मंगल प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ प्रयास है धर्म की आराधना : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मंगल प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ प्रयास है धर्म की आराधना : आचार्यश्री महाश्रमण

जैन धर्म के दो प्रभावक आचार्य - जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी एवं स्थानकवासी श्रमण संघ के आचार्य शिवमुनि जी का तेरापंथ भवन में आध्यात्मिक आत्मीय मिलन हुआ। इस सात्विक मिलन की पावन बेला में आचार्यश्री महाश्रमणजी ने फ़रमाया - हमारी दुनिया में मंगलकारी कार्य प्रिय होते हैं। व्यक्ति मंगल की प्राप्ति के लिए कई प्रकार से प्रयास करता है। चातुर्मास के प्रवेश के लिए भी शुभ मुहूर्त देखा जाता है। मंगल की प्राप्ति के लिए सबसे श्रेष्ठ प्रयास है– धर्म की आराधना। धर्म ही उत्कृष्ट मंगल है। अहिंसा, संयम, और तप धर्म का स्वरूप हैं।
हर धर्म वाला व्यक्ति सिद्ध हो सकता है। हम जैन शासन से जुड़े हैं, जहाँ वीतरागता का महत्व है। भगवान महावीर से संबद्ध वर्तमान जैन शासन में अनेक आम्नाय हैं। चातुर्मास के दौरान तपस्या का विशेष क्रम चलता है। सूरत चातुर्मास के लिए हमें भगवान महावीर विश्वविद्यालय का स्थान मिला, जो शिक्षा का एक बड़ा केंद्र है। यदि इन शिक्षण संस्थानों में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को नैतिकता और नशामुक्ति के अच्छे संस्कार मिलें, तो यह आने वाली पीढ़ी के निर्माण में सहायक होगा। चातुर्मास के पश्चात हमने वृहत्तर सूरत में भ्रमण किया। आज अध्यात्म ज्योति आचार्यश्री शिवमुनिजी का आगमन हुआ। अतीत में भी पाली, लुधियाना, दिल्ली, सूरत में आपसे मिलना हुआ है। गुरुदेव श्री तुलसी के समय से ही यह आत्मीयता बनी हुई है। आचार्यश्री का वात्सल्य और स्नेह हमें प्राप्त होता रहा है। हम सभी अपनी-अपनी साधना के साथ धर्मोद्योत करते रहें।
आचार्यश्री ने कहा कि जैन साधुओं का विहार और चर्या साधना के साथ जनोपकार का माध्यम भी बनता है। सूरत चातुर्मास में साध्वी प्रमुखाजी, साध्वीवर्याजी, मुख्य मुनिजी और अनेक साधु-साध्वियाँ साथ में रहे। मुख्य मुनि ने जैन विश्व भारती संस्थान से आगम साहित्य में पर्यावरण पर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है। अन्य साधु-साध्वियाँ भी विभिन्न विषयों पर शोध कर रहे हैं। स्वाध्याय और ध्यान-साधना का क्रम सतत चलना चाहिए। श्रमण संघ के चतुर्थ पट्टधर आचार्यश्री शिवमुनिजी ने अपने उद्बोधन में कहा - आचार्यश्री महाश्रमणजी की कृपा असीम है। भगवान महावीर अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी अहिंसा, मैत्री, करुणा और साधना हमारे पास हैं। आचार्यश्री महाश्रमणजी की साधना, आत्मीयता और प्रेम ही हमें यहाँ खींच लाया है। निर्ग्रंथ वह होता है जो ‌‌ऋजु होता है। आचार्यश्री शिवमुनि जी का...
आपकी सरलता हमें आपके पास बुला लेती है। जब भी आपसे मिलना होता है, वही आत्मीयता और प्रेम महसूस होता है। आपके साथ लगता नहीं हम दो हैं, हम एक ही हैं। मानों एक वृक्ष की दो शाखाएं हैं। आपने संवत्सरी एकता की शुरुआत की, वह अपने आप में एक मिसाल है, और भी अब इसमें जुड़ते चले जाएंगे। हम पहले भी एक थे, अब भी एक हैं आगे भी एक रहेंगे। भगवान महावीर का चतुर्विध धर्मसंघ तीर्थंकरों द्वारा निर्मित तीर्थ है, जो तिरने और तारने योग्य है। मोक्ष प्राप्ति के लिए हमें भेद-विज्ञान का सहारा लेना चाहिए। यह शरीर जड़ है, लेकिन आत्मा शाश्वत और निराकार है। हमें आत्मा को समय देना चाहिए। आत्मा को जानने और साधना करने में ही मोक्ष का मार्ग है।
सिद्ध भगवान में जो आत्मा है, वही आत्मा हमारे भीतर है। हम ‘सोऽहम्’ की साधना करें। आत्मा के आठ गुण हम सभी में समान रूप से विद्यमान हैं। जब तक आत्मा और शरीर में भेद नहीं होगा, साधना संभव नहीं होगी। धर्म-ध्यान से शुक्ल ध्यान की ओर अग्रसर हों। मोह का क्षय ही मोक्ष है। इस अवसर पर श्रमण संघ के मंत्री शिरीष मुनिजी और मुख्य मुनि महावीर कुमार जी ने अपने हृदयोद्गार प्रकट किए। शुभम मुनिजी ने सुमधुर गीत प्रस्तुत किया। जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित एवं डॉ. साध्वी आरोग्यश्रीजी द्वारा अनुवादित पुस्तक Preksha Pathy का लोकार्पण श्री चरणों में किया गया। आगामी 5, 6, 7 मई 2025 को पालनपुर में होने वाले आचार्यश्री के जन्मोत्सव और पट्टोत्सव कार्यक्रम के लोगो का अनावरण हुआ। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ सभा सूरत द्वारा आचार्य श्री महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति अध्यक्ष संजय सुराणा का अभिनंदन पत्र भेंट कर सम्मान किया गया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि कुमारश्रमणजी ने किया।