जीवन में समता धर्म की करें आराधना : आचार्यश्री महाश्रमण
संयम के सुमेरु, आचार्यश्री महाश्रमणजी का उधना प्रवास का तीसरा दिन। युगप्रधान आचार्य प्रवर ने मंगल देशना प्रदान करते हुए कहा कि अर्हत् वंदना हमारे यहां प्रतिदिन दो बार होती है—प्रातःकाल प्रतिक्रमण से पहले और सांयकाल प्रतिक्रमण के पश्चात्। इसमें आगम की कल्याणकारी वाणी का समावेश है। अर्हत् वाणी का एक सूक्त है - 'समया धम्म मुदाहरे मुणि।' इसका अर्थ है कि समता को धर्म कहा गया है, और मुनि इस समता धर्म का प्रचार करें।
अर्हत् वंदना गीत में भी कहा गया है -
'धर्म है समता हमारा, कर्म समता मय हमारा।
साम्य योगी बन हृदय में स्रोत समता का बहाए।'
अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थितियों में समान भाव रखना चाहिए। हमारे हर कार्य में समता और व्यवहार में समानता होनी चाहिए। संगठन में समानता पूर्ण व्यवहार होना चाहिए। कहीं विवेकपूर्ण असमानता भी हो सकती है, पर जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति में समानता का प्रयास होना चाहिए। साधु संस्था में तो पानी की भी व्यवस्था की गई। हमारे धर्म संघ में मुनि स्वरूपचंद जी हुए। जयाचार्य तीन भाई दीक्षित हुए। स्वरूप चंद जी स्वामी, जीतमल जी स्वामी और भीम जी स्वामी और उनकी माताजी कल्लूजी भी दीक्षित हुए। गुरुदेव श्री तुलसी ने विक्रम संवत 2031 के श्रीडूंगरगढ़ मर्यादा महोत्सव के गीत में मुनि स्वरूपचंद जी का नाम लिया था - 'संत सतयुगी मोजी वेणी, स्वरूप कालू मगन त्रिवेणी।'
आचार्यश्री ने विशिष्टता प्राप्त संतों मुनि खेतसीजी, मुनि मोजीरामजी, मुनि वेणीरामजी, मुनि स्वरूपचंदजी, मुनि कालूरामजी (रेलमगरा), और मुनि मगनलालजी के प्रसंगों का उल्लेख करते हुए उनकी संघ निष्ठा और समता धर्म की व्याख्या की। मुनि स्वरूपचंदजी के अनुशासन सम्बन्धी दृष्टांत बताते हुए पूज्य प्रवर ने फरमाया कि पानी के प्रसंग में अनुशासन हीनता को लेकर उन्होंने एक मुनि के साथ आहार-पानी का त्याग कर दिया था। समता का एक अर्थ समानता हो सकता है। भोजन, कपड़ा, स्थान आदि के संदर्भ में समानता होनी चाहिए।
समता का अर्थ केवल समानता नहीं है, बल्कि व्यवहार में निष्पक्षता और समान दृष्टिकोण अपनाना भी है। हमारे यहां बारी की व्यवस्था है, जो समानता का प्रतीक है। गृहस्थ जीवन में भी समानता का पालन होना चाहिए। संविभाग हो, असंविभाग नहीं। जैसे न्यायपालिका में न्याय के लिए छोटा-बड़ा कोई भेद नहीं होता, वैसे ही हमें जीवन में समता धर्म की आराधना करनी चाहिए। यह जीवन को कल्याणकारी बना सकता है।
कार्यक्रम में पूज्यवर के स्वागत में तेरापंथ किशोर मंडल ने गीत का संगान किया, कन्या मंडल ने भावपूर्ण प्रस्तुति दी। लोक तेज के संपादक कुलदीप सनाढ्य ने अपनी भावनाएं व्यक्त की। कन्या मंडल और ज्ञानशाला ने चौबीसी के गीतों की सुंदर प्रस्तुति दी। अभिलाषा बांठिया ने गीत के माध्यम से पूज्यवर का स्वागत किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि कुमारश्रमण जी ने किया।