तारने या डुबोने वाली नौका बन सकता है शरीर :  आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

तारने या डुबोने वाली नौका बन सकता है शरीर : आचार्यश्री महाश्रमण

जिन शासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमणजी प्रातः हंसोट से विहार कर सजोद के सार्वजनिक विद्यालय में पधारे। पूज्यवर ने अमृत देशना प्रदान करते हुए कहा कि हमारे जीवन में शरीर और आत्मा इन दो तत्वों का योग है। जहां शरीर विहीन आत्मा है, वहां ऐसा जीवन संभव नहीं है और आत्मा विहीन शरीर में भी जीवन नहीं होता। जब आत्मा और शरीर का सम्मिश्रण होता है, तभी सक्रिय जीवन संभव होता है।
आत्मा स्थायी तत्व है, जबकि शरीर अस्थायी तत्व है। शास्त्रों में शरीर को भी महत्व दिया गया है। इसे नौका के रूप में उपमित किया गया है। आत्मा को भवसागर पार करना है, तो उसे नौका की आवश्यकता है, और यह भूमिका शरीर अदा करता है। यह शरीर तारने वाली नौका भी बन सकता है और डूबोने वाली नौका भी। यदि जीवन में आश्रव (कर्म प्रवाह) के छेद हैं, तो यह नौका डूबने का कारण बन सकती है।
मूलतः पाँच प्रकार के आश्रव होते हैं, और उनका क्रमिक भार इस प्रकार है:
1. मिथ्यात्व आश्रव : इसका भार 10,000 है।
2. अव्रत आश्रव : जब यह कम होता है, तो भार 2,000 कम हो जाता है।
3. प्रमाद आश्रव : इसके कम होने पर 300 का भार और घट जाता है।
4. कषाय आश्रव : जब यह निरूद्ध हो जाता है और बारहवां गुणस्थान प्राप्त होता है, तो 40 का भार और कम हो जाता है।
5. पुण्य रूप में शेष भार : 5 का भार रह जाता है, जिसे अयोग संवर द्वारा समाप्त किया जा सकता है।
जब सभी कर्मबन्ध समाप्त हो जाते हैं, तब आत्मा मुक्ति की दिशा में अग्रसर होती है।
मिथ्यात्वी व्यक्ति भी तप की आराधना कर ऊंचे देवलोक, नव ग्रेवैयक तक जा सकता है, भले ही वह अभवी हो। हालांकि, अभवी मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। आचार्य भिक्षु ने कहा है कि मिथ्यात्वी भी शील और तपस्या के माध्यम से धर्म का लाभ प्राप्त कर सकता है। धर्म और निर्जरा के माध्यम से व्यक्ति की आत्मा को शुद्धता प्राप्त होती है। सम्यक्त्व और साधुपन का निश्चय होना आवश्यक है, चाहे वह भेष साधु का हो या गृहस्थ का। यही संवर रूपी नौका भवसागर पार कराने का साधन बन सकती है।
आज इस शिक्षालय में आना हुआ है। यहाँ के बच्चों में अच्छे संस्कार जैसे धर्म, अहिंसा, नैतिकता और नशामुक्ति की भावना पुष्ट हो।
विद्यालय की प्रधानाचार्या भाविषा पांड्या ने पूज्यवर के स्वागत में अपनी भावनाएं प्रकट की। उपासक प्रभुभाई मेहता ने गीत की प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।