सन्मार्ग पर चलना है आत्मा के लिए हितकर : आचार्यश्री महाश्रमण
परम पावन आचार्यश्री महाश्रमणजी अमरोली से विहार कर कतारगाम पधारे। महामनीषी ने मंगल प्रेरणा प्रदान कराते हुए फरमाया कि धार्मिक जगत या दार्शनिक जगत में आत्मवाद एक सिद्धान्त है। जैन दर्शन में आत्मा पर काफी वर्णन प्राप्त होता है। आत्मा शाश्वत है। आत्मा थी, आत्मा है और आत्मा हमेशा रहेगी। आत्मा पुनर्जन्म लेती है, अतः पुनर्जन्म है तो पूर्वजन्म भी होता है। आत्माएं कभी पैदा नहीं हुई। अनादि अनन्त काल से आत्माएं हैं। जीव सदा हैं, सदा थे और सदा रहेंगे। आस्तिक विचारधारा में पुनर्जन्म को मान्यता प्राप्त है। मृत्यु और जन्म, इन दो स्थितियों में बीते जीवन पर पर्दा आ जाता है। कोई कोई मनुष्य ऐसे भी हो सकते हैं कि उनका वह पर्दा उठ जाता है, उन्हें पूर्वजन्म दिखने लग सकता है। हमारी विस्मृति का पर्दा हटता है तो जाति स्मृति ज्ञान हो सकता है।
आत्मा हमारे कषाय के कारण पुनर्जन्म लेती है। ये चार कषाय पुनर्जन्म की जड़ों को सिंचन देने वाले होते हैं। कई भव्य आत्माएं साधना के द्वारा इन जड़ों को उखाड़ देती हैं और वे मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं। पुनर्जन्म है यह मानकर जीवन जीना चाहिए। पुनर्जन्म के साथ कर्मवाद का सिद्धान्त भी जुड़ा हुआ है। कर्म है तब पुनर्जन्म की बात होती है। पिछले कृत कर्म के कारण ही सुख-दुःख मिलता है। पिछले जन्मों के अनेक प्रसंग हमारे ग्रन्थों में आते हैं। भगवान महावीर के मुख्य 27 जन्मोें का विवरण हमें मिलता है। यदि पूर्वजन्म और पुनर्जन्म के संबंध में संदेह हो तो एक सुन्दर मार्गदर्शन दिया गया कि बुरे काम मत करो, अच्छे काम करो। अच्छे काम किए हों और यह मान लिया जाए कि परलोक नहीं है तो भी व्यक्ति का कोई नुकसान होगा। वर्तमान जीवन में आत्म संतोष मिल सकेगा।
और यह मान लिया जाए कि पुनर्जन्म है और अच्छे काम किए हो तो आगे भी अच्छी गति मिल सकती है। अच्छे काम करने से दोनों हाथों में लड्डू मिल सकते हैं। “तुम पुण्य कार्य करो मत भले ही, किंतु करो मत पाप, पुण्य के फल को पा लोगे। मत रटो राम का नाम भले ही, किन्तु करो शुुभ काम, राम के बल को पा लोगे।” मानव जीवन महत्वपूर्ण जीवन है जो हमें प्राप्त है, इसमें शुभ काम करो। धर्म के मार्ग पर चलो, पर पीड़ा मत करो। आध्यात्मिक परोपकार करना पुण्य का कार्य है। दूसरों को दुःख देना पाप है।
किसी का भला तो न कर सकें तो किसी का बुरा तो न करें। सन्मार्ग पर चलना हमारी आत्मा के लिए हितकर हो सकता है। डोंबिवली चातुर्मास संपन्न कर गुरु सन्निधि में पहुंचे उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि कमलकुमारजी ने हृदयेश्वर के समक्ष अपने हृदयोद्घार व्यक्त किए। पूज्यवर के स्वागत में प्रकाश पितलिया ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। ज्ञानशाला की सुन्दर प्रस्तुति हुई। समस्त पाटीदार समाज के उपप्रमुख बाबूभाई ने अपने विचार रखे। बहुमंडल ने गीतिका की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि कुमारश्रमणजी ने किया।