सम्यक्त्व के समान नहीं है कोई रत्न : आचार्यश्री महाश्रमण
आर्हत् वांग्मय के व्याख्याता, आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फ़रमाया कि नौ तत्वों की जानकारी को एक काल्पनिक उदाहरण के माध्यम से समझा जा सकता है। एक युवक संत के पास आया और पूछा - 'मैं कौन हूं?' संत ने उत्तर दिया, 'तुम आत्मा हो, जीव हो, चैतन्यमय हो।' युवक ने कहा, 'फिर ये मेरे हाथ-पैर क्या हैं? क्या ये भी जीव हैं?' संत ने उत्तर दिया, 'हाथ-पैर शरीर का हिस्सा हैं। यह शरीर जीव से अलग है। हाथ-पैर आदि शरीर है, जो अजीव और अचेतन तत्व है। यह शरीर जीव के साथ जुड़ा हुआ है, परंतु यह स्वयं अजीव है।'
संत ने आगे कहा कि कर्मों के बंध के कारण यह शरीर जीव से जुड़ा होता है। यह बंध दो प्रकार के होते हैं—पुण्यात्मक और पापात्मक। यह बंध कराने वाला तत्व आश्रव है। बंध अपने आप नहीं होता। आश्रव से बचने के लिए संवर की साधना की जाती है। जितना संवर पुष्ट होगा, उतना ही आश्रव निष्प्रभावी होगा। पहले से बंधे हुए पाप कर्मों को दूर करने का उपाय तपस्या और निर्जरा है। निरंतर निर्जरा के माध्यम से मोक्ष प्राप्त होता है। मोक्ष के बाद आत्मा और शरीर अलग हो जाते हैं।
युवक ने फिर पूछा, 'इन नौ तत्वों के मूल प्रवक्ता कौन हैं?' संत ने उत्तर दिया, 'इनके मूल प्रवक्ता अर्हत् हैं। वे धर्म के अधिकृत प्रवक्ता हैं।' युवक ने कहा, 'तो मुझे धर्म के इन मूल प्रवक्ता अर्हत् से मिला दीजिए।' संत बोले, 'इस धरती पर इस समय अर्हत् नहीं हैं। उनके प्रतिनिधि आचार्य होते हैं।' संत ने आगे कहा, 'अर्हत् हमारे देव हैं और आचार्य हमारे गुरु हैं, जो तत्व और धर्म की शिक्षा देते हैं। वैसे हम संत भी धर्म की बात बताते हैं।' युवक ने फिर प्रश्न किया, 'मुनिजी, यदि कोई नौ तत्वों को जान ले और देव, गुरु, और धर्म में श्रद्धा हो जाए, तो क्या होता है?'
संत बोले, 'यह स्थिति सम्यक्त्व कहलाती है। सम्यक्त्व जैसा न कोई रत्न है, न कोई मित्र, और न ही कोई बंधु। सम्यक्त्व से बड़ा कोई लाभ नहीं। यदि किसी व्यक्ति का दृष्टिकोण, ज्ञान, और चारित्र सम्यक् हो जाए, तो यही मोक्ष का मार्ग है।' झूठ, कपट और बेईमानी से पाप कर्मों का बंध होता है। आचार्य प्रवर ने फ़रमाया कि आस्तिक हो या नास्तिक, हर कोई वर्तमान मानव जीवन को मान्यता देता है। इसे श्रेष्ठ बनाने के लिए हमारे भीतर अच्छे संस्कार होने चाहिए। गुस्सा, आक्रोश, और गरीबी व्यक्ति को हिंसा और अपराध की ओर धकेल सकते हैं। लेकिन सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति जीवन में हो, तो हिंसा और अपराध कम हो सकते हैं। अणुव्रत भी यही संदेश देता है। कार्यक्रम में उधना पुलिस के डी.सी.पी. भगीरथ गढ़वी ने अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। मुनि वीतरागकुमारजी और समणी हर्षप्रज्ञाजी ने अपने विचार व्यक्त किए। ज्ञानशाला की सराहनीय प्रस्तुति हुयी। तेयुप से गौतम आंचलिया और महिला मंडल ने स्वागत गीत के माध्यम से अपने भाव व्यक्त किए। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि कुमारश्रमणजी ने किया।