अहिंसा, संयम और तप का आराधन करने वाले का कल्याण है निश्चित : आचार्यश्री महाश्रमण
आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के अनन्तर पट्टधर आचार्य श्री महाश्रमणजी ने ध्यान के प्रयोग के साथ शक्ति, अध्यात्म, स्वस्थता, पवित्रता, महाप्रज्ञा, विनम्रता, उपशम, ऋजुता, संतोष, समता, धर्म और भगवत्ता की भावना से स्वयं के साथ उपस्थित जनमेदिनी को भावित किया। तत्पश्चात मंगल देशना प्रदान कराते हुए पूज्य प्रवर ने फरमाया कि धर्म उत्कृष्ट मंगल है। मंगलकामना की जाती है, दूसरों को शुभाशंषा भी दी जा सकती है। आदमी स्वयं का भी मंगल चाहता है, मंगल के लिए प्रयास भी किया जाता है।
हमारे यहां दीक्षा दी जाती है, नवदीक्षित को ग्रास भी दिया जाता है, जिसे अध्यात्म का, अनुशासन का ओज आहार माना जाता है। इसके पीछे भी मंगल का विचार हो सकता है। मंगल की दृष्टि से मुहुर्त भी देखा जाता है। मंगलपाठ उच्चरित किया जाता है, उसमें भी मंगल का भाव हो सकता है। शास्त्र में इन सबसे ऊपर धर्म को उत्कृष्ट मंगल बताया गया है। इस श्लोक में किसी धर्म का नाम नहीं है। यहां तो अहिंसा, संयम और तप को धर्म का सार बता दिया गया है। अहिंसा, संयम व तप की साधना कोई भी करे तो मंगल ही होगा। जैसे गुड़ सबको ही मीठा लगता है, वैसे ही अहिंसा, संयम और तप का आराधन करेंगे तो कल्याण ही होगा।
जिन्होंने इनकी आराधना की है, उन भव्य आत्माओं ने मानो मोक्ष की ओर गति की है। चतुर्मास धर्म की साधना का एक विशेष अवसर होता है। आज चतुर्मास की उतरती चतुर्दशी भी आ गई है। चतुर्मास साधुचर्या का एक अंग है। हमारा सूरत में चतुर्मास हुआ है। इतनी चारित्रात्माओं (59 संत और शताधिक साध्वियां) व समणियों का प्रवास एक साथ होना बड़ी बात है। चातुर्मास के बीच में तपस्या करते-करते साध्वी धैर्यप्रभाजी तो मानो उर्ध्वगमन कर गए, यह भी इतिहास का एक विरल प्रसंग है। अब विहार की तैयारी है, विदा लेना है।
साध्वीप्रमुखाओं के कार्य को देखना है गरिमा की बात
चतुर्मास में मुख्यमुनि महावीरकुमारजी द्वारा जैन रामायण (राम यशोरसायन) का व्याख्यान चला। रत्नाधिक मुनिश्री धर्मचन्दजी तो नवमें दशक में भी पैदल विहार करते हैं। तेरापंथ के इतिहास के अंतर्गत, साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी एवं साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी के द्वारा, आचार्य श्री तुलसी और आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के जीवन वृत्त के कार्य को भी मुनिश्री का सहयोग प्राप्त है। आपके लिए यह भी एक गरिमा की बात है कि आप साध्वीप्रमुखाओं के कार्य को देखने या परामर्श देने वाले मुनि प्रवर हैं। शरीर जितना स्ववश रहे, अच्छी बात हो सकती है। बिजी लाइफ में भी रहे चित्त की प्रसन्नता साध्वीप्रमुखाजी भी अनेकों कार्यों में संलग्न हैं, बिजी लाइफ में भी चित्त की प्रसन्नता और शरीर की अनुकूलता रहे। यात्रा में स्वास्थ्य का ध्यान रखें। साध्वीवर्या भी स्वास्थ्य का ध्यान रखें। विहार में वाहनों के संबंध में, सड़क पर चलने में जागरूकता और सावधानी रखनी चाहिए।
भगवान महावीर के नाम से सम्बद्ध यूनिवर्सिटी में चतुर्मास
चतुर्मास में व्यवस्था समिति का एक विशाल नेटवर्क है। कार्यकर्ताओं में सामंजस्य होना भी विशेष बात होती है। हमें रहने के लिए भगवान महावीर विश्वविद्यालय में स्थान मिला। हमने कई चातुर्मास कर लिए पर किसी यूनिवर्सिटी, वह भी भगवान महावीर के नाम से सम्बद्ध, जहां शिक्षा क्रम भी चालू है, वहां स्थान उपलब्ध करवाना भी एक विशेष बात है। शय्यातर का लाभ लेना बड़ी बात है।
