जीवन में सादगी और चिंतन में रहे उच्चता : आचार्यश्री महाश्रमण
तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी सजोद से लगभग 10 किमी विहार कर अंकलेश्वर के ई एन जिनवाला हाइस्कूल में प्रवास हेतु पधारे। मां शारदा टाऊन हॉल ऑडिटोरियम में आयोजित स्वागत समारोह में पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए परम पूज्य ने कहा कि जीवन में मानसिक शांति, मनोबल और शरीर बल अच्छा होना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। लेकिन इनसे भी बड़ी उपलब्धि है— संन्यास, धर्म और अध्यात्म की साधना। शरीर का बल इस जीवनकाल तक ही उपयोगी है, लेकिन धर्म और अध्यात्म की साधना आगे भी हमारे हित में रहती है। साधु के लिए साधुपन तो उसके जीवन का आधार है, लेकिन गृहस्थ जीवन में भी धर्म और अध्यात्म का पक्ष अत्यंत महत्वपूर्ण है। मंत्री या राष्ट्रपति का कार्यकाल एक समय के बाद समाप्त हो जाता है, परंतु साधु जीवन की अंतिम सांस तक साधु बना रह सकता है। इसी प्रकार, धार्मिक व्यक्ति या श्रावक भी जीवन के अंत तक अपनी धार्मिकता बनाए रख सकता है। साधु के लिए साधुपन से बड़ी कोई चीज नहीं हो सकती। यदि साधना सुदृढ़ है, तो कोई चोर इसे चुरा नहीं सकता। साधुपन सबसे सुरक्षित धन है। भौतिक धन केवल इस जन्म तक उपयोगी हो सकता है, लेकिन धर्म रूपी धन आगे भी काम आता है। इसलिए, हमें धर्म और साधुपन की संपदा को सुरक्षित रखने का प्रयास करना चाहिए।
गृहस्थ को भी धर्म करने का अधिकार है। गृहस्थ जीवन में त्याग और संकल्प से अध्यात्म की साधना की जा सकती है। अणुव्रत गृहस्थ के लिए एक अनमोल संपदा है। चाहे गृहस्थ किसी भी क्षेत्र में हो, उसे धार्मिक और अणुव्रती बने रहना चाहिए। गृहस्थ को अपनी वाणी, क्रोध नियंत्रण और ईमानदारी पर ध्यान देना चाहिए। जीवन में सादगी और चिंतन में उच्चता रहे तो जीवन बढ़िया बन सकता है। गुरुदेव तुलसी द्वारा प्रदत्त अणुव्रत को जैन-अजैन सभी स्वीकार कर सकते हैं। अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम व्यक्ति की चेतना को जागृत रखने में सहायक होते हैं। ईमानदारी के लिए झूठ बोलने और चोरी करने से बचना चाहिए। गुस्सा मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। शांति और संयम से रहने का प्रयास करना चाहिए। ध्यान, अध्यात्म से जुड़ा एक महत्वपूर्ण उपक्रम है, जो अनासक्ति की साधना को प्रोत्साहित करता है। जीवन में अच्छाई और उत्तमता की ओर बढ़ने का प्रयास हर किसी का उद्देश्य होना चाहिए।
पूज्य प्रवर ने आगे फरमाया कि आज थोड़े अंतराल के बाद, पुनः अंकलेश्वर में आना हुआ है। यहां धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियां सुचारू रूप से चलती रहें। साध्वीप्रमुखाजी विश्रुतविभाजी के जन्म दिवस पर पूज्य प्रवर ने फरमाया - वे 68वें वर्ष में प्रवेश कर रही हैं। साध्वी प्रमुखाजी निरंतर धार्मिक और आध्यात्मिक सेवा करती रहें तथा उनका स्वास्थ्य अनुकूल बना रहे। पूज्यवर के नागरिक अभिनंदन के सन्दर्भ में नगरपालिका अध्यक्ष ललिता राजपुरोहित ने अपनी भावनाएं व्यक्त की। सभा अध्यक्ष बक्तावरमल सिंघवी एवं जिनेंद्र कोठारी ने अपने विचार व्यक्त किए। स्थानीय महिला मंडल ने गीत के माध्यम से अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। नगरपालिका एवं नगर की प्रमुख संस्थाओं द्वारा नगर की प्रतीकात्मक चाबी भेंट कर गुरुदेव का नागरिक अभिनंदन किया गया। ज्ञानशाला के बच्चों ने सुंदर प्रस्तुति दी। नगरपालिका की ओर से जनक भाई ने तथा जैन संघ की ओर से हेमंतभाई शाह ने भी अपनी भावनाएं प्रकट की। कार्यक्रम में अणुव्रत विश्व भारती के अध्यक्ष प्रताप दूगड़ ने आगामी कार्यकाल के कार्यकारी सदस्यों की घोषणा कर उन्हें शपथ ग्रहण करवाई। अणुव्रत नियम पट्ट स्थानीय विद्यालय को प्रदान किए गए। अणुव्रत विश्व भारती द्वारा पर्यावरण जागरूकता अभियान का आयोजन भी हुआ। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।