‘मुणिन्द मोरा’ गीत व्यक्तित्व विकास का है फार्मूला
उदयपुर। डॉ. साध्वी परमयशाजी के सान्निध्य में मुणिन्द मोरा ढाल अनुष्ठान का समायोजन हुआ। साध्वीश्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि श्रीमद् जयाचार्य तेरापंथ शासन के गौरवशाली, प्रभावशाली, प्रज्ञा सम्पन्न आचार्य थे। वे श्रुत के महासागर थे, अध्यात्म के महासूर्य थे, मंत्रों के विशेष जाता थे। उन्होंने विशिष्ट गीतों की रचना की जिसमें मुणिन्द मोरा गीत खास है। इस गीत में व्यक्तित्व बदलाव का फार्मूला है। यह मंत्र से आपूरित स्तवन आयोजन, आंदोलन,अभियान और प्रदर्शन का नहीं अपितु अन्तर्मुखी चेतना के जागरण का महाघोष है। कार्तिक शुक्ला दशमी के दिन इस गीत की रचना बीदासर में हुई थी। इस गीत के संगान से अंगारों का उपद्रव शांत हो गया। इस ढाल के स्तवन से, सकारात्मक सोच से विजय का ध्वज फहराएं। व्यवहार में विनम्रता की पहचान बनाएं।