साध्वियों के भी कई सिंघाड़े यहाँ रहे हैं, वैरागी तैयार करने, तपस्या आदि में उनका भी अपने ढंग से योगदान रहा है। चतुर्मास में हमारे अनेक कार्यक्रम चले हैं। कक्षाएं, शिविर, कार्यशालाएं आदि के आयोजन भी हुए हैं।
जीवन विज्ञान दिवस
आज कार्तिक शुक्ला त्रयोदशी - जीवन विज्ञान दिवस भी है। परम पूज्य गुरूदेव श्री तुलसी ने मुनिश्री नथमलजी स्वामी 'टमकोर' को आज के दिन 'महाप्रज्ञ' अलंकरण प्रदान किया था। उस दिन को जीवन वज्ञान दिवस के रूप में प्रतिष्ठापित किया गया है। जीवन विज्ञान भी हमारा लोक कल्याणकारी कार्यक्रम है जो विशेषकर शिक्षा जगत के लिए है। भावात्मक संतुलन, नैतिकता, संयम, अहिंसा, नशा मुक्ति के संस्कार भी विद्यार्थियों में पुष्ट रहें। जीवन विज्ञान का उपक्रम भी अच्छे ढंग से चलता रहे। पूज्यवर ने हाजरी वाचन कराते हुए प्रेरणाएं प्रदान करवाई।
उर्वरा भूमि है सूरत
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आचार्य प्रवर के इस समवसरण में अनेक प्रकार की रचनाएँ होती हैं। आचार्यवर के आभामंडल में ज्ञानशाला के ज्ञानार्थी, अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान आदि विभिन्न क्षेत्रों के कार्यकर्त्ता, राजनेता, पत्रकार आदि लोगों ने पहुँच कर आपसे ऊर्जा प्राप्त की है। आचार्यवर के आशीर्वाद से महिलाओं और कन्याओं में भी अच्छा कार्य हुआ है। यह उर्वरा भूमि है, यहाँ वैरागी-वैरागन और अच्छे कार्यकर्त्ता तैयार हो सकते हैं। आचार्यवर के आभामंडल से निकलने वाली किरणों से हम सब शक्ति संपन्न बनते रहें।
मोती के समान वे क्षण
मुख्यमुनिश्री महावीरकुमार जी ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि सूरत वासियों ने जितना गुरु सन्निधि के अवसर का लाभ उठाया, उनकी जिंदगी के वे क्षण मोती के समान बन गए। परम पूज्य गुरुदेव ने सूरत वासियों पर खूब कृपा बरसाई। ज्ञानाराधना, दर्शनाराधना, चारित्राराधना और तपाराधना का बहुत अच्छा क्रम चला। सूरत का यह चातुर्मास अपने आप में ऐतिहासिक चातुर्मास रहा। गुरुदेव से जो पाया है, भीतर में जो अध्यात्म की लौ जगी है वह दिन प्रतिदिन प्रदीप्त होती रहे।
बहुमूल्य उपहार
साध्वीवर्याश्री संबुद्धयशाजी ने अपने अभिभाषण में कहा कि परम पूज्य आचार्य प्रवर का सूरत में चातुर्मास हुआ और गुरुदेव ने सभी को जीवन जीने की कला सिखाई है। यह कला जो व्यक्ति सीख लेता है वह कभी दुखी नहीं बनता है, उसकी आत्मा ऊर्ध्वारोहण करती है। सूरत वासियों ने गुरुदेव के बहुमूल्य उपहार का अच्छा लाभ उठाने का प्रयास किया है।
पुण्य के अक्षय कोष
बहुश्रुत परिषद् के सदस्य मुनिश्री उदितकुमारजी ने भी अपने भावों की अभिव्यक्ति देते हुए कहा कि मंत्री मुनिश्री बहुधा फरमाते थे कि राजा राज्य नहीं करता है, राजा के पुण्य काम करते हैं। परम पूज्य आचार्य प्रवर पुण्य पुरुष ही नहीं, पुण्य के अक्षय कोष हैं। आप जहां विराजते हैं, वह स्थान रमणीय हो जाता है। चातुर्मासिक प्रवेश की उपस्थिति, चार महीने तक भरा-भरा पंडाल, पर्युषण के समय की उपस्थिति, 6200 से अधिक पौषध आदि न जाने कितने-कितने कीर्तिमान आचार्यप्रवर के जीवन में घटित हुए हैं। चातुर्मास में उपस्थिति, उमंग, उपलब्धियों और व्यवस्थापन सब दृष्टियों से सूरत का चातुर्मास विशिष्ट रहा। सूरत वासियों में विशेष उमंग का भाव रहा। सैंकड़ों कार्यकर्ताओं के बल से यह चातुर्मास सफल बना है। मेरा सौभाग्य है कि आचार्य प्रवर के निर्देश से सूरत आया और सूरतवासियों ने अच्छी तैयारी कर 2024 का आचार्य प्रवर का चातुर्मास प्राप्त किया। सबके मिले-जुले प्रयास से यह चातुर्मास उपलब्धि पूर्ण रहा।
चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति अध्यक्ष संजय सुराणा ने पूज्यवर व सभी चारित्रात्माओं के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। सभी कार्यकर्ताओं, संस्थाओं और सूरत समाज के प्रत्यक्ष और परोक्ष सहयोग के प्रति आभार व प्रमोद भावना अभिव्यक्त करते हुए चातुर्मास काल की उपलब्धियों को भी रेखांकित किया। कार्यक्रम के मध्य खिला मध्य प्रदेश का भाग्य भगवान महावीर, परम पूज्य आचार्य भिक्षु और पूर्वाचार्यों का स्मरण कर पूज्यवर ने सन 2031 में कम से कम 101 दिनों का प्रवास मध्यप्रदेश में प्रवास करने का भाव है, उसमें भी कम से कम 60 रात्रियों का प्रवास इन्दौर में करने का भाव है।
जिला शिक्षा अधिकारी भागीरथ सिंह परमार ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कन्यामंडल, ज्ञानशाला ज्ञानार्थियों एवं प्रशिक्षिकाओं, महिला मंडल, तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम, किशोर मंडल ने मंगल भावना स्वरुप अभिव्यक्ति प्रस्तुत की। सुरेश कोठारी, गौतम कोठारी, संजय बोथरा ने मालवा व इन्दौर की तरफ से श्री चरणों में कृतज्ञता व्यक्त की। अणुविभा अध्यक्ष प्रताप दुगड़ ने जीवन विज्ञान दिवस पर अपनी अभिव्यक्ति दी। प्रवास व्यवस्था समिति अध्यक्ष संजय सुराणा ने दिलीप गोठी की कृति 'आनंद की अनुभूति' पुस्तक गुरुदेव को समर्पित की। महामंत्री नानालाल राठौड़ ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त किये। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।
मंत्री मुनिश्री की कुछ अंशों में दूसरी देह
कितने विभाग और कितने कार्यकर्ताओं को व्यवस्था तंत्र से जुड़ने का अवसर मिला। मुनिश्री उदितकुमारजी का भी इन्हें मार्गदर्शन मिला। मुनिश्री के तीन चातुर्मास वृहत्तर सूरत में हो गए हैं। मुनिश्री सुमेरमलजी स्वामी 'लाडनूं' भी आचार्यों के मर्यादा महोत्सव से पहले आदि श्रावकों को जोड़ने का उनका एक अच्छा क्रम था। मुनि श्री सुमेरमलजी स्वामी 'लाडनूं' का कुछ अंशों में रूप देखना हो तो मुनिश्री उदितकुमार जी स्वामी में देखा जा सकता है। उनकी कार्यशैली, गतिविधि आदि का कुछ दर्शन मुनिश्री उदित कुमार जी स्वामी में भी प्रतीत हो रहा है। श्रम और सूझबूझ, कार्यकर्ताओं को उत्साहित रखना, उन्हें धार्मिक-आध्यात्मिक मार्गदर्शन देना, श्रावक चर्या के सम्यक अनुपालन की प्रेरणा, चातुर्मास की सफलता, त्याग-प्रत्याख्यान, गोचरी आदि अनेक बातें हैं। गुरुदेव तुलसी के पड़िहारा मर्यादा महोत्सव से पूर्व मुनिश्री सुमेरमलजी का वहां प्रवास हुआ। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी बॉम्बे, जलगांव पधारे उनसे पहले भी मुनिश्री का प्रवास वहां हुआ। मुनिश्री सुमेरमल जी स्वामी 'मंत्री मुनि' के सम्मान से सम्मानित थे, मुनिश्री तो नहीं रहे पर मंत्री मुनिश्री की कुछ अंशों में दूसरी देह मुनिश्री उदितकुमारजी स्वामी में देखने को मिल रही है। इस चतुर्मास में भी मुनिश्री उदितकुमारजी स्वामी का योगदान रहा है। लोगों के मुंह से बार बार मुनिश्री उदितकुमारजी स्वामी के मार्गदर्शन की बात सुनी भी थी और कुछ आँखों से देख भी रहे हैं। मुनिश्री बहुश्रुत परिषद् के संतों में दीक्षा पर्याय में सर्व ज्येष्ठ भी हैं। संयोजक तो मुख्य मुनि है परन्तु दीक्षा पर्याय में बड़े मुनिश्री उदितकुमारजी स्वामी हैं, आपका यथा योग्य अच्छा काम चलता रहे।