि मैं आज मुख्य अतिथि नहीं, एक विद्यार्थी के नाते आपके बीच में उपस्थित हुआ हूँ। जैन विश्व भारती इंस्टीट्यूट न केवल शिक्षा प्रदान करता है, बल्कि जीवन मूल्यों का भी प्रशिक्षण देता है। यह Experiential Learning (अनुभव से शिक्षा) की बहुत बड़ी प्रयोगशाला है। आने वाले दिनों में, भारत सरकार की ओर से, जैन विश्व भारती विश्व विद्यालय प्राकृत भाषा का एक विशेष शोध केंद्र बने, ऐसा दायित्व पूर्ण करने का प्रयास किया जायेगा। शिक्षा मंत्री ने मंगलकामना व्यक्त करते हुए कहा कि यह विश्व विद्यालय 21वीं सदी का ज्ञान का केंद्र बने, मानवता के लिए भारतीय परम्पराओं पर आधारित जीवन दृष्टि यहाँ से प्राप्त हो, और अच्छे मनुष्य निर्माण की आपकी प्रयोगशाला सफल हो।
कुलाधिपति अर्जुनराम मेघवाल ने वर्चुअल माध्यम से अपने सम्बोधन में संस्थान के विकास में अपने योगदान का संकल्प दोहराते हुए कहा कि 33 वर्षों की अपनी यात्रा में जैन विश्व भारती इंस्टीट्यूट ने शिक्षा और नैतिकता के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य किया है। आपने कहा कि जैन विश्व भारती संस्थान विशिष्ट है क्योंकि यहाँ का पाठ्यक्रम भी विशिष्ट है, यह भारतीय विद्याओं एवं पुरातन ज्ञान का पोषक है। यह संस्थान भारतीय और प्राच्य विद्याओं के लिए समर्पित है। भारतीय पारम्परिक ज्ञान को केंद्र में रखकर इनके संरक्षण और संवर्धन का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने सभी विद्यार्थियों को अपनी योग्यता का
प्रदर्शन करते हुए अपनी लक्षित मंजिल को प्राप्त करने हेतु मंगल भावनाएं सम्प्रेषित की। डॉ. अभिनव सक्सेना ने भारत के उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) के पूर्व न्यायाधीश दिनेश महेश्वरी को प्रदान किये जाने वाले डी.लिट. मानद उपाधि के प्रशस्ति पत्र का वाचन किया। शिक्षा मंत्री एवं कुलपति ने न्यायाधीश दिनेश महेश्वरी को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की। न्यायाधीश महेश्वरी ने यह उपाधि अपने गुरुजनों, परिजनों एवं सहकर्मियों को समर्पित कर विद्यार्थियों को गुरुजन के जीवन से प्रेरणा लेकर चलने का आह्वान किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्थान के कुलपति बच्छराज दुगड़ ने की। उन्होंने संस्थान सदस्यों को संकल्प सूत्र ग्रहण करवाए। संस्थान की छात्राओं ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। कुलसचिव डॉ. अजयपाल कौशिक ने विभागाध्यक्षों को उपाधियां प्रदान करने के लिए आमंत्रित किया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में शिक्षा मंत्री प्रधान और अन्य गणमान्य अतिथियों को विश्व विद्यालय परिवार एवं आचार्य महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति द्वारा सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन कुलसचिव डॉ. अजयपाल कौशिक ने किया। कार्यकर्म में जैन विश्व भारती के अध्यक्ष अमरचंद लुंकड एवं लोकसभा सांसद मुकेश दलाल आदि महानुभाव भी उपस्थित थे।