जप-सामायिक को नहीं, विचारों को छोड़ें : आचार्यश्री महाश्रमण
अप्रमत साधना के साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी का अड़ाजन पदार्पण हुआ। मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए करूणा सागर ने फरमाया कि शास्त्र में तीन दंड बताए गए हैं- मनो दंड, वाक् दंड और काय दंड। तीन गुप्तियां भी बताई गई हैं - मनोगुप्ति, वाक् गुप्ति और काय गुप्ति। हमारे भीतर चित्त है और चेतना है, उसके मानो ये तीन कर्मचारी हैं- मन, वचन और काया। इन्हें तीन योग भी कहा गया है- मनोयोग, वचन योग और काय योग। प्रवृत्ति योग हो जाती है। जब तक प्रवृत्तियां हैं तब तक कर्म का बंध भी होता रहता है। एक अवस्था साधु की वह भी आती है जब योग नहीं रहता वह अवस्था चौदहवें गुणस्थान में होती है। तेरह गुणस्थान में तो योग की चंचलता रहती है। चौदहवें गुणस्थान में कोई कर्म बंध नहीं होता।
मनोयोग अस्पष्ट होता है बाकि वचन योग और काय योग तो स्पष्ट दिखाई देते हैं। हाव भाव से मन को कुछ समझा जा सकता है। मन की प्रवृत्ति-अध्यवसाय कर्म बंध के जिम्मेदार हैं। चार इन्द्रियों तक के प्राणियों के मन नहीं होता इसलिए वे मरकर नरक में नहीं जाते हैं। ये इतना पाप नहीं कर सकते कि मरकर नरक में चले जाएं। असंज्ञी पंचेन्द्रिय अगर पाप भी करेगा तो ज्यादा से ज्यादा पहली नरक तक चला जाए। संज्ञी पंचेन्द्रिय मरकर सातों ही नरक में जा सकते हैं। तुदुल मच्छा एक छोटा से प्राणी है पर मन से इतना पाप कर लेता है कि सातवीं नरक में जाने के लायक बन जाता है।
असंज्ञी के ज्यादा पुण्य का बंध भी नहीं हो सकता है। ऊंचे देवलोक या मोक्ष में संज्ञी प्राणी ही जा सकते हैं। मन के द्वारा घोर पाप का बंध भी हो सकता है तो महानिर्जरा, महान पुण्य का बंध भी किया जा सकता है। इसलिए मन का होना एक विकास की भूमिका को प्राप्त करना होता है। मन एक समस्या भी है तो मन एक समाधान भी है। मन है तो प्राणी दुःख-सुख का अनुभव करता है। मन वाला एक प्रशस्त कार्य भी कर सकता है। हम सु-मन बनें, दुर्मन न बनें। चंचलता मन की समस्या है। मन में कितने विचार आते रहते हैं। गृहस्थों के तो जप या सामायिक में कितने विचार आ जाते हैं। विचारों को छोड़ें, जप-सामायिक करना नहीं छोड़ें। मन की चंचलता को दूर करने का प्रयास करें। मन में राग-द्वेष व कषाय रूपी तरंगे उठती रहती है जिससे मन चंचल बना रहता है। चंचल बनाने वाले तत्वों को मंद करें।
प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष चल रहा है। प्रेक्षाध्यान एक प्रकार का उपाय है जिससे हम हमारी समस्याओं से निजात प्राप्त कर सकते हैं। पूज्य प्रवर ने कुछ समय प्रेक्षाध्यान का प्रयोग करवाया। पूज्यवर के स्वागत में स्थानीय अध्यक्ष अरूण चावत ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। महिला मंडल ने गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि कुमारश्रमणजी ने किया।