संयम में सहयोग देना कहलाता है परमार्थ

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संयम में सहयोग देना कहलाता है परमार्थ

चित्तौड़गढ़। मुनि प्रकाश कुमार जी के संयम पर्याय के 50 वर्ष की संपन्नता पर आयोजित समारोह में मुनि संजय कुमार जी ने जन मेदिनी को संबोधित करते हुए कहा कि जैन धर्म की दीक्षा स्वीकार करना ही एक बड़ी कसौटी है फिर तेरापंथ धर्म संघ में दीक्षित होना सबसे कठिन है। तेरापंथ के अनुशासन, मर्यादा में जिन्होंने 50 वर्ष बिताए, वह महत्वपूर्ण है। हम भाई-भाई का एक साथ 50 वर्ष तक साथ रहकर परस्पर सहयोग करना, चित्त समाधि में संभागी बनना, यह अनुकरणीय है। गृहस्थ में भाई-भाई सहयोग करते तो परार्थ संसारी सहयोग होता है। संयम में सहयोग देना परमार्थ कहलाता है।
मुनि प्रसन्न कुमार जी ने कहा कि इस जन्म में हम तीनों भाई का संयमी होना ही गर्व है। गृहस्थ भाई 50 वर्ष तक साथ-साथ रहें, यह तो दुर्लभ है। मुनि प्रकाश कुमार जी का जीवन संघर्षों से जुड़ा हुआ है। मौत के करीब से वापस लौटे हैं। दृढ़ संकल्प होने से महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त कर ली है। ज्योतिष विद्या में विशेष दक्षता हासिल की है। वे ध्यान, मंत्र सिद्धि, आहार संयम, दीर्घ समय से मौन साधना, हर शनिवार को 18 घंटे मौन साधना करते हैं। तेरापंथ धर्म संघ में साधु संतों में अब तक के इतिहास में सर्वाधिक 37 वैरागी तैयार कर गुरु चरणों में समर्पित कर दीक्षा दिलाने वाले बन गए। कई वैरागी अभी और तैयार हो रहे हैं। तेरापंथ धर्म संघ में तीनों भाइयों के संतों की जोड़ी एक ही है, साथ में एक भतीजा भी दीक्षित होने से एक ही परिवार के चार संत दीक्षित हैं।
मुनि प्रकाश कुमार जी ने गुरुदेव तुलसी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए कहा कि संसार के कीचड़ से निकालकर मुझे संयम रत्न प्रदान किया। मुझे वैराग्य की प्राप्ति केवल पहली बार मुनि संजय कुमार जी को देखकर हो गई और दूसरा निमित्त मां का एक वचन। संघर्ष बहुत आये, मृत्यु के मुंह में जाने से बचने का मुख्य कारण दृढ़ संकल्प था। संयोजन सीमा श्रीश्रीमाल ने किया।