ज्ञान के साथ हो विवेक और संयम की चेतना : आचार्यश्री महाश्रमण
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी जाम्बुवा से लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर वड़ोदरा के लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय में पधारे। अमृत देशना प्रदान कराते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि मनुष्य एक चिन्तनशील प्राणी होता है। चिन्तन का स्तर सब में एक समान न भी हो पर सामान्यत व्यक्ति के चिन्तन में विवेक हो, कुछ गहराई हो। हमारी चेतना में अनन्त ज्ञान सन्निहित है। किसी का अनन्त ज्ञान कुछ-कुछ प्रकट होता है, किसी के ज्यादा तो किसी के कम प्रकट हो जाता है। परन्तु ऐसा कोई जीव नहीं होता जिसमें बोध की स्थिति न हो। यह मानो प्रकृति की व्यवस्था है कि प्राणी में यत्किंचित बोध की स्थिति अवश्य रहेगी। तरतमता हो सकती है। जैन दर्शन के अनुसार न्यूनतम क्षयोपशम भाव तो हर प्राणी में होगा। एकेंन्द्रिय जीवों में भी मति-श्रुत बताये गये हैं।
आदमी को अपने विवेक, चिन्तन का उपयोग करना चाहिए। जिस काम में लाभ का पलड़ा भारी हो, वह कार्य करने का प्रयास करना चाहिए। थोड़े लाभ के लिए बहुत की हानि कर लेना बुद्धिमत्ता की बात नहीं होती। आज मिगसर शुक्ला चतुर्दशी - हाजरी का दिन है। चारित्रात्माओं के शील-महाव्रत कितनी बड़ी सम्पदा है, पर उसका निदान न करें अन्यथा थोड़े के लिए बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है। मूढ़ता के कारण आदमी बड़ा नुकसान उठा लेता है। ज्ञान के साथ विवेक, संयम की चेतना, अमोहता रहनी चाहिए। मोह से साधु नुकसान में जा सकता है।
गृहस्थों के लिए भी यही बात है कि थोड़े लाभ के लिए धर्म की सम्पदा को नहीं खोना चाहिए। भौतिक लाभ के लिए धर्म नहीं छोड़ना चाहिए। थोड़ी कठिनाई आये तो आये पर धर्म को न छोड़ें। अर्हन्नक श्रावक का उदाहरण हमारे आगमों में मिलता है। एक बार डूबने से एक भव बिगड़ सकता है पर बार-बार भव-भव तो न बिगड़े। आदमी किसी भी क्षेत्र में काम करे, अपने धर्म को न भूले। जीवन में नैतिकता, ईमानदारी, मैत्री, अहिंसा का भाव रहे। पूज्य वर ने आगे कहा - वड़ोदरा में साध्वी पंकजश्रीजी का चतुर्मास था। उनके क्षेत्र में आज आना हुआ है। चतुर्दशी के सन्दर्भ में प्रेरणा प्रदान करवाते हुए आचार्य श्री ने चारित्रात्माओं को आचार-विचार के प्रति समुचित जागरूकता हेतु उत्प्रेरित किया।
बहुश्रुत परिषद् सदस्य मुनि उदितकुमारजी ने अपनी भावना अभिव्यक्त करते हुए कहा कि आचार्य प्रवर मंत्रविद् हैं। उनकी वाणी आत्मा से जुड़ी रहती है। उनका उद्बोधन सबके लिए प्रेरणादायी होता है। पूज्यवर ने फरमाया कि मुनिश्री उदितकुमारजी में मुनिश्री सुमेरमलजी स्वामी की छवि दिखाई देती है। आप मार्ग में भी क्षेत्रों में ज्ञानशाला को संभालते रहे। तेरापंथी सभा-दिल्ली के अध्यक्ष सुखराज सेठिया तथा राज्यसभा सांसद लहरसिंह सिरोहिया आदि ने आचार्यश्री से सन् 2028 का मर्यादा महोत्सव दिल्ली में करने की अर्ज की तो आचार्यश्री ने अपनी विशेष कृपा प्रदान करते हुए घोषणा करते हुए कहा - 'सन् 2027 के चतुर्मास के बाद सन् 2028 का मर्यादा महोत्सव बृहत्तर दिल्ली में करने का भाव है।’ वडोदरा में चतुर्मास करने वाली साध्वी पंकजश्रीजी के सिंघाड़े की ओर से साध्वी शारदाप्रभाजी ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मंडल ने संकल्प स्वरूप कल्पवृक्ष पूज्यवर को समर्पित किया। तेयुप वड़ोदरा द्वारा गीत की प्रस्तुति हुई। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।
गुस्से का भाव न आ जाए। जो मिला है उसका बढ़िया उपयोग करे, अहंकार न करे। हम साधु-साध्वियों को सम्यक्त्व युक्त चारित्र प्राप्त है, इसकी तुलना में हीरे-पन्ने भी ना-कुछ है। चारित्र के सामने राजा तो क्या देव भी प्रणत हो जाते हैं। चारित्र और सम्यक्त्व सबसे बड़ी सम्पदा है। पूज्यप्रवर ने प्रसंग वश प्रश्न उपस्थित किया - हमारे यहां तेरह नियम हैं। पांच महाव्रतों और रात्रि भोजन का प्रत्याख्यान तो हम ले लेते हैं, परन्तु पांच समिति और तीन गुप्ति का त्याग कब लेते हैं? ये आठ प्रवचन माताएं हैं जो महाव्रतों की सुरक्षा करने वाली हैं। इनके प्रति हम जागरूक रहें। पूज्यप्रवर ने बहुश्रुत परिषद के सदस्यों को आशीर्वचन प्रदान कराते हुए दिल्ली की विहार कर रहे बहुश्रुत परिषद के सदस्य मुनिश्री उदितकुमारजी आदि ठाणा 3 एवं मुनि अभिजीतकुमारजी ठाणा 2 को पावन प्रेरणा प्रदान करवाई।