इहलोक और परलोक में कल्याणकारी है श्रमण धर्म : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

इहलोक और परलोक में कल्याणकारी है श्रमण धर्म : आचार्यश्री महाश्रमण

जन-जन के आध्यात्मिक उद्धारक युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी सूरत के उपनगर उधना पधारे। महातपस्वी आचार्य प्रवर ने विशाल जनसमूह को पावन पाथेय प्रदान करते हुए फ़रमाया कि मानव जन्म प्राप्त होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। मानव जीवन पाकर धर्म का श्रवण करने का अवसर मिलना एक दुर्लभ और अत्यंत शुभ बात है। यदि धर्म की बातें सुनने के बाद उन पर श्रद्धा हो जाए और वह श्रद्धा संयम में परिवर्तित हो जाए, तो जीवन का परम लक्ष्य प्राप्त हो सकता है। आचार्यश्री ने बताया कि श्रमण धर्म संयम के क्षेत्र में पराक्रम का मार्ग प्रशस्त करता है। श्रमण धर्म की सच्ची जानकारी के लिए बहुश्रुतों की संगति करनी चाहिए। यह धर्म लोक में लाभकारी है, परलोक में भी कल्याण करता है और जीव को सुगति प्रदान करता है। श्रमण धर्म के ज्ञान हेतु प्रश्न पूछने में संकोच नहीं करना चाहिए। ज्ञान को बढ़ाने में प्रश्न पूछना एक अहम भूमिका निभाता है। जो प्रश्न पूछता है, उसे मोक्ष का मार्ग भी मिल सकता है।
आचार्य प्रवर ने आगे फ़रमाया कि जिसे तर्क शक्ति का ज्ञान नहीं है, वह मूक होता है। जिसे व्याकरण का ज्ञान नहीं, वह भाषा के क्षेत्र में अंधा है। जिसे शब्दकोश का ज्ञान नहीं, वह बहरा है और जिसे साहित्य का ज्ञान नहीं, वह भाषा जगत में पंगु है। इसलिए प्रश्न पूछकर अर्थ को समझने का प्रयास करना चाहिए। जो व्यक्ति श्रमण धर्म प्राप्त कर लेता है, वह अपार संपदा प्राप्त करता है। यह महारत्न केवल भाग्यशाली व्यक्तियों को ही मिलता है। इसे प्राप्त कर अंत तक आराधना करते रहना चाहिए और जीवन को श्रमण धर्ममय बनाना चाहिए। आचार्य प्रवर ने बताया कि एक अल्पश्रुत होता है और एक बहुश्रुत। जैसे सिंहनी का दूध योग्य पात्र में ही टिकता है, वैसे ही श्रमण धर्म की प्राप्ति के लिए पात्रता आवश्यक है। जब प्रत्याख्यानी चतुष्क का क्षयोपशम होता है, तब श्रमण धर्म की प्राप्ति होती है। पांच महाव्रतों का पालन करने वाले धन्य होते हैं। यदि गृहस्थ में साधुपन की क्षमता न हो, तो अणुव्रतों को स्वीकार करना चाहिए। व्रत और अणुव्रत गृहस्थ के लिए एक मध्य मार्ग है।
श्रावक धर्म को अपनाकर व्यक्ति श्रमण धर्म का उपासक बन सकता है। सामायिक करना श्रावक धर्म का एक अंग है। नव तत्वों को भलीभांति समझना आवश्यक है। बिना साधुपन के भावों में प्रवेश किए मुक्ति संभव नहीं है, इसलिए बहुश्रुतों की उपासना करनी चाहिए। दिल्ली की ओर विहार कर रहे मुनि अभिजीतकुमारजी एवं मुनि जागृतकुमार जी ने अपनी भावना व्यक्त की। पूज्यवर के स्वागत में निर्मलकुमार चपलोत ने अपने उद्गार व्यक्त किए। उधना समाज द्वारा गीत की प्रस्तुति दी गई। एसएमसी नेता शशिबेन त्रिपाठी ने अपनी भावनाएं प्रकट की। कार्यक्रम का संचालन मुनि कुमार श्रमण जी ने किया।