समय के मूल्य को समझ कर करें सम्यक् उपयोग : आचार्यश्री महाश्रमण
जिनशासन के उज्ज्वल नक्षत्र आचार्यश्री महाश्रमणजी का अड़ाजन पाल प्रवास का द्वितीय दिन। युगप्रधान आचार्य प्रवर ने अमृत देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि समय एक द्रव्य है। जैन दर्शन में षड् द्रव्यवाद और पंचास्तिकाय का वर्णन प्राप्त होता है। काल अलग है तो पंचास्तिकाय हो जाते हैं। काल को साथ में जोड़ दें तो षड् जीवनिकाय हो जाते हैं। हमारी यह सृष्टि छः द्रव्यों वाली, पांच अस्तिकायों वाली है। काल भी एक द्रव्य है भले वह पर्याय रूप में औपचारिक हो। चार दृष्टियां हैं- द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव। काल एक ऐसा द्रव्य है जो बीतता रहता है। समय के प्रवाह को रोका नहीं जा सकता है। जल प्रवाह को तो फिर भी रोका जा सकता है। घड़ी को तो बन्द किया जा सकता है पर काल को रोकना असंभव है। Time is money - समय धन है। समय का सदुपयोग करें। समय बिना पैसे मिलने वाली चीज है। सूरज, चांद या मेघ कभी पैसा नहीं मांगते। ये हमें मुफ्त में अवदान देने वाले हैं। उपरोक्त भावार्थ को दर्शाते हुए आचार्य प्रवर ने आचार्य श्री तुलसी द्वारा रचित गीत की कुछ पंक्तियों का संगान करवाया :-
दरखत री छांव और चंदे री चान्दनी,
सूरज री धूप लेण कुणसी
सीमा बणी,
सबरो समान अधिकार, संता रा खुल्ला है बारणा।
कदई ल्यो कोई निहार, खुद ही है द्वार पहरेदार।
संता रा खुला है बारणा।।
ये चीजें व्यापक हैं, उदार हैं। इनका कोई सौदा नहीं होता। धर्मास्तिकाय कितना बड़ा तत्व है। वैसे ही अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय हैं। ये दुनिया के मानो आधारभूत तत्व हैं कि कोई भी सहयोग ले लो, किसी को मना नहीं करते। ऐसे ही पुद्गलास्तिकाय हैं। ये कितने उदार हैं। परस्परोपग्रहो जीवानाम्। जीवास्तिकाय दूसरे को सहयोग भले न दे पर एक-दूसरे को परस्पर सहयोग देते हैं। हम सामुदायिक जीवन में इसको एक आधारभूत सूत्र बना सकते हैं। हम समय का मूल्य समझें और इसका बढ़िया उपयोग करें। यह हमारे जीवन और आत्मा के लिए कल्याण की बात हो सकती है। पूज्यवर के स्वागत में सुनील गुगलिया, मुक्ति भाई पारीख ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। ज्ञानाशाला की सुन्दर प्रस्तुति हुई। पूज्यवर ने आशीर्वचन फरमाया कि ज्ञानशाला निर्माण का स्थल है, यहां संस्कारों का पुष्टिकरण होता है। मुमुक्षु कल्प ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। यहां से संबद्ध साध्वी मेघविभाजी ने भी अपनी अभिव्यक्ति दी। उपासक अशोक भाई सिंघवी ने अपने विचार व्यक्त किए। बाबुभाई पटेल ने अपनी पुस्तक 'वाणी-सरवाणी सदगुरू गमणी' पूज्यवर को समर्पित की। मुनि नमिकुमारजी, मुनि अमनकुमारजी, मुनि मुकेशकुमारजी ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।