महाश्रमण के महाश्रम की एक और गाथा- उपलब्धियों से भरा सूरत चातुर्मास
भगवान महावीर की परंपरा में साधना कर रहे चारों तीर्थों के लिए चातुर्मास का समय आध्यात्मिक साधना का स्वर्णिम काल माना गया है। यह चार महीनों का कालखंड, धर्म और तपस्या के क्षेत्र में अनुशासन, संयम और साधना की विशेष ऊर्जा का प्रतीक होता है। तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी ने सन् 2024 का चातुर्मास सूरत की पुण्य भूमि पर पूर्ण किया। यह चातुर्मास न केवल धार्मिक दृष्टि से विशिष्ट रहा, बल्कि उपलब्धियों से भरा था। ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की चतुष्टयी में अभिस्नात करने वाले इस पावस ने हर क्षेत्र में विशिष्टता प्राप्त की। 'भगवती' जैसे विशाल आगम पर अपनी अमृत देशना पूर्ण कर पूज्य श्री ने 'आयारो' को अपनी देशना का विषय बनाया। गणाधिपति आचार्य श्री तुलसी द्वारा रचित 'चंदन की चुटकी भली' जैसे आख्यानों के माध्यम से आचार्य प्रवर ने धर्म और जीवन मूल्यों की व्याख्या की।
रात्रि कालीन प्रवचन में मुख्य मुनि श्री महावीर कुमार जी द्वारा रामायण के प्रसंगों की रोचक व्याख्या श्रोताओं को अभिभूत कर गई। भगवान महावीर यूनिवर्सिटी के प्रांगण में पहली बार आयोजित चातुर्मास ने एक नया इतिहास रचा। सघन साधना शिविर, संस्कार निर्माण शिविर, प्रेक्षा ध्यान शिविर और विभिन्न संस्थाओं के अधिवेशनों ने समाज को नई ऊर्जा और दिशा प्रदान की। प्रेक्षा कल्याण वर्ष का शुभारंभ भी सूरत की भूमि पर हुआ। इन कार्यक्रमों ने साधकों को न केवल आध्यात्मिक प्रेरणा दी, बल्कि जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने का मार्ग भी प्रशस्त किया।
प्रायः एक चातुर्मासिक प्रवास में दो दीक्षा महोत्सव देखने को मिलते हैं। इस बार संयम विहार का प्रांगण तीन-तीन दीक्षा महोत्सवों का साक्षी बना। सम्पूर्ण भारत वर्ष में जिन शासन के चारित्रात्माओं के चातुर्मासों में भी आचार्य श्री महाश्रमण जी के सूरत चातुर्मास को नंबर 1 का स्थान मिला।
इस चातुर्मास में तपस्या का अनुपम क्रम देखने को मिला। 1000 से अधिक अठाई, लगभग 108 वर्षीतप, अनेकों मासखमण, सैकड़ों आयंबिल तप और 6200 से अधिक पौषध—सभी तपस्याओं ने अद्भुत आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार किया। गुरुकुलवासी साधु-साध्वियों द्वारा की गई लंबी तपस्याओं ने इस चातुर्मास को साधना का आदर्श स्वरूप दिया। विशेष रूप से, संयम विहार परिसर ने तीन-तीन दीक्षा महोत्सवों का साक्षी बनकर संयम और त्याग की महत्ता को रेखांकित किया। दीपावली के अवसर पर मुख्य प्रवचन कार्यक्रम आदि में मुख्य मुनि श्री महावीर कुमार जी कुर्सी की बक्शीश प्रदान कराने का सीन भी नयनाभिराम था। चारों ही महीने जनता का आवागमन और उपस्थिति देखने योग्य थी। चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति ने अपने प्रबंधन कौशल से अद्वितीय मिसाल पेश की।
लेखनी तो सीमित ही लिख पाएगी, परंतु उपरोक्त के अतिरिक्त भी अनेकानेक कार्यक्रम ऐसे हुए जिनसे जिनशासन और तेरापंथ धर्मसंघ की प्रभावना बढ़ी है। साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका, सबने यथोचित अपना योगदान भी दिया। परंतु यह सब हो सका एकमात्र परम पूज्य आचार्य प्रवर के आशीर्वाद से, उनकी ऊर्जा से। कुछ दिनों पूर्व ही संभवतः मुनि श्री उदित कुमार जी ने कहा था कि आचार्यश्री पुण्य के अक्षय कोष हैं और यह सब इसी पुण्य पुरुष के पुण्य का प्रभाव है। हालांकि इन सब गतिविधियों ने धर्म संघ की शोभा को वृद्धिंगत ही किया है, फिर भी इनमें पूज्य आचार्य प्रवर का अहर्निष श्रम भी लगा है। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के वे शब्द - 'महाश्रमण युवा मनस्वी ही महातपस्वी भी है', गुरुदेव को देखते ही स्मृति पटल पर आ जाते हैं। हम सभी को महातपस्वी का वरद हस्त युगों युगों तक प्राप्त रहे, और आपश्री की छत्र छाया में हम भी संघ सेवा में यथाशक्ति योगदान देते रहें, यही मंगलकामना। - संपादक