ज्ञान के साथ आचरण का भी है महत्त्व : आचार्यश्री महाश्रमण
भैक्षवगण सरताज आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ सिटी लाइट स्थित तेरापंथ भवन से विहार कर पर्वत पाटिया पधारे। विशाल जनमेदिनी को प्रतिबोध प्रदान कराते हुए पूज्य प्रवर ने फरमाया कि हमारे जीवन में ज्ञान का बहुत महत्व है। सम्यक् ज्ञान प्राप्त हो जाना, सम्यक्त्व का प्राप्त हो जाना एक बड़ी उपलब्धि होती है। ज्ञान अध्यात्म के सन्दर्भ का भी होता है तो अन्य ज्ञान भी होता है। विद्या संस्थान लौकिक ज्ञान से जुड़े होते हैं। एक चिन्तन है कि इस जीवन तक ही शरीर है। दूसरा चिन्तन यह भी है कि इस जीवन से पहले भी मेरा अस्तित्व था और इस जीवन के बाद भी मेरा अस्तित्व रहेगा। मैं आत्मा हूं, मैं शरीर नहीं हूं। शास्त्रीय मंतव्य में नौ तत्वों के ज्ञान को सम्यक ज्ञान कह सकते हैं। ज्ञान का अपना महत्व है तो साथ में दया-आचरण भी होना चाहिए।
आज मिगसर कृष्णा दशमी का दिन है जो भगवान महावीर के दीक्षा कल्याणक के रूप में प्रतिष्ठित है। एक महापुरूष ने आज के दिन संतता को स्वीकार किया था। आज के दिन वर्धमान ने यह संकल्प लिया था कि अब से सारा पाप कर्म मेरे लिए अकरणीय रहेगा। हमारी दुनिया में त्याग का बड़ा महत्व है। सम्यक्त्व युक्त चारित्र के सामने संसार के बढ़िया भौतिक हीरे भी कुछ नहीं है। साधु के पांच महाव्रत अमूल्य हीरे हैं। ये हीरे आत्मा का कल्याण कराने वाले हैं। आज के दिन सन् 2013 में तो बीदासर में लगभग 43 आत्माएं चारित्रवान बनी थी। गुरूदेव तुलसी ने भी आज के दिन दीक्षा ली थी, और भी अनेक चारित्रात्माओं की आज के दिन दीक्षा हुई है। सामायिक अमूल्य होती है तो चारित्र भी अमूल्य है, उसे पैसे से नहीं खरीदा जा सकता।
एक मोह का मार्ग है, दूसरा मोक्ष का मार्ग है। भगवान महावीर भी चरम शरीरी थे, उन्होंने सर्व दुःख मुक्ति को प्राप्त किया था। उनके साधना काल में कम से कम बेले की तपस्या हुई थी। युवावस्था में सांसारिक सुखों को त्यागना बड़ी बात है। भगवान महावीर और आचार्य भिक्षु में अनेक बातों में समानताएं हैं। यह भी एक योग है। भगवान के दीक्षा दिवस से हमें संयम को पालने की प्रेरणा मिले यह काम्य है। पूज्यवर के स्वागत में स्थानीय सभाध्यक्ष गौतम ढेलड़िया ने वक्तव्य एवं महिला मंडल ने गीतिका से अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि कुमारश्रमणजी ने किया।